>>: सेक्टर नंबर 13: खातेदार बोले: खुद की जमीन के लिए ही मांग रहे भीख

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भरतपुर. संभाग की सबसे बड़ी आवासीय कॉलोनी सेक्टर नंबर 13 की हकीकत अब शहर की जनता के सामने आ चुकी हैं, लेकिन नगर सुधार न्यास संबंधित विभाग की चुप्पी बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। हालांकि अब एक गुट स्कीम नंबर 13 को लेकर विरोध का निर्णय ले चुका है। बुधवार को यह दल इस स्कीम में आने वाले गांवों में जाकर खातेदारों के साथ वार्ता करेगा। इसके बाद आंदोलन की भूमिका तय की जाएगी। अगर प्रशासन व यूआईटी का रुख सकारात्मक नजर नहीं आता है तो तालाबंदी का भी निर्णय लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पत्रिका की ओर से 13 जुलाई के अंक में सेक्टर नंबर 13: खातेदारों से 12 साल पहले खेती का हक छीना, मुआवजे का अब तक इंतजार शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर नगर सुधार न्यास की बड़ी लापरवाही व जनप्रतिनिधियों की खानापूर्ति के विकास की हकीकत का खुलासा किया था। तब से ही पत्रिका इसमें आने वाले गांवों में जाकर खातेदारों का दर्द बयां कर रहा है।
किसानों ने बताया कि 2010 में किसानों के खेती करने पर रोक लगा दीउ गई थी। कुछ किसानों ने फसल की थी तो प्रशासन ने ट्रेक्टर चलवा कर फसल को नष्ट कर दिया। उसका मुआवजा आज तक नहीं मिला है। इसके बाद किसान यूआईटी के चक्कर लगाते रहे। न तो किसानों को 25 प्रतिशत जमीन मिली न कोई मुआवजा। अब दर्जनभर गांव के किसान मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बरसो का नगला, सोनपुरा, विजय नगर, तेरही नगला, जाट मड़ौली, श्रीनगर, मलाह, अनाह आदि के किसानों ने एक संघर्ष समिति बनाकर विरोध का भी निर्णय ले लिया है। इस प्रकरण में जिन्होंने चुप्पी साध रखी है, कांग्रेस हो या भाजपा या फिर अन्य किसी दल के जनप्रतिनिधि उनका घेराव व विरोध भी किया जाएगा। किसानों ने बताया कि खुद राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग के पास भी दो बार जा चुके हैं, लेकिन उन्होंने झूठा आश्वासन देकर खानापूर्ति की है।

सबसे बड़ी स्कीम के फेल होने के पीछे ये जिम्मेदार

1. नगर सुधार न्यास: पिछले करीब ढाई-तीन साल से सचिव का पद राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। भारी भ्रष्टाचार व कोई भी काम रिश्वत बगैर नहीं होने के मामले सामने आते रहे हैं। एसीबी भी रंगे हाथ गिरफ्तार कर चुकी है। यह माना जाए कि यूआईटी शहर में नगर निगम के बाद भ्रष्टाचार का दूसरा अड्डा बन चुकी है तो यह हकीकत होगी। कार्यवाहक सचिव के भरोसे काम चल रहा है। उनके पास समय नहीं है।

2. जिला कलक्टर: जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता ने कार्यभार संभालने के बाद भले ही यूआईटी ट्रस्ट की बैठक में भाग लिया है, लेकिन खातेदारों की इतनी बड़ी पीड़ा पर अब तक बात नहीं की है। जबकि ट्रस्ट के अध्यक्ष भी जिला कलक्टर ही हैं। सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी इन्हीं की बनती है।

3. विधायक व राज्यमंत्री: भरतपुर विधानसभा क्षेत्र में ही यूआईटी आती है। इसलिए राज्यमंत्री भले ही हर बैठक में यूआईटी के अधिकारियों को निर्देशित कर चुके हैं, परंतु यह समझ से परे हैं कि यूआईटी के अधिकारी उनकी बात मान नहीं रहे हैं या उनकी बात का सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। अगर ऐसा है तो उनके कड़ी कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण मामला और खराब हो रहा है। यूआईटी सचिव का खाली पद भरवाना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है।


नगला झीलरा के ग्रामीण बोले: अधिकारी-कर्मचारी व नेता सभी झूठे

-हमारे गांव की 50 प्रतिशत जमीन सेक्टर नंबर 13 की स्कीम में आ रही है। सभी परेशान हैं। जमीन होने पर खेती कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे। शादी, बीमारी आदि का खर्चा हम कहां से निर्वहन करें। किसान एक-एक पैसे को मोहताज हो गया है। सरकार हमारी भूमि का मुआवजा दे।
-जय सिंह पुत्र भवानी सिंह, नगला झीलरा सेवर

-सेक्टर नंबर 13 में हमारी जमीन है। पहले खेती कर अनाज घर आ जाता था। अब बाजार से खरीदकर लाना पड़ रहा है। सरकार को सोचना चाहिए कि हमारी जमीन का मुआवजा दे या फिर जमीन हमें दे। इससे हम खेती कर अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें।
बंटी पुत्र मुंशीराम, नगला झीलरा


-नगर सुधार न्यास के चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो गए, लेकिन कोई नहीं सुनने वाला। मंत्री के पास में गए थे लेकिन उन्होंने भी हमारी नहीं सुनी। आखिर जमीन हमारी तो भी अधिकारियों के पास भीख मांगना पड़ रही है। सरकार हमारी जमीन थे या फिर मुआवजा दे।
गुमान सिंह पुत्र रामदयाल सिंह, नगला झीलरा

-यूआइटी न तो जमीन दे रही न पैसा मिल रहा है। बेटी की शादी कर्ज लेकर की थी। वह भी अभी तक नहीं चुका है। बीमारी के लिए पैसे कहां से लाएं।
पूरन पुत्र हरमुख, नगला झीलरा


-साढ़े चार बीघा जमीन होते हुए भी एक-एक दाने को मोहताज हो रहे हैं। घर का खर्चा नहीं चल रहा इसलिए परचून की दुकान खोल कर गुजर-बसर कर रहे हैं। जमीन का मुआवजा मिल जाए तो परिवार की स्थिति बदल जाए।
टिकेंद्र पुत्र मोहन सिंह, नगला झीलरा


-हमारे पास सवा छह बीघा जमीन है। नगर सुधार न्यास के चक्कर लगाते लगाते परेशान हो गए। बच्चों की शादी के लिए पैसे तक नहीं है। कहां से शादी करें। बेटी शादी लायक हो गई। जहां भी शादी की बात करो दहेज मांगते हैं। हमारे पास खेती होती तो हम गेहूं कर बच्चों का पालन पोषण कर सकते थे।
सोहन लाल पुत्र छीतर सिंह, नगला झीलरा

-मेरे पास सिर्फ एक बीघा जमीन है। इससे मैं अपने परिवार का पालन पोषण करता था। यूआईटी ने अटका कर पटक दिया है। पैदावार की गई और मुआवजा भी नहीं मिला। पहले खेती कर गेहूं आ जाते थे। इससे खाने के काम आ जाते थे।
किशनलाल पुत्र राधेश्याम, विजय नगर

-रामपुरा में छह बीघा भूमि है। 25 प्रतिशत विकसित भूखंड देने के लिए कहा था, लेकिन न तो 25 प्रतिशत जमीन मिली न मुआवजा मिला। दो लड़के हैं। उनकी शादी तक नहीं हुई है। मजदूरी कर रहे हैं। आखिर घर का खर्चा कैसे चले।
ओमप्रकाश पुत्र छोटेलाल, विजयनगर

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