>>: देश के सबसे लम्बे धरने पर बैठे मजदूर अब मांगने लगे हैं मौत

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जयपुर। यहां दर्द है पेट की भूख का। दो जून की रोटी के जुगाड़ का। आंखों में आक्रोष है, सरकार की बेपहरवाही का। यह पीड़ा है 23 वर्ष से धरने पर बैठे जयपुर में चलने वाली मेटल कंपनी के कर्मचारियों की। दर्द की इंतिहा कहा तक पहुंच गई, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि धरने पर बैठे 74 वर्षीय रमेश शर्मा से मजदूर दिवस से पूर्व बात की गई तो उनके मुंह से एक ही शब्द निकला...भगवान दे चाए सरकार अब तो मौत चाहिए। रमेश शर्मा का कहना है कि इंसाफ के लिए वह हर दिन साइकिल से धरना पर आते हैं। दिन भर इसी आशा में बैठे रहते हैं कि उन्हें हक का पैसा देने के लिए कोई आएगा। लेकिन अब तो कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा है। यह स्थिति महज रमेश शर्मा की नहीं है। मेटल कंपनी के कर्मचारी रहे ओमप्रकाश, राकेश शर्मा, कैलाश मेहरा, कालूलाल यादव व फूलचंद भी यह ही कहते हैं कि उन्हें इंसाफ कब मिलेगा, किसी को कुछ पता नहीं है।


देश का सबसे लम्बा धरना प्रदेश की राजधानी में
रेलवे स्टेशन के पास स्थित जयपुर मेटल्स एंड इलेक्ट्रीकल्स के बाहर कंपनी के कर्मचारी पिछले 23 वर्ष से आंदोलन कर रहे हैं। 11 नंवबर, 2005 से लगातार वे कंपनी के कार्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। कर्मचारी यूनियन के महामंत्री कन्हैयालाल शर्मा कहते हैं वर्ष 2000 में 30 सितंबर को कंपनी के ताला क्या लगा 1558 मजदूरों का निवाला ही छिन गया। लोकतंत्र में संघर्ष से जीत को देखते हुए कर्मचारियों ने इंसाफ के लिए धरना शुरू किया, लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि 550 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई। कर्मचारी नेता हनुमान मेहरा कहते हैं कि सरकार ने वर्ष 2008 में कर्मचारियों से समझौता किया था। उस दौरान निजी कंपनी से 10 फीसदी भुगतान भी करवाया गया, लेकिन बाद में कंपनी को दिवालिया घोषित कर मामले को न्यायालय में उलझा दिया गया। सरकार चाहे तो मजदूरों को राहत देकर उनका बचा हुआ जीवन संवार सकती है।

दो बेटियों की शादी कर दी....अब इलाज कैसे करवाऊ
लोकतंत्र के प्रति विश्वास और उम्मीद के साथ इंसाफ की मांग को लेकर बैठे मजदूरों की घर की आर्थिक स्थिति बेहद ही खराब हो गई है। पास ही रहने वाले रमेशचंद्र के घर पहुंचे सामने आया कि यह दंपत्ति कठिन परिस्थितियों में जीवन जी रहा है। रमेश चंद्र का कहना है कि उसके तीन बेटियां है। किसी तरह तीनों बेटियों की शादी कर दी, लेकिन अब उनके पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं है। चिंता के चलते रमेश चंद्र के हाथ-पैरों में कंपन की स्थिति हो गई है, लेकिन पैसों के अभाव में वह उपचार नहीं करवा पा रहा है।

करोड़ों का भवन बना कबाड़ खाना
जयपुर मेटल कारखाना 56,000 वर्ग गज ज़मीन पर बना है। शहर के मध्य में होने के कारण इस जमीन की कीमत पांच सौ करोड़ से ज्यादा है। इसके बावजूद यह कारखाना अब कबाडख़ाने में तब्दील हो गया है। गार्ड के गेट से लेकर अंदर तक गंदगी का आलम है। जिस गेट से सैकड़ों मजदूर हर दिन कारखाने में जाते थे। वहां से अब अंदर भी नहीं जाया जा सकता।

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