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मारवाड़ के नागौर से अधिक कौन जाने पानी की पीर, इसलिए करते हैं यह पुख्ता इंतजाम, जानिए... Wednesday 23 August 2023 06:42 AM UTC+00 नागौर. मारवाड़ क्षेत्र के नागौर जिले में प्राचीन काल से ही पानी की किल्लत के चलते बारिश के पानी की बूंद-बूंद सहेजने की परम्परा है। आज भले ही जिले में इंदिरा गांधी नहर के माध्यम से हिमालय का पानी आ गया है, लेकिन गांवों में बसने वाले लोग आज भी बारिश का पानी पीते हैं। जिले के 'थळी' बेल्ट (मरूस्थली क्षेत्र) में जहां नाडी-तालाबों में पानी ज्यादा दिन तक नहीं ठहरता है, वहां ग्रामीणों ने बड़े टांके बना रखे हैं और वर्षा का पानी संजोकर वर्ष भर पीने के साथ पशुओं को पिलाने व नहाने-धोने में भी काम लेते हैं। गांव हो या ढाणी, ग्रामीणों ने अपने घरों के पास करीब एक लाख लीटर तक की क्षमता वाले टांके बना रखे हैं, जिनमें घरों की छतों के साथ टांके के आसपास प्लेटफार्म बनाकर पानी भरते हैं, जो उनके लिए दो-दो साल तक चल जाता है। सरकारी विभागों के लिए आइना
सांईजी का टांका में जल संग्रहण की अनूठी मिसाल जलसंरक्षण परियोजना के तहत करोड़ो रूपए खर्च करने के बावजूद सरकार जो काम नहीं कर पाई, वह काम एक संत ने यहां कर दिखाया है। सांई जी महाराज के शिष्यों का कहना है कि साल 1938 में चंूटीसरा ठाकुर के कहने पर सांई जी महाराज यहां आकर बसे थे। क्षेत्र में पानी की कमी होने के कारण उन्होंने यहां आने के बाद एक टांका व प्याऊ का निर्माण करावाया। सांई जी महाराज का टांका धार्मिक स्थलकी व्यवस्था एवं वातावरण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस तीर्थस्थल को फिलहाल ट्रस्ट संभाल रहा है। एक बार भर जाए तो सालभर निश्चिंत |
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