>>: VIDEO...गुपचुप रूप से प्रतापसागर तालाब में डाला जा रहा है शहर के नालों का गंदा पानी

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तालाब के गंदे नाले के बड़े स्थल के रूप में बदलने से बिगड़ी जैविक पर्यावरणीय स्थिति
प्रतापसागर तालाब के गंदे नाले में बदलने के बाद भी सो रही शहर की सरकार व जिम्मेदार अधिकारी
नागौर. शहर के निकटवर्ती बालवा रोड पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित होने के बाद भी नया दरवाजा के निकट स्थित प्रतापसागर तालाब में आवासीय बस्तियों का गंदा पानी डाला जा रहा है। गंदे पानी को तालाब में डाले जाने के लिए बाकायदा पाइपलाइन भी लगी हुई है। अनुमानत: एक दिन में औसतन एक हजार लीटर से ज्यादा का पानी इसमें डाला जा रहा है। इसके चलते प्रतापसागर तालाब में अब बरसात का नहीं, बल्कि सीवरेज का गंदा पानी बह रहा है। हालांकि देखने पर यह एक तालाब के रूप में नजर आता है, लेकिन सीवरेज के जा रहे पानी के कारण तालाब के किनारों पर कई जगह कचरों के बिखरे ढेर खुद-ब-खुद जिम्मेदारों की पोल खोलते नजर आने लगे हैं।
शहर के नया दरवाजा जाने वाले का प्रतापसागर तालाब काफी पुराना बताया जाता है। बताते हैं कि पहले आसपास के लोग इस तालाब से ही पानी पीते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। सीवरेज में जाने वाला गंदा पानी गुपचुप रूप से यहां पर पाइपलाइन के माध्यम से डाला जाने लगा। बताते हैं कि यह सिलसिला पिछले चार से पांच सालों से लगातार चल रहा है। गंदे पानी के लगातार डाले जाने के कारण तालाब में मूल रूप से रहने वाला बरसाती पानी भी अब गंदा हो चुका है। स्थिति यह हो गई है कि इसके दोनों ओर के किनारों पर सीढिय़ों के पास खतरनाक कचरों का भंडार जमा हो चुका है। इसकी वजह से इस तालाब की जैविक प्रकृति बदलने के साथ ही आसपास न केवल दुर्गन्ध का वातावरण बना रहने लगा है। विशेषज्ञों की माने तो तालाब को जल्द ही प्रदूषण मुक्त नहीं कराया गया तो फिर जैविक प्रदूषण के साथ ही अन्य पर्यावरणीय खतरनाक प्रभाव भी तेजी से पड़ेंगे।
सीवरेज के गंदे पानी में होते हैं खतरनाक तत्व
जल में अन्य पदार्थों का मिलना या जल में उपस्थिति पदार्थों की मात्रा का बढऩा प्रदूषण कहलाता है। पॉल्यूशन शब्द लैटिन भाषा के शब्द पोल्यूशनम से लिया गया है। इसका अर्थ गन्दा करना है। जल मृदा व हवा में अतिरिक्त पदार्थों के एकत्रित होने से इनके गुणों में होने वाले परिवर्तन को ही प्रदूषण कहते हैं। इसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण का मुख्य स्रोत कचरा होता है। इस कचरे में निकिल, क्रोमियम, कोबाल्ट, कैडमियम, लेड सरीखे हानिकारक धातुओं के कारण फाइटो टॉक्सीसिटी लेवल अधिक हो जाता है। कचरा के सडऩे निकलती खतरनाक गैसें अपना प्रभाव छोडऩे के साथ ही जो दुर्गन्ध उत्पन्न कर, पर्यावरण को भी प्रदूषित करती हैं्र।
प्रशासन को तुरन्त आवश्यक कदम उठाने चाहिए
पर्यावरणविद् पद्मश्री हिम्मताराम भांभू का कहना है कि प्रतापसागर तालाब में गंदे पानी का डाला जाना बंद नहीं हुआ तो फिर यह भूजल के साथ ही आसपास के जलस्रोत को भी प्रभावित करेगा। इसकी वजह से आसपास के क्षेत्रों में न केवल बीमारियां उपजेंगी, बल्कि जैविक प्रदूषण के चलते हालात और ज्यादा बिगड़ जाएंगे। इसमें हो रही उत्सर्जन की प्रक्रिया से निकलती गैसों के साथ बिखरे कचरे पूरे वातावरण को जहरीला बना कर रख देंगे। इसलिए प्रशासन को इस पर तत्काल आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
तालाब के नाले में परिवर्तित होने पर कहते हैं कृषि विशेषज्ञ
कृषि महाविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री डॉ. विकास पावडिय़ा बताते हैं कि के स्वच्छ जल को पशु तथा पेडो़ में देने के लिए तथा कई जगह पीने के लिए काम में लिया जाता है। गंदे नालों के पानी की उसमें मिश्रित होने से वह पानी काफ़ी हद तक अनुपयोगी हो जाता है। कई बार कई बारी तार तथा वेस्ट मैटेरियल भी उसमें शामिल होते हैं जो जानवरों तथा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। सीवरेज में जाने वाले गंदे पानी से सिंचाई भी नहीं की जा सकती है। इसमेेंं मौजूद विषैले पदार्थ जलीय जीवन को नष्ट कर देते हैं। जलीय जीवन नष्ट होने पर पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। तालाबों में सीवरेज पानी के मिलने से तालाबों को शुद्ध जल भी दूषित हो जाता है साथ ही साथ दूषित जल की वजह से तालाबों की स्थिर जल में यूटरो्फीकेशन की वजह से ज़्यादा शैवालों का निर्माण हो जाता है । साथ ही साथ जल भी दूषित हो जाता है तथा जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग भी बढ़ जाती है जिससे जलीय जीव भी मर जाते हैं।
क्या कहते हंै जिम्मेदार...
गंदा पानी तो सीवरेज में जाता है। तालाब में जा रहा है तो फिर इसकी जांच करा ली जाएगी।
देवीलाल बोचल्या, आयुक्त नगरपरिषद नागौर


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