Raksha Bandhan : चातुर्मास के पहले सबसे बड़े पर्व रक्षाबंधन और श्रावणी उपाकर्म को लेकर पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता से 30-31 अगस्त लेकर हिंदू समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इस बाबत बुधवार को जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे की अध्यक्षता में विद्वानों की बैठक हुई। विश्वविद्यालय प्रवक्ता शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया कि वैदिक सनातन धर्म के अंतर्गत किसी भी व्रत या पर्व का निर्णय आकाशीय ग्रह पिंडों की गति स्थिति से प्राप्त मानों की परिगणना करते हुए धर्मशास्त्र में निर्दिष्ट व्यवस्था के अंतर्गत होता है। श्रावण की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला उपाकर्म एवं रक्षाबंधन महत्वपूर्ण पर्व है।
रात्रि 9.02 बजे के बाद रक्षाबंधन शास्त्रसम्मत - शास्त्री कोसलेंद्रदास
शास्त्री कोसलेंद्रदास ने बताया, इस वर्ष पूर्णिमा का मान 30 अगस्त को पूर्वाह्न से आरंभ होकर 31 अगस्त सुबह तक रहेगा। 31 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने का निर्णय दे रहे हैं, जो धर्मशास्त्र के आधार पर ठीक नहीं है। पूर्णिमा सुबह 10.59 बजे से शुरू होकर अगले दिन सुबह 7.06 बजे तक रहेगी। अतः समाज में व्याप्त भ्रम के निवारण के लिए विद्वानों ने राजस्थान में प्रचलित विविध पंचांगों में वर्णित पूर्णिमा के मानों का परीक्षण किया। इसके अनुसार 30 अगस्त को प्रातः 10.59 के बाद उपाकर्म तथा रात्रि 9.02 बजे के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्रसम्मत है।
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कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे का मत
कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा, यदि पूर्णिमा का मान दो दिन हो रहा हो तथा प्रथम दिन सूर्योदय के एकादि घटी के बाद पूर्णिमा का आरंभ होकर द्वितीय दिन पूर्णिमा 6 घटी से कम है तो पूर्व दिन भद्रा से रहित काल में रक्षाबंधन करना चाहिए। इस वर्ष 31 अगस्त को पूर्णिमा छह घटी से कम है तथा 30 अगस्त को 9.02 बजे तक भद्रा है। अतः 30 अगस्त को ही रात्रि में भद्रा के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्रसम्मत है क्योंकि रात्रिकाल में भी रक्षाबंधन करने का विधान है।
श्रावण पूर्णिमा को भी होता है उपाकर्म - प्रो. दुबे
प्रो. दुबे ने बताया कि श्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म भी होता है। शुक्ल यजुर्वेदीय लोगों को श्रावणी उपाकर्म 30 अगस्त को करना चाहिए। उपाकर्म में भद्रा दोष नहीं लगता। अत: 30 अगस्त को ही प्रातः 10.59 के बाद उपाकर्म तथा रात्रि 9.02 बजे के बाद रक्षाबंधन करना शास्त्रसम्मत है।
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रक्षा बंधन पर ज्योतिषियों की राय...
भद्रा के बाद राखी बांधना शुभ - पं.चंद्रशेखर शर्मा
सम्राट पंचाग के निर्माता ज्योतिषाचार्य पं.चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक पूरे दिन दिन पूर्णिमा तिथि में भद्रा हो तो रक्षाबंधन रात्रिकाल में भी भद्रारहित पूर्णिमा तिथि रहते किया जा सकता है। 31 अगस्त गुरुवार रक्षाबंधन के लिए उचित नहीं है। पं.डॉ.रवि शर्मा ने बताया 30 अगस्त को रात्रि में भद्राकाल के बाद ही राखी बांधें। बंशीधर पंचाग के निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक 30 अगस्त को भद्रा खत्म होने के बाद ही राखी बांधने के लिए शास्त्रानुसार शुभ दिन है।
पं.घनश्याम लाल स्वर्णकार ने बताया, राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
ज्योर्तिविद पं.घनश्याम लाल स्वर्णकार के अनुसार, 30 अगस्त बुधवार को भद्राकाल खत्म होने के बाद बहनें अपने भाइयों को रात 9.02 बजे से मध्यरात्रि रात 12.28 बजे तक शुभ मुहूर्त में राखी बांधेगी। पूर्णिमा के शुरुआत के साथ ही भद्रा भी शुरू हो जाएगी। भद्रा का असर रात 9.02 बजे खत्म होगा। रक्षाबंधन का पर्व भद्रा के पश्चात प्रदोषकाल में मनाना शास्त्रसंवत हैं।
इस साल 31 अगस्त गुरुवार को पूर्णिमा त्रिमुहूर्त नहीं
इस साल 31 अगस्त गुरुवार को पूर्णिमा त्रिमुहूर्त नहीं है। अत्यंत जरूरी होने पर 30 अगस्त को भद्रा पुच्छकाल में 30 अगस्त शाम 5.19 से शाम 6.31 बजे राखी श्रीकृष्ण के समक्ष दीप जलाकर बांधी जा सकती है।
रक्षाबंधन 30 अगस्त को मनाना चाहिए - ज्योतिषाचार्य पं.सुधाकर पुरोहित
ज्योतिषाचार्य पं.सुधाकर पुरोहित ने बताया कि शास्त्र कथित नियमों के शब्दों का अर्थ पंचांगकार भिन्न रूप में लेते हैं। सामान्यतः श्रावण पूर्णिमा के दिन भद्रा रहित अपराह्न काल में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है। भद्रा की स्थिति को लेकर पुरुषार्थ चिंतामणि ग्रंथ में दो मत प्रतिपादित हैं। इस वर्ष पूरे भारत में 31 अगस्त को पूर्णिमा सुबह 7.06 तक है, यानी सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक कहीं नहीं है। इसलिए रक्षाबंधन 30 अगस्त को मनाना चाहिए।
भद्रा काल में नहीं मनता रक्षाबंधन
भद्रा चाहे स्वर्ग में हो, पृथ्वी लोक पर हो अथवा पाताल लोक में हो किसी भी स्थिति में भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं किया जाता।
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