>>: ...तो तीन जिला प्रमुख होंगे

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जिला परिषद की राजनीति में होगा बड़ा बदलाव...अलवर के हिस्से में आएंगे 26 पार्षद
- नए जिलों में परिषद का होगा गठन, कोटपूतली-बहरोड़ में 12 व खैरथल-तिजारा जिले में जाएंगे 11 पार्षद

- पार्षदों की संख्या के मुताबिक अलवर में कांग्रेस का बहुमत, कोटपूतली-बहरोड़ में भाजपा के पाले में गेंद
- खैरथल-तिजारा में कांग्रेस व भाजपा के पास 5-4 पार्षद, अलवर परिषद का कार्यकाल अभी तीन साल शेष

अलवर. नए जिलों का गठन हो गया। विभागों की स्थापना चल रही है। ऐसे में जिला परिषद का भी गठन भी होगा। नए जिलों के जिला पार्षद अपने जिले में अपनी प्रस्तुति देंगे। माना जा रहा है कि नए जिलों के चलते परिषद की राजनीति में बड़ा बदलाव होगा। अलवर के हिस्से में 26 पार्षद ही बचेंगे। बाकी नए जिलों के पास 23 पार्षद चले जाएंगे। इससे पार्टियों के भी तमाम समीकरण बनेंगे भी और बिगड़ेंगे भी।

ऐसे समझें वोटों का गणित

जिला परिषद अलवर में जिला पार्षदों की संख्या 49 थी। जैसे ही नए जिलों का गठन हुआ तो पार्षदों का भी लगभग बंटवारा तय माना जा रहा है। कोटपूतली-बहरोड़ में 12 व खैरथल-तिजारा में 11 पार्षद जाएंगे। ऐसे में अलवर के हिस्से में 26 ही आएंगे। यहां कांग्रेस के पास बहुमत है। उनके पास 18 जिला पार्षद हैं। वहीं भाजपा के हिस्से में 8 पार्षद आ रहे हैं। इसी तरह कोटपूतली-बहरोड़ में भाजपा के आठ व कांग्रेस के पास तीन पार्षद हैं। हालांकि कोटपुतली एरिया से भी कुछ पार्षद आएंगे। वहीं खैरथल-तिजारा में भाजपा के पास चार व कांग्रेस के पास 5 पार्षद हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि परिषद के लिए नए जिला प्रमुख बनेंगे तो अलवर में कांग्रेस के पास पूरा बहुमत है। वहीं कोटपूतली-बहरोड़ में अपना प्रमुख बनाना आसान नहीं होगा। खैरथल-तिजारा में भी टक्कर बराबर की है।

जहां से जो पार्षद जीते, सीमांकन के तहत उसी क्षेत्र में जाएंगे
जानकार कहते हैं कि नए जिलों का जो सीमांकन हुआ है उसी के आधार पर जिला पार्षद भी अपने-अपने क्षेत्रों में रहेंगे। यदि कोई पार्षद खैरथल से चुनाव जीतकर आया है तो वह उसी जिले का पार्षद कहलाएगा। वह दूसरी जिले में हस्तक्षेप नहीं कर पाएगा। हालांकि अभी सरकार की ओर से इसके लिए स्पष्ट आदेश नहीं आए हैं। बताते हैं कि जिला परिषद का कार्यकाल करीब तीन साल से अधिक का है। ऐसे में तीन साल तक एक ही जगह परिषद का संचालन नहीं हो सकता। जब सभी विभागों का गठन हो रहा है तो ऐसे में परिषद को कैसे छोड़ा जा सकता है।

प्रमुख के चुनाव की भी चल रही तैयारी
जानकार कहते हैं कि नए जिलों के गठन के साथ ही कुछ जिला पार्षद प्रमुख बनने का सपना देखने लगे हैं। वह अपने-अपने पक्ष में माहौल बना रहे हैं। अपने जिलों में पार्टियों का दौर भी शुरू हो गया है।

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