>>: VIDEO...प्रदेश में जैविक फसलों की जांच के लिए नहीं है प्रयोगशाला

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- प्रयोगशाला बने तो काश्तकारों व आमजन को मिले लाभ

नागौर. प्रदेश में जैविक खेती के नमूनों की जांच के लिए प्रयोगशाला नहीं होने से नमूनों को राजस्थान से बाहर पूना, दिल्ली, बंगलौर, मुंबई, प्रयागराज व हैदराबाद स्थित प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। इससे किसानों को जांच परिणाम के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है। यहीं कारण है कि सरकार की ओर से जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करने के बाद भी काश्तकार इससे नहीं जुड़ पा रहे हैं।

काश्तकारों का कहना है कि जैविक खेती के नमूनों की जांच की सुविधा स्थानीय स्तर पर होने से परिणाम जल्दी मिलने पर वे अपनी फसलों को पूरी प्रमाणिकता के साथ बेच सकते थे, लेकिन जांच सुविधा के अभाव में चाहकर वे जैविक खेती का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं।
सरकार ने कृषि विभाग के माध्यम से वर्ष 2015-16 में जैविक खेती प्रोत्साहन योजना के तहत काश्तकारों को जैविक खेती से जोडऩे का प्रयास किया था। इसके लिए काश्तकारों का कलस्टर बनाया गया। प्रत्येक कलस्टर में 50 काश्तकार शामिल किए गए थे। अकेले नागौर जिले में कुल 6150 कलस्टर बनाए गए। कृषि विभाग के अनुसार इन कलस्टरों पर सरकार ने वर्ष 2015-016 में 72.72 लाख, वर्ष 2016-017 में 189.41 लाख, 2017-018 में 143.73 लाख, वर्ष 2018-019 में 85.85 लाख रुपए जैविक प्रोत्साहन नीति के तहत नागौर जिले में काश्तकारों पर व्यय किए। इसके बाद भी काश्तकार जैविक खेती से नहीं जुड़ पाए हैं। इसके पीछे कारण यह रहा कि तीन से पांच साल तक जमीन को पूरी तरह से जैविकखेती युक्त बनाने के बाद काश्तकारों को नमूनों की जांच के लिए भटकना पड़ता था। यही स्थिति आज भी बनी हुई है।

इनका कहना है...

प्रदेश में जैविक फसलों की जांच के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयोगशालाएं होनी चाहिए। लेकिन राजधानी जयपुर तक में इसके लिए उच्चीकृत प्रयोगशाला नहीं है। जैविक फसल की जांच कराने के लिए नमूने बाहर भेजे जाते हैं। जबकि राजस्थान में जैविक खेती का रकबा काफी बड़ा है। सरकार राजस्थान में जैविक खेती प्रमाणीकरण के लिए प्रयोगशाला स्थापित करे तो काश्तकारों को काफी फायदा होगा।

-डॉ विकास पावडिय़ा, असिस्टेंट प्रोफेसर, कृषि अर्थशास्त्र,कृषि महाविद्यालय, नागौर।

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