>>: क्रोध हटाएं, मुस्कान बढ़ाएं, कषायों से मुक्ति पाएं : संत ललितप्रभ

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उदयपुर. किसी भी व्यक्ति के लिए वेश का परिवर्तन करके संत बनना सरल होता है, पर स्वभाव सुधारकर संत बनना जीवन की महान साधना है। केवल ड्रेस और एड्रेस बदलने से व्यक्ति को साधना का निर्मल परिणाम नहीं मिल सकता जब तक की वह अपना नेचर नहीं बदल लेता। दियासलाई दूसरों को जलाने के लिए जलती है पर दुसरा जले या न जले पर खुद को तो जलना ही पड़ता है। ऐसे ही हमारा क्रोध और कषाय है जो दूसरों के बजाय हमें ज्यादा दुखी करता है।
यह बात राष्ट्र-संत ललितप्रभ ने मंगलवार को टाउन हॉल प्रांगण में धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कषाय से आत्मा का पतन होता है। हमारा अंतरमन उजाले के बजाय अंधेरे में जाता है। जैसे जानवर के गले में डोरी डालकर चाहे जिस दिशा में खींचा जा सकता है वैसे ही कषायों के पास में बंधा हुआ इंसान क्रोध, मान, माया में घिरा रहता है। उन्होंने कहा कि अहंकार के कषाय से बाहर निकलना चाहिए। दुनिया में सब कुछ करना सरल है पर सरल होना मुश्किल है।
समारोह का शुभारंभ जैन सोशल ग्रुप मैन की महिला विंग एवं देलवाड़ा जैन समाज के वरिष्ठ श्रावकों ने दीप प्रज्वलन के साथ किया। संचालन हंसराज चौधरी ने किया। समिति के लाभार्थी वीरेन्द्र सिरोया ने बताया कि बुधवार को सुबह 8.45 बजे संत ललितप्रभ महाराज कौन-सी करें तपस्या जो दूर करें समस्या पर प्रवचन देंगे।

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