पोकरण. केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से प्रत्येक व्यक्ति तक पर्याप्त पानी पहुंचाने के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित की जा रही है। साथ ही करोड़ों रुपए की धनराशि खर्च कर हर घर तक पानी पहुंचाने के दावे कर रहे है। जबकि धरातल पर हालात कुछ और ही है। भारत-पाक सीमा से सटे सरहदी जिले के परमाणु नगरी क्षेत्र में कई गांवों में वर्षों से पानी नहीं पहुंचा है तो कुछ ढाणियां आज भी पेयजल से वंचित है। जिसके कारण ग्रामीण पानी खरीदकर मंगवाने को मजबूर हो रहे है। सरकार की ओर से कई तरह की योजनाएं संचालित की जा रही है। सरहदी जिले के कस्बों, गांवों व ढाणियों के लिए कई तरह की जलप्रदाय योजनाएं चलाई जा रही है। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार व विभाग के जिम्मेदार अधिकारी हर व्यक्ति तक पर्याप्त पानी पहुंचाने के दावे कर रहे है, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
200 में से केवल 2 गांवों में कार्य पूर्ण
- केन्द्र सरकार की ओर से जल जीवन मिशन के तहत हर घर जल योजना शुरू की गई है।
- इस योजना के तहत क्षेत्र में कार्यरत एजेंसियों की ओर से ग्राम पंचायतों के सहयोग से कार्य शुरू कर दिया गया है, लेकिन अभी तक नाममात्र के गांवों में ही काम पूरा हुआ है।
- जलदाय विभाग के अंतर्गत पोकरण खंड में 20 में से 10 गांवों में काम पूरा हुआ है। 10 गांवों में कार्य प्रगति पर है।
- पोकरण-फलसूंड पेयजल लिफ्ट परियोजना में मात्र 2 गांवों में कार्य पूर्ण हुआ है। जबकि 198 गांवों में काम अधूरा पड़ा है।
- इस प्रकार पोकरण विधानसभा क्षेत्र में मात्र 12 गांवों में ही पाइपलाइनें लगाने व घरों में कनेक्शन देने का कार्य पूर्ण किया गया है।
- 12 गांवों के अलावा पूरा क्षेत्र इस योजना से वंचित है। अधिकांश गांवों में अभी तक कार्य भी शुरू नहीं हो पाया है।
- जिन गांवों में कार्य चल रहा है, वहां कार्य की गति बहुत धीरे है।
कई गांव व ढाणियां पेयजल संकट से ग्रस्त
पोकरण क्षेत्र में विशेष रूप से भणियाणा उपखंड के गांवों व ढाणियों में पेयजल की समस्या अधिक है। सुदूर बसे गांवों व ढाणियों में पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। यहां निर्मित जीएलआर सूखे पड़े है। फलसूंड क्षेत्र के कुछ गांवों में हालात इस कदर है कि जीएलआर में पक्षियों ने घौंसले बनाकर अंडे तक दे दिए है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस जीएलआर में अंतिम बार पानी कितने वर्षों पूर्व आया था। इन हालातों में ग्रामीण महंगे दामों में पानी खरीदकर मंगवाने को मजबूर हो रहे है।
हर बार खर्च करते है करोड़ों रुपए
एक तरफ सरकार की ओर से गांवों व ढाणियों में जलापूर्ति व्यवस्था सुचारु होने के दावे किए जाते है। जबकि दूसरी तरफ हर वर्ष चिन्हित गांवों व ढाणियों में टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। सरकार की ओर से टैंडर प्रक्रिया के माध्यम से हर वर्ष टैंकर संचालित किए जाते है। जिस पर करोड़ों रुपए की धनराशि खर्च की जाती है। इसके बाद भी प्रत्येक व्यक्ति तक पानी नहीं पहुंच पाता है। लोग पानी खरीदकर ही मंगवाते है।
मरम्मत के अभाव में भी परेशानी
क्षेत्र में जलदाय विभाग व ग्राम पंचायतों की ओर से वर्षों पूर्व निर्माण करवाई गई जीएलआर, पशुकुंड व पशुखेलियों की समय पर मरम्मत नहीं की जाती है। क्षतिग्रस्त होने के बाद जीएलआर में पानी नहीं टिकता है। जिसके कारण विभाग की ओर से जलापूर्ति बंद कर दी जाती है। इसके बाद न तो जीएलआर की मरम्मत होती है, न ही नई जीएलआर का निर्माण करवाया जाता है। जिससे ग्रामीणों की परेशानी अधिक बढ़ जाती है।