>>: सिंधी शरणार्थी: 396 परिवार 38 साल से भूखंड के लिए खा रहे ठोकरें

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मोहम्मद इलियास/उदयपुर

सिंधी शरणार्थी परिवारों को बसाने के लिए 38 साल पहले प्रतापनगर क्षेत्र में विशिष्ट पंजीकरण योजना के तहत आवेदन लिए गए थे। उस दरमियान 1750 में से 396 परिवार ऐसे हैं, जिन्हें आज भी भूखंड नहीं मिल पाया है। कई परिवार ऐसे हैं, जिनके मुखिया आशियाने की आस पूरी होने से पहले ही दुनिया से रूखसत हो गए। वंचित परिवार आज भी जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर काटने को मजबूर है।
पीडि़त परिवारों की आवाज को सिंधी समाज ने राजस्थान पत्रिका के संवाद कार्यक्रम में उठाई। समाजजनों ने वंचित परिवारों को भूखंड आवंटित की मांग मुख्यमंत्री से भी की है।

राजस्थान पत्रिका उदयपुर के सम्पादकीय प्रभारी अभिषेक श्रीवास्तव ने पत्रिका के जनसरोकार के मुद्दों पर चर्चा की। कहा कि पत्रिका हमेशा जनता की आवाज बना है। आमजन, गरीब व हर वर्ग के लोगों के लिए तत्पर है। पर्यावरण, झील, पहाड़ बचाने व शहर के यातायात व्यवस्था, ट्रैफिक लाइट के साथ ही शहर में नाइट बाजार और पर्यटकों की सुरक्षा के मुद्दों पर भी प्रशासन का ध्यानार्षण कर रहा है। समाजजनों ने पत्रिका के जनसरोकार मुद्दों पर खुले मन से प्रशंसा की और कहा कि जनता से जुड़े मुद्दों पर सिंधी समाज हमेशा पत्रिका के साथ है।
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ये है भोपाल कॉपरेटिव सोसायटी का मुद्दा
समाजजनों ने बताया कि विभाजन के समय सिंधी समाजजन अलग-अलग जगह से आकर यहां बसे थे। वर्ष 1986 में परिवारों को बसाने के लिए प्रतापनगर क्षेत्र में 95 हजार 565 वर्ग गज जमीन आवंटित हुई थी। यहां बसने के लिए 1750 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन इनमें से 396 परिवार भूखंड से वंचित रह गए। समाजजन आज भी वंचित परिवारों के लिए पैरवी कर रहे हैं। समाजजनों का कहना है कि हाल ही कलक्टर ने 70 साल पुरानी समस्या का समाधान करते हुए सोसायटी भवन के पट्टे आवंटित किए। शीघ्र ही पुराने आवेदकों को भूखंड आवंटित करने चाहिए।

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संवाद में उभर कर आए शहर के मुद्दे

- शहर भिक्षावृत्ति मुक्त हो। प्रत्येक शनिवार को बच्चे व महिलाएं शनि देव के नाम पर भिक्षावृत्ति करते हैं। इससे पर्यटक के साथ आमजन भी परेशान होते हैं।
- शहर में संदिग्ध लोग दिन में रैकी कर, रात को दुकानों के ताले तोड़कर चोरियां करते हैं। सीसीटीवी में कैद होने के बावजूद पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पा रही है।

- शहर के देहलीगेट, कोर्ट चौराहा व अन्य चौराहा यातायात का भारी दबाव है, इसके बावजूद वहां पर ट्रैफिक लाइट्स की व्यवस्था नहीं है।
- गुजराती पर्यटक सर्वाधिक आते है, पुलिसकर्मी गुजरात का नम्बर देखकर गाडिय़ां रोकते हैं। पारस तिराहा, बलीचा व प्रतापनगर में गुजराती पर्यटकों की गाडिय़ां खड़ी नजर आती है। इससे पर्यटक परेशान होते हैं।

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