>>: फिर भी नहीं मिल रहा पीने का पानी

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भीलवाड़ा।
कोरोना महामारी से जूझ रहे भीलवाड़ा के टेक्सटाइल उद्योगों से जुड़े करीब एक लाख श्रमिकों को सरकारी योजनाओं से पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है, जबकि उद्यमियों से सरकार वाटर सेस के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए की वसूली करती है। एक हॉर्स पावर का कनेक्शन लेने वाले उद्यमी को हर साल 6 लाख रुपए वाटर सेस के नाम से कर चुकाना पड़ रहा है। यह सेस 10 पैसा प्रति यूनिट की दर से अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड वसूल कर रहा है। इससे उद्यमियों पर दोहरी मार पड़ रही है। जहां उन्हें एक ओर सेस जमा कराना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर श्रमिकों को पीने के पानी की व्यवस्था भी अलग से करनी पड़ रही है।
टेक्सटाइल के ५०० से अधिक उद्योग
भीलवाड़ा के टेक्सटाइल उद्योग में 500 से अधिक कारखाने हैं। इनमें एक लाख से अधिक श्रमिक कार्यरत हैं। दो व तीन शिफ्टों में चलने वाले कारखानों में कार्यरत श्रमिकों के लिए पीने के पानी के लिए कैन मंगवानी पड़ती है। हर कैन के लिए 15 से 20 रुपए खर्च होता है। रीको, जिला उद्योग केन्द्र, जिला प्रशासन, चम्बल तथा पीएचईडी सहित कोई भी पीने के पानी के की व्यवस्था नहीं कर रहा है।
लागत का 40 प्रतिशत हिस्सा बिजली, सेस तथा फ्यूल सरचार्ज
उद्योगों को अपनी लागत का 40 प्रतिशत हिस्सा राशि बिजली, वाटर सेस तथा फ्यूल सरचार्ज के नाम से जमा कराना पड़ता है। वर्तमान में 10 पैसा प्रति यूनिट वाटर सेस, 5 पैसा प्रति यूनिट स्पेशल फ्यूल सरचार्ज, 35 पैसा फ्यूल सरचार्ज तथा ६० पैसा प्रति यूनिट सौर ऊर्जा सहित अन्य शुल्क वसूले जाते हैं। इसके चलते जिसके पास एक किलोवाट का विद्युत कनेक्शन है तो उसे एक साल में लगभग ६ से 10 लाख रुपए केवल शुल्क के नाम से देने पड़ते हैं।
प्रतिस्पद्र्धा तक नहीं कर पा रहे
सिन्थेटिक्स विविंग मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय पेडीवाल का कहना है कि राजस्थान ही नहीं देश में केवल भीलवाड़ा एक मात्र टेक्सटाइल शहर है, जहां 95 प्रतिशत से अधिक अत्याधुनिक लूम मशीन लगी हैं, लेकिन बिजली खर्च इतना है कि अन्य राज्यों से लागत मूल्य के आधार पर प्रतिस्पद्र्धा नहीं कर पा रहे हैं।
रीको व सरकार से मांग चुके पानी
औद्योगिक संगठन जिला प्रशासन के साथ सरकार से भी पीने के पानी की मांग कर चुके हैं। रीको के अधिकारियों से भी ग्रोथ सेन्टर में पानी मांगा, लेकिन उपलब्ध कराने के कोई साधन ही नहीं है। इसे लेकर संभागीय आयुक्त के सामने भी यह मुद्दा रखा गया था। चम्बल योजना के माध्यम से पीने का पानी दो साल से मांग रहे हैं, लेकिन नहीं मिल रहा है।
अतुल शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष भीलवाड़ा टेक्सटाइल ट्रेड फेडरेशन

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