विनोदसिंह चौहान/राजसमंद. Rajasthan Assembly Election 2023: महाराणा कुंभा की धरती कुंभलगढ़ का इतिहास सुनकर भुजाएं फडक़तीं है। खून उबल जाता है। करीब साढ़े चार सौ साल पहले निर्मित कुंभलगढ़ दुर्ग और इसके चारों तरफ चीन की दीवार की तरह करीब 36 किलोमीटर लंबी अभेद्य दीवार आज भी दुनिया को हमारे शौर्य और पराक्रम की कहानियां कहतीं है। कभी यहां वीरों के रक्त से धरा लाल हो जाया करतीं थी, आज पानी की बूंद-बूंद को तरस रही है। यहां का इतिहास जितना समृद्ध है, वर्तमान उतना ही अभावों से भरा। कुंभलगढ़ और भीम विधानसभा क्षेत्र में 150 किलोमीटर तक फैले सैंकड़ों गांव पानी को तरस रहे हैं। कुंभलगढ़ में सालाना करीब आठ लाख से ज्यादा देसी-विदेशी सैलानी वीरों की धरती पर मत्था टेकने आते हैं, लेकिन पेयजल और परिवहन के अभाव में उनकी यात्रा काफी मुश्किलों भरी है।
सरकारें बदलती रहीं...नहीं बदली किस्मत
सुबह आठ बजे पाली से रवाना होकर चारभुजा नाथ मंदिर के पास गाड़ी रोककर चर्चा छेड़ी तो पेयजल संकट की पीड़ा लोगों की आंखों और चेहरे पर साफ नजर आई। स्थानीय लोगों के मन में टीस है कि सरकारें बदलती रहीं, लेकिन उनकी किस्मत नहीं बदली। क्षेत्र के भोलेश्वर प्रसाद पालीवाल ने कहा कि बरसों पहले पूर्व सिंचाई मंत्री स्व. हीरालाल देवपुरा ने बेड़च नाका पर बांध बनाने के लिए शिलान्यास किया था, तब से आज तक चारभुजा, मानावतों का गुढ़ा, छीलवाड़ा, सुरावड़, इच्छेड़, सुखार, बोराणा सहित करीब 35 गांव बांध की बाट ही जोह रहे हैं। यहां का समूचा पानी मारवाड़ चला जाता है और हम 800 रुपए का टैंकर डलवाने के लिए मजबूर हैं। शिलान्यास वाले पत्थर को देखकर मन उखड़-सा जाता हैं। यहां से हम आगे बढ़ते रहे और पेयजल किल्लत का मुद्दा साथ-साथ चलता रहा।
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एक मटका पानी की कीमत 10 रुपए
कुंभलगढ़ के गोमती चौराहे पर चाय पीने रुके तो बातों-बातों में दुकानदार मांगीलाल ने बताया कि यहां कोई सवारी वाहन नहीं रुकता। पेयजल किल्लत के चलते सरकार ने यूरिनल तक नहीं बनाए। पानी की कमी के कारण उद्योग-धंधे नहीं पनप रहे। व्यापारी रेहड़ी वालों से मीठा पानी खरीदकर काम चला रहे हैं, वह भी एक मटका भरने के 10 रुपए वसूल रहे हैं।
भीम : नरेगा ही भर रहा पेट
भीम विधानसभा कहने को तो अरावली पर्वतमाला से घिरी हुई है और चारों तरफ हरियाली भी है, लेकिन यहां के बाशिंदों के जीवन में अभी भी खुशहाली का अभाव है। भीम मगरा इलाका है। यहां रोजगार बड़ा मुद्दा है। जीवन यापन के लिए लोग गुजरात और महाराष्ट्र पलायन करते हैं। बीसलपुर बांध से पानी की परियोजना स्वीकृत हुई है। करीब 900 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ है, जिससे पानी की समस्या हल होने की उम्मीद बंधी है। यहां नाई की दुकान पर बैठे लोगों से बातचीत में सामने आया कि क्षेत्र के लोग बेरोजगारी से त्रस्त हैं। सोहनदास कहते हैं, लोग नरेगा में मजदूरी के लिए जाते हैं, तब जाकर चूल्हा जलता है। यहां कोई उद्योग नहीं है। राधेश्याम सैन का कहना था कि सरकार ने भरोसा दिलाया था कि भीम को चंबल से जोड़ेंगे, लेकिन अब तक इंतजार है। यहां से मात्र पांच किलोमीटर आगे चंबल का पानी आ रहा है, क्योंकि वह क्षेत्र भीलवाड़ा से जुड़ा है।
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सरकारी इलाज से खुश हैं ग्रामीण
भीम के उपजिला चिकित्सालय में इलाज के लिए आए मरीजों से बातचीत की तो नि:शुल्क दवा और इलाज को उन्होंने बेहतर बताया। शिला देवी का कहना था कि ग्रामीण इलाकों में चाहे पानी-बिजली की किल्लत है, लेकिन नि:शुल्क दवा और इलाज सरकार की बड़ी सौगात है।
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