>>: बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ा रहा पेरेंट्स की टेंशन, पहुंच रहे कंसल्टेशन के लिए

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केस 2 - 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान विदित (परिवर्तित नाम) पढ़ने के बजाय मोबाइल पर ज्यादा टाइम बिता रहा था। कई बार टोकने के बाद भी वह पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रहा था। ऐसे में पेरेंट्स उसकी मोबाइल की आदत से परेशान होकर उसे काउंसलिंग के लिए मनोचिकित्सक के पास लेकर गए।

ये महज कुछ उदाहरण हैं लेकिन ये हकीकत है कि बच्चे मोबाइल के एडिक्ट हो चुके हैं और उनका ये एडिक्शन पेरेंट्स को तनाव में ला रहा है। ऐसे में पेरेंट्स बच्चों को काउंसलिंग के लिए मनोचिकित्सकों के पास लेकर पहुंच रहे हैं। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच साल तक के 99 प्रतिशत बच्चों को मोबाइल और गैजेट का एडिक्शन है। 65 प्रतिशत फैमिली खाना खिलाते समय बच्चे को टीवी-मोबाइल दिखाते हैं। 12 महीने का बच्चा भी हर दिन 53 मिनट स्क्रीन देखने में बिताता है और 3 साल की उम्र आते-आते स्क्रीन टाइम बढ़कर डेढ़ घंटा हो जाता है। यही बच्चे जब थोड़ा और बड़े होते हैं तो इन्हें मोबाइल एडिक्शन हो जाता है। मोबाइल में ही घंटों बीत जाते हैं और उन्हें अपने आसपास क्या हो रहा है, ये भी पता नहीं चलता है।

मोबाइल पर ज्यादा समय करता है मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित

मनोचिकित्सक डॉ. आरके शर्मा के अनुसार उनके पास हर दिन मोबाइल एडिक्शन और स्क्रीन टाइम कम करने को लेकर पेरेंट्स बच्चों को लेकर पहुंच रहे हैं। बच्चों को वे थैरेपी देते हैं जो 4 से 6 माह तक चलती है। शर्मा ने बताया कि स्क्रीन इस्तेमाल को लेकर एक शोध में माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत आठवीं से दसवीं कक्षा तक के 184 स्कूली बच्चों को शामिल किया गया, जिसमें बच्चों में अतिरिक्त स्क्रीन समय 83.2 प्रतिशत पाया गया। एक दूसरे शोध में छात्रों के सोशल मीडिया पर बिताए गए समय और मानसिक स्वास्थ्य के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध पाया गया। वे प्रतिभागी, जिन्होंने 4 घंटे या उससे अधिक समय तक सोशल मीडिया का उपयोग किया उनका मानसिक स्वास्थ्य का स्कोर 30.2 प्रतिशत रहा, जबकि जिन प्रतिभागियों ने सोशल मीडिया पर दिन में 1 से 2 घंटे के बीच समय बिताया उनका स्कोर 35.6 प्रतिशत रहा जो कि सोशल मीडिया पर ज्यादा समय देने वाले प्रतिभागियों से अधिक है। ज्यादा स्कोर का संबंध बेहतर मानसिक स्वास्थ्य से है।

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बच्चो में स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारक:

1. स्मार्टफोन की आसान उपलब्धता।

2. माता पिता द्वारा अपने बच्चों को पर्याप्त समय न दे पाना।

3. अपने खाली समय को प्रभावी तरीके से सदुपयोग न करना, जैसे खेलकूद एवं सामाजिक कार्यों में भागीदारी न लेकर स्मार्टफोन की तरफ झुकाव होना।

4. अपनी भावनाओं (तनाव या चिंता महसूस करना, स्वयं में खालीपन महसूस करना) का प्रभावी तरीके से सामना न कर पाना जिससे किशोर उस वक्त स्मार्टफोन इस्तेमाल करने लग जाते हैं।

5. अभिभावकों का जागरूक न होना।

6. मानसिक समस्याओं जैसे ओसीडी डिप्रेशन, एंग्जाइटी इत्यादि में स्मार्टफोन का अत्याधिक इस्तेमाल करना।

स्क्रीन पर अधिक समय बिताना मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है:

1. मानसिक समस्याओं जैसे अवसाद, सिरदर्द, ओ. सी. डी., और चिंता का खतरा बढ़ जाता है।

2. नींद पर असर (नींद की अवधि कम होना या नींद की गुणवत्ता में कमी)।

यकीनन अभिभावक अपने बच्चो में स्क्रीन टाइम को कम करवाने के लिए चिंतित रहते हैं अंततः अभिभावकों को भी यह जानने की आवश्यकता है कि इसे कैसे प्रबंधन में लाया जाए-

1. अगर बच्चे का स्क्रीन टाइम अत्यधिक हो गया है, जिसके कारण उसके दूसरे कामों में तथा स्वास्थ्य संबंधित बाधाएं आ रही हैं तो उनके कारकों को जानकर प्रभावकारी तरीके से निवारण करना चाहिए। अगर समस्या फिर भी बनी रहती है या अभिभावक स्वयं से समस्या को हल नही कर पा रहे हैं तो उन्हे बाल एवं किशोर मनोचिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।

2. अपने बच्चों के साथ बैठकर उन्हें क्वालिटी टाइम दें।

3. उनकी रुचि जानें और उसे बढ़ावा दें।

4. मोबाइल की उपलब्धता को आसान न बनाएं।

उम्र के हिसाब से इतना हो एवरेज स्क्रीन टाइम :

0-18 महीने: स्क्रीन से पूरी तरह बचने की कोशिश करें।

18-24 महीने: प्रति दिन 30-60 मिनट का समय दें।

2-7 वर्ष: प्रति दिन 1 घंटा स्क्रीन टाइम।

बड़े बच्चे/किशोर: प्रति दिन कुल 2 घंटे से अधिक स्क्रीन समय नहीं। बेहतर नींद के लिए सोने से 1 घंटा पहले सभी स्क्रीन बंद कर दें।

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