>>: पोषक तत्वों से भरपूर भोजन नहीं करते भारतीय, डेयरी उत्पादों पर ज्यादा जोर

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नई दिल्ली। स्वस्थ शरीर के लिए संतुलित आहार लिया जाना जरूरी है। लेकिन एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय फलों और सब्जियों की तुलना में डेयरी उत्पादों का सेवन अधिक करते हैं। उत्तर और दक्षिण भारतीयों के खानपान को लेकर किए गए सर्वे में दावा किया गया कि ग्रामीण और गरीब महिलाएं इस अंतर से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हैं। 'उत्तर और दक्षिण भारत में आहार पैटर्न: ईट-लैंसेट आहार अनुशंसाओं के साथ तुलना' नामक शोध में कम पोषक तत्वों के सेवन पर चिंता व्यक्त की गई है।

थाली में बिगड़ रहा पोषण का गणित:

सर्वे के परिणाम 2019 में हरियाणा और आंध्र प्रदेश में 8,762 वयस्कों के सर्वेक्षण पर आधारित हैं। शोध में भाग लेने वालों में से आधी महिलाएं और ग्रामीण थे। ईट-लैंसेट दिशानिर्देशों के अनुसार भोजन में साबुत अनाज (32%) और शाकाहार से प्राप्त प्रोटीन (23%) का महत्वपूर्ण हिस्सा और डेयरी खाद्य पदार्थ छह प्रतिशत होना चाहिए। लेकिन शोध से पता चला कि भारतीय 25 फीसदी डेयरी खाद्य पदार्थ, 23 प्रतिशत अतिरिक्त वसा, केवल 15 प्रतिशत साबुत अनाज और चार फीसदी शाकाहार से प्रोटीन प्राप्त करते हैं। साबुत अनाज, सभी सब्जियां, फल, डेयरी और अतिरिक्त वसा का उपभोग दक्षिण भारत में उत्तर भारत की तुलना में अधिक था। जबकि स्टार्चयुक्त सब्जियों और अतिरिक्त शर्करा की खपत की औसत मात्रा उत्तर भारत में ज्यादा देखी गई।

महिलाएं ज्यादा खा रहीं स्टार्च युक्त सब्जियां:

शोध में शामिल हुए लोगों का आहार मुख्य रूप से पौधों पर आधारित और डेयरी में उच्च था। लेकिन उनके भोजन में सब्जियों और फलों जैसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी थी। जब शहरी और ग्रामीण निवासियों की तुलना की गई तो शहरों में स्टार्च से युक्त सब्जियों, अन्य सब्जियों, फलों और प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों का उपभोग अधिक था। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में साबुत अनाज और डेयरी उत्पादों की खपत अधिक थी। पुरुषों और महिलाओं के बीच विभिन्न खाद्य पदार्थों की खपत भी अलग-अलग पाई गई। स्टार्च युक्त सब्जियों और सभी सब्जियों की खपत महिलाओं में ज्यादा है, जबकि पुरुष मांसाहार के जरिए प्रोटीन की प्राप्ति अधिक करते हैं। सर्वे के मुताबिक अमीर सब्जियों, फलों और डेयरी उत्पादों का उपभोग अधिक करते हैं।

कार्डियोमेटाबोलिक रोगों का खतरा बढ़ने की आशंका :

भारत में कुपोषण और कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के भारी बोझ को देखते हुए सर्वे के परिणाम चिंताजनक हैं। डेयरी में कार्बन फुटप्रिंट अधिक होता है जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ सकता है। डेयरी के अलावा गरीबोंं में अतिरिक्त वसा की खपत भी अधिक देखी गई। पूर्व में शहरी बस्तियों में हुए शोध में भी पाया गया था कि निम्न सामाजिक-आर्थिक समूह से जुड़े लोग वसायुक्त भोजन का सेवन ज्यादा करते हैं। उच्च वसा वाला आहार मेटाबॉलिजम संबंधी जोखिमों को बढ़ाता है, इससे निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में कार्डियोमेटाबोलिक रोगों का खतरा बढ़ रहा है। जरूरी है कि गरीब और ग्रामीण आबादी पर विशेष ध्यान देने के साथ सभी के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को उपलब्ध और किफायती बनाने के लिए नीतिगत उपाय किए जाएं।

क्या है अनुशंसा: लैंसेट कमीशन की ओर से 2019 में तैयार किए गए ईट-लैंसेट दिशानिर्देश 2500 किलो कैलोरी प्रति दिन की सिफारिश करते हैं, जबकि भारतीय केवल 1560 किलो कैलोरी का ही रोजाना उपभोग करते हैं।

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