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सेक्टर नंबर 13: जमीन खातेदारों की और नियम सरकारी Monday 19 July 2021 08:59 AM UTC+00 भरतपुर. नगर सुधार न्यास ने 12 साल पहले जिन किसानों से खेती करने का हक छीना, वो किसान आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। कागजों में सिमटती योजना खातेदारों की मुसीबत बढ़ा रही है। न कोई सुनने वाला है न कोई देखने वाला। अंधा और बहरा सिस्टम खातेदारों की आर्थिक स्थिति बिगाडऩे का जिम्मेदार बन चुका है। अगर यही हाल रहा तो खातेदारों की हालत और भी खराब हो सकती है। राजस्थान पत्रिका की ओर से पिछले कुछ दिन से संभाग की सबसे बड़ी आवासीय योजना का मुद्दा प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है। अभी तक सेक्टर नंबर 13 में आने वाले गांवों में जाकर वोट मांगने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी उनकी सुध नहीं ली है। ऐसे में इन गांवों के ग्रामीणों ने निर्णय लिया है कि एक बैठक कर मुआवजा आदि की समस्या का निराकरण कराने के लिए आंदोलन किया जाएगा। इसमें सहयोग देने के लिए जनप्रतिनिधियों से भी मांग की जाएगी। चूंकि वोट देकर जिन्हें जिताया है, अगर वो भी उनकी समस्या का निराकरण करने में असमर्थ है तो खुद ही उग्र आंदोलन के लिए विवश होना पड़ेगा। ज्ञात रहे कि नगर सुधार न्यास ने 2010 में किसानों के खेती करने पर रोक लगा दी थी। कुछ किसानों ने फसल की थी तो प्रशासन ने ट्रेक्टर चलवा कर फसल को नष्ट कर दिया था। इसके बाद किसान यूआईटी के चक्कर लगाते रहे। न तो किसानों को 25 प्रतिशत जमीन मिली न कोई मुआवजा। दर्जनभर गांव के किसान मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इसमें बरसो का नगला, सोनपुरा, विजय नगर, तेरही नगला, जाट मड़ौली, श्रीनगर, मलाह, अनाह आदि के किसान शामिल हैं। किसानों का कहना है कि हमारी जमीन होते हुए भी हम दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। हम दिहाड़ी मजदूर बन गए हैं हम पर खाने तक को नहीं हैद्ध बाजार से किलो के हिसाब से गेहूं खरीदना पड़ रहा है। बच्चों को पढ़ा भी नहीं सकते। नेताजी एक बार जाकर देखिए...जिंदगी की जंग लड़ रहे खातेदार -मेरी जमीन में दो बोरिंग हो रहे हंै उसका भुगतान भी नहीं हुआ है। आखिर कैसे भुगतान होगा। पैसे के अभाव में परेशान हूं। 20 दिन पूर्व लड़की की भी दुर्घटना से मौत हो गई। उसकी एक पुत्री है। आखिर कहां से घर का खर्चा चलाएं, तीन बेटे हैं, जो कि मजदूरी करते हैं। -रामपुरा में हमारी पांच बीघा जमीन है। यूआईटी के चक्कर पर चक्कर लगाते हैं पर कोई सुनने वाला नहीं है क्योंकि सरकार को तो कोई चिंता है नहीं। इसमें किसानों का नुकसान हुआ है। मेरे पास एक लड़का, एक लड़की है। बाजार से गेहूं खरीद कर गुजर बसर कर रहा हूं।
-सरकार ने जमीन ले ली और मुआवजा नहीं दिया। तीन लड़के हैं जो ईंट भट्टों पर मजदूरी कर रहे हैं। मेरी पत्नी की तबियत भी खराब रहती है। उसकी बीमारी के लिए भी पैसा चाहिए। आखिर कहां से लाऊं। रामपुरा में जमीन होते हुए भी पैसे-पैसे को मोहताज है। -परिवार बड़ा है इसलिए घर के खर्चे बहुत हो रहे हैं। रोजगार कुछ है नहीं। सात बच्चे हैं। दो लड़की, पांच लड़का। रामपुरा में साढ़े सात बीघा जमीन है, फिर भी बच्चे ठोकर खा रहे हैं। आज हमारे पास जमीन होती तो हम खेती कर अपनी गुजर बसर कर रहे होते। -बेटी शादी के लिए सयानी हो गई है। पैसा पास है नहीं। आठ बीघा जमीन रामपुरा में है। जिला कलक्ट्रेट और यूआईटी के चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो गए, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। -हम चार भाई हैं। तीन बीघा जमीन रामपुरा में है। सभी मकान बनाने का काम करते हैं लेकिन फिलहाल कोई काम नहीं मिला। सभी बेरोजगार हैं। परिवार का पालन पोषण नहीं कर पा रहे हैं। सरकार हमारी जमीन हमें दे या फिर मुआवजा देगी तो हम काम कर सकते हैं। -चार भाइयों में पांच बीघा जमीन है। मेरे एक पुत्र व पांच पुत्रियां हैं। कर्जा लेकर पुत्रियों की शादी की है। अभी भी डेढ़ लाख रुपए कर्जा है। पुत्र बेरोजगार हैं। खेती होती तो दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ती। सरकार हमारी जमीन का मुआवजा दे दे तो हम चैन की जिंदगी जी सकते हैं।
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