>>: राजस्थान की इस बेटी ने मेडिकल- इंजीनियरिंग छोड़ देश के लिए चुना रक्षा क्षेत्र, अब देशभर में 18 वीं रैंक

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यदि सभी टॉपर डॉक्टर और इंजीनियर, आईएएस बनने की सोचेंगे तो फिर बॉर्डर पर कौन जाएगा....। बॉर्डर पर जाकर देश की सरहद की चौकसी भी हमारी जिम्मेदारी है। दसवीं व बारहवीं में 93 फीसदी अंक हासिल किए। फिर सोचा कि क्यों न मैं ही इसकी शुरूआत करू। इसी संकल्प को आगे लेकर बढऩे वाली शेखावाटी की बेटी प्रतिभा बुडानिया ने हाल ही में घोषित एनडीए एसएसबी 152 कोर्स फाइनल मेरिट लिस्ट में महिला वर्ग में देशभर में 18 वीं रैंक हासिल की है। उनका कहना है कि अब सपना अच्छा ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना है। पत्रिका से खास बातचीत में बुडानिया ने बताया कि 12 वीं पास होते ही प्रिंस एनडीए एकेडमी में दाखिला ले लिया। यहां पहुंचते ही मन में संकल्प ले लिया कि अब मुझे सेना में अफसर बनकर ही निकलना है। इस लक्ष्य के लिए मैं इतना मजबूती से जुट गई कि 24 घंटे परीक्षा बेहतर तरीके से परिणाम क्रेक करने का प्लान बनाती। प्रतिभा ने कहा कि छात्राओं को एनडीए में पदों की संख्या पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि उन्हें सफल होने के लिए केवल एक सीट की ही जरूरत होती है। उन्होंने सफलता का श्रेय प्रिंस एकेडमी के निदेशक जोगेन्द्र सुण्डा, चेयरमैन डॉ पीयूष सुण्डा, शिक्षकों व माता-पिता को दिया है।

संघर्ष ऐसा: डेढ़ लाख बेटियों के लिए 35 सीट

एनडीए के प्रति बेटियों में अब क्रेज बढऩे लगा है। छात्राओं के लिए इस भर्ती में देशभर में केवल 35 पद हैं। जबकि इस परीक्षा में देशभर से डेढ़ लाख बेटियां शामिल होती है। होनहार मूलत: गेटा का बास, झुंझुनूं की निवासी है। फिलहाल इनका परिवार शांतिनगर चूरू में रहता है। प्रतिभा के पिता जगपाल बुडानिया सरकारी शिक्षक हैं एवं माता सुमन बुडानिया सरकारी जीएनएम हैं।

संघर्ष की राहें: सोशल मीडिया दूरी, मम्मी-पापा से सात दिन में एक बार बात
होनहार प्रतिभा बुडानिया ने बताया कि हॉस्टल में पढ़ाई के दौरान सोशल मीडिया तो संभव ही नहीं था। पहले भी मैं सोशल मीडिया से दूर रही। उन्होंने बताया कि लक्ष्य पर नजर रहने की वजह से मम्मी-पापा सहित अन्य परिजनों से सात दिन में एक बार ही बात करती थी। उन्होंने बताया कि हॉस्टल में काफी अनुशासित माहौल मिला, जिसका सफलता का काफी रोल रहा है।

यूथ को सीख: अवसरों की जिदंगी में कमी नहीं

वर्तमान दौर में युवाओं को समझना होगा कि उनके पास अवसरों की कोई कमी नहीं है। इसलिए युवाओं को जीवन में एक गोल तय करना होगा। फिर दिन-रात उस गोल पर नजरें जमाए रखते हुए सफलता का रोडमैप तय करना होगा। उन्होंने बताया कि सफलता और असफलता कोई मायने नहीं रखती। असफलता से ही सफलता की राहें निकलती है। इसलिए युवाओं को असफलता मिलने पर भी कभी भी नकारात्मक भाव में नहीं जाना चाहिए।

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