नौगांवा. राजस्थान के मेवात क्षेत्र के बकरों की इन दिनों मायानगरी मुम्बई में भारी मांग है। यहां के बकरों की बकरीद के मौके पर मुम्बई में खूब खरीदारी होती है।
मुम्बई की देवनार मण्डी प्रमुख बकरा मण्डी के रूप में जानी जाती है, जहां से अच्छी किस्म के बकरे दुबई समेत अनेक इस्लामिक देशों में निर्यात किए जाते हैं। बकरीद पर कुर्बानी के लिए भेजे जाने वाले बकरों में मेवात के बकरों को खास तरजीह दी जाती है। बकरीद पर बकरों की बढती मांग से मेवात के बकरा पालकों के वारे न्यारे हो रहे हैं। गत बकरीद पर यहां से भेजी गई बकरों की एक खेप में एक बकरे की कीमत सत्तर हजार रुपए से भी अधिक लगाई गई। मेवात से गए दर्जनों बकरों के दाम भी इसी बकरे की कीमत के आस-पास रहे।
मेवात अंचल में कई सालों के दौरान बकरों के मिल रहे अच्छे दामों ने लोगों को इस व्यवसाय की तरफ तेजी से आकर्षित किया है। रामगढ उपखण्ड के अलावलपुर, रब्बाका, मूनपुर, रसगण शेरपुर, खैरथला, सुन्हैडा करमला, धानौता तथा बुर्जा सहित दर्जनों गांवों के लोगों ने बकरा बोले तो कमाई के मंत्र को समझ लिया। रसगण गांव में अधिकतर आबादी बकरा पालन व्यवसाय से जुडी हुई है। मेवात क्षेत्र के इस छोटे से गांव में सबसे ज्यादा बकरे पाले जाते हैं। मुबंई में सत्तर हजार का बकरा भी इसी गांव से भेजा गया था। आमतौर पर एक बकरा सात से बारह हजार रूपयों के बीच दाम दे जाता है, लेकिन बकरीद पर इसकी कीमत इसके वजन और कद-काठी के अनुरूप दो से तीन गुणा अधिक हो जाती है। बकरीद के समय प्रतिदिन आठ से दस गाडियां मुम्बई के लिए जाती है। रसगण गांव के दरबार ङ्क्षसह, अमरजीत ङ्क्षसह तथा इस्माईल का कहना है कि बकरों से भरा एक ट्रक 3-4 लाख रुपए की कमाई दे जाता है। एक ट्रक का भाडा लगभग 60-70 हजार तक लगता है और एक ट्रक में चालीस से पचास बकरें तक ले जाए जा सकते है। बकरा पालकों को एक बकरा बिक्री तक के लिए तैयार करने में लगभग एक वर्ष लगता है। कुर्बानी के लिए 14 माह का बकरा उपयुक्त माना जाता है। बकरे के पालन पोषण और मुम्बई मण्डी तक का खर्चा 5-6 हजार बैठता है।
मक्का की हुई काफी खपत
बकरा पालन के बढते व्यवसाय के मददेनजर क्षेत्र में इस बार मक्का की काफी खपत हुई है। बकरा पालकों को बकरों में पनपने वाली बीमारियां भी उनके लिए चिन्ता का विषय रहती हैं। बकरा पालकों के अनुसार दस फीसदी बकरे बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। पशु चिकित्सक बताते हैं कि बकरों में सर्दियों में निमोनिया हो जाता है। इसके अलावा बकरों में डायरिया होता है, जिनका ईलाज तो आसानी से उपलब्ध हो जाता है। परन्तु बकरों में चैत्र एवं बैशाख में फडका रोग होता है। जिसके लिए पूर्व में ही टीकाकरण कराना चाहिए एवं इस रोग से सुरक्षित रखने के लिए बचाव के तरीके अपनाने चहिए।
मंगाए जाते है बालाहेडी और जोधुपर से
मेवात क्षेत्र में दो नस्ल के बकरे पालने में रूचि ली जाती है। इसमें देशी नस्ल तथा तोतापुरी दोनों ही नस्लों के बकरे बालाहेडी और जोधुपर से मंगाए जाते है। आमतौर पर बकरा पालक दो-तीन माह के बच्चें को खरीदने में दिलचस्पी लेता है। जो 4 से 5 हजार में मिलता है। बकरा पालक महेश कुमार, ओमप्रकाश तथा शम्मी का कहना है कि शिशु को हष्ट-पुष्ट बनाने के लिए जौ, मक्का, ज्वार, पीपल व झीडा की लोंग, तिल का तेल और हरे चारे की खुराक खिलाई जाती है। खासतौर पर मक्का की खुराक तेजी के साथ बकरा को मोटा ताजा बना देती है और 14 माह की आयु का बकरा ईंद के मौके पर कुर्बानी के लिए तैयार हो जाता है।