>>: मारवाड़ के नागौर से अधिक कौन जाने पानी की पीर, इसलिए करते हैं यह पुख्ता इंतजाम, जानिए...

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नागौर. मारवाड़ क्षेत्र के नागौर जिले में प्राचीन काल से ही पानी की किल्लत के चलते बारिश के पानी की बूंद-बूंद सहेजने की परम्परा है। आज भले ही जिले में इंदिरा गांधी नहर के माध्यम से हिमालय का पानी आ गया है, लेकिन गांवों में बसने वाले लोग आज भी बारिश का पानी पीते हैं। जिले के 'थळी' बेल्ट (मरूस्थली क्षेत्र) में जहां नाडी-तालाबों में पानी ज्यादा दिन तक नहीं ठहरता है, वहां ग्रामीणों ने बड़े टांके बना रखे हैं और वर्षा का पानी संजोकर वर्ष भर पीने के साथ पशुओं को पिलाने व नहाने-धोने में भी काम लेते हैं। गांव हो या ढाणी, ग्रामीणों ने अपने घरों के पास करीब एक लाख लीटर तक की क्षमता वाले टांके बना रखे हैं, जिनमें घरों की छतों के साथ टांके के आसपास प्लेटफार्म बनाकर पानी भरते हैं, जो उनके लिए दो-दो साल तक चल जाता है।

सरकारी विभागों के लिए आइना
फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे नागौर जिले के लोगों को मीठा पानी उपलब्ध करनाने के उद्देश्य से केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से जिले में करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन आज भी कई गांव-ढाणियां नहरी पानी से वंचित हैं। इसके साथ सरकार ने सरकारी विभाग के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य किया है, जिसकी पालना हो भी जाए तो टांकों में भरने वाले पानी को काम नहीं लिया जाता है, जबकि गांवों में लोग वर्षों से वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपनाकर पानी की समस्या का समाधान कर रहे हैं।

नागौर. चूंटीसरा के पास सांई जी महाराज ने करीब 80 साल पहले यहां पानी की समस्या को देखते हुए टांकों का निर्माण करवाया।

 

सांईजी का टांका में जल संग्रहण की अनूठी मिसाल
नागौर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांई जी महाराज का टांका वर्षा जल संरक्षण की मिसाल बना हुआ है। वर्षा का पानी एकत्र करने के लिए सांई जी के मंदिर परिसर में कुल 6 टांके बने हुए हैं और सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। व्यवस्था ऐसी कि एक टांका भरने के बाद अतिरिक्त पानी अपने आप दूसरे टांके में चला जाता है। क्षेत्र में भू-जल खारा व गहरा होने के कारण आस-पास के ग्रामीणों ने सांई जी महाराज से प्रेरित होकर वर्षा जल संरक्षण के लिए प्रत्येक घर व खेत में टांका बना लिया है।

जलसंरक्षण परियोजना के तहत करोड़ो रूपए खर्च करने के बावजूद सरकार जो काम नहीं कर पाई, वह काम एक संत ने यहां कर दिखाया है। सांई जी महाराज के शिष्यों का कहना है कि साल 1938 में चंूटीसरा ठाकुर के कहने पर सांई जी महाराज यहां आकर बसे थे। क्षेत्र में पानी की कमी होने के कारण उन्होंने यहां आने के बाद एक टांका व प्याऊ का निर्माण करावाया। सांई जी महाराज का टांका धार्मिक स्थलकी व्यवस्था एवं वातावरण हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस तीर्थस्थल को फिलहाल ट्रस्ट संभाल रहा है।

एक बार भर जाए तो सालभर निश्चिंत
मेरे सहित गांव में लगभग हर घर में बड़े टांके बने हुए हैं, जो बारिश में एक बार पूरा भर जाए तो फिर सालभर पानी को लेकर चिंता नहीं रहती है। थळी क्षेत्र के गांवों में ज्यादातर लोगों ने अलग अलग दो टांके बनवाए हुए हैं। एक सिर्फ पीने के पानी के लिए काम में लिया जाता और दूसरा नहाने और पशुओं को पानी पिलाने के लिए काम लिया जाता है। तालाब में जब तक पानी रहता है तब तक उसी का पानी काम लेते हैं। हमारे टांके की क्षमता करीब 20 टैंकर की है।
- नानकराम घंटियाला, किसान, थलांजु, नागौर

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