>>: Digest for December 12, 2023

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Table of Contents

नागौर जिले की प्रसिद्ध मातासुख- कसनाऊ लिग्नाइट परियोजना में कोयले का अथाह भंडार पड़ा है। राजस्थान में बाडमेर के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी परियोजना है।नागौर जिले इस कोयले को वर्ष 2004 से अब तक विभिन्न प्रकार के उपयोग के लिए सीमेंट फैक्ट्ररी, टैक्सटाइल उद्योग, ईंट भट्टा में उपयोग लिया जाता रहा है। हालांकि मातासुख खदान में निकलने वाले लिग्नाइट कोयले को पूर्व में सूरतगढ़ थर्मल में भी बिजली उत्पादन के लिए एक बार उपयोग में लिया गया था। सूत्रों की माने तो लिग्नाइट कोयले को अगर बिजली उत्पादन में काम में लिया जाए तो सरकार को यह कोयला कम लागत में बिजली उत्पादन दे सकता है, क्योंकि मातासुख लिग्नाइट कोयले में कार्बन की मात्रा बिटुमिनस कोयले के आसपास ही है।
एक जानकारी के अनुसार छतीसगढ़ से राजस्थान में आने वाले बिटुमिनस कोयले में कार्बन की मात्रा लगभग लिग्नाइट कोयले से दस प्रतिशत ही ज्यादा पाई जाती है। कोयला जलाने के दौरान कार्बन की मात्रा से ही कोयला कम व ज्यादा देर तक जलता रहता है।

बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग

जानकारी अनुसार बिजली उत्पादन के पावर प्लांट में कोयले को जलाकर पानी को भाप बनाने के काम में लिया जाता है। पानी भाप बनकर दूसरी यूनिट में लगे टर्बाइन को चलाया जाता है। टर्बाइन के साथ जुड़े अल्टीनेटर से बिजली उत्पादन होता है। इस प्रोसेस में कोयला जलाने के काम आता है। मातासुख लिग्नाइट खदान में निकलने वाला कोयला भी काफी ज्यादा ज्वलनशील है। गर्मी के दिनों में मांइस व कोयला गोदाम में पड़ा कोयला अपने आप जलना शुरू हो जाता है।

बिजली के खर्च को कम कर सकता है लिग्नाइट कोयला-
मातासुख लिग्नाइट खदान से अगर सरकार कोयले का ऑक्सन करे तो यह कोयला बिजली उत्पादन में काम आ सकता है। इस कोयले की खरीद से सरकार को कम रेट व ट्रांसपोर्ट का खर्च भी कम आएगा।

19 साल में निकला 40 लाख टन कोयला-

मातासुख लिग्नाइट कोयला खदान से बीस साल में आरएसएमएमएल की ओर से करीब चालीस लाख टन कोयला निकाला गया है। गौरतलब है कि वर्ष 2003 में मातासुख गांव में आरएसएमएमएल ने कोयला खदान की खुदाई शुरू की गई थी। वर्ष 2004 में आरएसएमएमएल की ओर से कोयला निकाल लिया गया, लेकिन इस दौरान माइंस में कोयले में पहले ही प्रचुर मात्रा में खारा पानी निकल आया। पानी को तोड़ कर भारी परेशानी का सामना करते हुए आरएसएमएमएल ने कोयला खनन जारी रखा। वर्ष 2010 तक आरएसएमएमएल मात्र साढे छ: लाख टन ही कोयला निकाल पाई। इस दौरान माइंस में बाधा बन रहे खारे पानी को मीठा कर जायल तहसील में देने का प्लान बना कर आरओ प्लांट बनाया गया। आरओ प्लांट 2009 में शुरू हो गया था। प्लांट में पानी की आपूर्ति देने के बाद मातासुख खदान में पानी कम होने लगा तो आरएसएमएमएल के लिए कोयला निकालने में आसानी होने लगी और वर्ष 2011 से मार्च 2022 तक आरएसएमएमएल ने साढे 33 लाख टन कोयला निकाल लिया गया।

कोयले की है प्रचुर मात्रा-
मातासुख लिग्नाइट कोयला खदान में आज भी लाखों टन कोयले का भंडार है, लेकिन खदान बीस माह से बंद होने से कोयले का खनन रूका हुआ है। वर्तमान में लिग्नाइट कोयले के भाव 2700 रुपए प्रति टन के आसपास है।

इनका कहना है
इस मामले को लेकर माइंस मैनेजर एसके बेरवाल ने बताया कि मातासुख लिग्नाइट खदान में लिग्नाइट कोयला निकलता है जो लिग्नाइट कोयला राजस्थान सहित देशभर में सप्लाई होता है। ऑक्सन के हिसाब से कोयले की आपूर्ति होती है। बिजली उत्पादन में इस कोयले के उपयोग व ऑक्सन को लेकर हमारे उच्चाधिकारी बता सकते हैं। मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है।

सूत्रों के अनुसार स्कूलों में 23 दिसम्बर तक अर्द्धवार्षिक परीक्षा चलेगी। अलग-अलग तिथि से शुरू हो रही इन परीक्षाओं के परिणाम पर शिक्षकों का भी आकलन किया जाएगा। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले के तकरीबन चालीस हजार विद्यार्थी दसवीं व बारहवीं बोर्ड की परीक्षा में बैठेंगे। नवीं से बारहवीं कक्षा के बच्चों की संख्या साठ हजार से अधिक बताई जा रही है। अध्यापन को लेकर शिक्षकों की शिकायत जग-जाहिर है। वर्ष 2022-23 की बोर्ड परीक्षा में कम रिजल्ट देने पर कई शिक्षकों को नोटिस तक जारी किए जा चुके हैं।

सूत्र बताते हैं कि अर्द्धवार्षिक परीक्षा के परिणाम को भी इस बार गंभीरता से लिया जा रहा है। उच्च अधिकारियों का कहना है कि दसवीं-बारहवीं बोर्ड की परीक्षा में तीन माह बाद बैठने वाले बच्चों की पढ़ाई की स्थिति क्या है, इससे पता चलेगा। यह भी सामने आया कि तीस फीसदी स्कूलों में कोर्स भी आधा-अधूरा सा है।

रिक्त पद से भी हाल-बेहाल

रिक्त पदों के चलते सरकारी स्कूलों के हाल खराब हैं। बरसों से खाली पड़े पदों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। कुछ पद हाल ही में भरे गए, लेकिन वो ऊंट के मुंह में जीरा की तरह हैं। करीब एक चौथाई से अधिक पद खाली हैं । 25 हजार 792 में से पांच हजार पद खाली हैं। जिले के करीब तीन हजार से अधिक स्कूलों का यह हाल है। कई स्कूल तो एक अथवा दो शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। हालत यह है कि दसवीं-बारहवीं का कोर्स पूरा कराने के लिए शिक्षकों की वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ रही है। सरकारी शिक्षकों की किल्लत से परिणाम बिगड़ रहा है। पिछले पांच साल में विषय के अनुरूप गणना करें तो परिणाम में अध्यापकों की किल्लत से तीन से पांच फीसदी की गिरावट आ रही है। शिक्षकों की तबादला नीति में हो रहे दांवपेंच भी इसका कारण बताए जाते हैं।

केवल दो-तीन शिक्षक से चल रहा है काम

सूत्रों का कहना है कि नागौर समेत कुछ अन्य शहरी/कस्बाई इलाकों को छोड़ दें तो सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की किल्लत साफ नजर आती है। मकराना के पास एक राउप्रा विद्यालय में केवल तीन शिक्षक हैं, ऐसे में आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को पढ़ाएं कैसे? आलम यह है कि गणित/अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापक नहीं हैं। ऐसा ही हाल मौलासर, पीलवा, खजावाना, मेड़ता समेत जिले के कई क्षेत्र में चल रहे स्कूलों का है। यहां तक कि सीनियर सैकण्डरी स्कूलों में विषय अध्यापक की तंगी खत्म नहीं हो पा रही।

इनका कहना

नवीं से बारहवीं कक्षा की अर्द्धवार्षिक परीक्षा सोमवार से शुरू हो रही है। इसका रिजल्ट बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों की तैयारी के संकेत देता है। स्कूली ड्रेस का वितरण भी शुरू हो गया है।-रामनिवास जांगिड़, कार्यवाहक सीडीइओ, नागौर।

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स्कूली ड्रेस वितरण शुरू
नागौर. लंबे समय से चल रहा स्कूली ड्रेस का इंतजार खत्म हो गया है। सोमवार को सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को ड्रेस बांटी गई। इसके साथ नवीं से बारहवी तक की अद्र्धवार्षिक परीक्षा भी शुरू हुई। नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को स्कूली ड्रेस वितरित होने लगी है। कुछ ब्लॉक में संभवतया एक-दो दिन में यह प्रारंभ होगा।

-जिम्मेदारों की बेपरवाही के चलते मिट्टी की प्रकृति बदलने के साथ ही पार्क का स्वरूप भी अब होने लगा बदरंग
-अभियान
-नाले का जमा गंदा पानी न केवल जमीन के अंदर रिसकर पहुंच रहा, बल्कि आड़े-तिरछे अंदाज में रखी निर्माणार्थ लाई सामग्री में पत्थरों व अन्य सामानों की वजह से बढ़ी मुश्किल
नागौर. दीवारों के रास्ते से पहुुंच रहे गंदे पानी ने शहर के बख्तासागर पार्क की हालत बिगाड़ कर रख दी है। पार्क की बेहतरी के लिए ढाई करोड़ से ज्यादा की राशि का व्यय किया गया था। हालांकि कई कार्य अभी अधूरे हैं, लेकिन हुए केार्यों पर इस गंदे पानी की वजह से अब इसकी सुंदरता पर ग्रहण लगने लगा है। कई जगहों पर गंदे पानी के कारण न केवल पार्क की घास खराब होने लगी है, बल्कि कुछ जगहों पर तो मिट्टी भी काली हो चुकी है।
शहर के बख्तासागर पार्क की हालत अब दिनों-दिन खराब होने लगी है। पार्क में आते गंदे पानी को रोके जाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाने के चलते पार्क के तीन ब्लॉक की जगह न केवल खराब हो चुकी है, बल्कि इसकी मिट्टी भी काली हो गई है। इसकी वजह से यहां पर उगी हुई घास का रंग भी बदलने लगा है। इसमें आ रहे गंदे पानी से तालाब का रंग तो बदला ही है, और अब पार्क का रंग भी बदलता नजर आने लगा है। तालाब के गंदे पानी की वजह से उत्पन्न हो रही सड़ांध की वजह से कोढ़ में खाज की स्थिति बन गई है। लोग चहल-कदमी के लिए आते तो हैं, लेकिन देखभाल के अभाव में पार्क की बिगड़ी हालत को देखकर वह बैरंग रवाना भी हो जाते हैं।
बदल रही मिट्टी की प्रकृति, कुछ जगहों पर जमीन हुई दलदली
पार्क में प्रवेश करने के बाद सीधा सामना गंदगी से होता है। सामने स्थित ब्लॉक के लगभग 90 प्रतिशत एरिया में गंदे पानी की वजह से जमीन साफ तौर पर काली और मुरझायी हुई घास नजर आती है। पार्क में लगी बेंचों पर बैठने के लिए भी कुछ जगहों पर गंदे पानी से होकर गुजरना पड़ता। इन स्थानों पर मिट्टी की प्रकृति भी बदली हुई होने से वातावरण में दुर्गन्ध बनी रहती है। पार्क के कम से कम तीन ब्लॉक की हालत इसके चलते बिगड़ चुकी है। इसके अलावा भी कुछ जगहों पर पैर जमीन पर रखते ही अंदर की ओर धसने लगता है। इन स्थानों पर फिसलन की भी स्थिति बन गई है। यहां पर सड़ांध मारता पानी, उस पर उड़ते बड़े पंखों वाले विषैले मच्छरों की भिनभिनाहट वाली आवाजों के बीच कीड़ों की मौजूदगी से पार्क में ठहरना ही मुश्किल होने लगा है। हालांकि पार्क के तीसरे ब्लॉक के हिस्से के पास जमीन सूखी होने के कारण वहां बैठे मिले रामनिवास , सुरेश, भरत , सुनील , राजू , दशरथ, सुभाष , सुंदरलाल, कमल, अशोक व बजरंग से बातचीत हुई तो बताया कि पार्क की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है। इस संबंध में नगरपरिषद के अधिकारियों से मुलाकात कर उनको अवगत भी कराया गया। आश्वासन जरूर मिला था, लेकिन अब तक आश्वासन पूरा नहीं हो पाया है। इसकी वजह से स्थिति यह हो गई है कि पार्क में अब टहलना तक मुश्किल होने लगा है।
पूर्व में दीवार की हुई थी मरम्मत, फिर से वही स्थिति बन गई
बताते हैं कि पार्क की दीवार के रास्ते बाहर से आ रहे गंदे पानी की आवक को रोकने के लिए कुछ अर्सा पहले दीवारों आदि की मरम्मत कराई गई थी। इससे कुछ दिनों तक गंदे पानी की आवक नहीं हुई, लेकिन बाद में फिर से वही स्थिति बन गई। अब फिर से पार्क में आ रहे गंदे पानी की आवक ने पूरे पार्क को ही निगलना शुरू कर दिया है।
इसकी वजह से भी बिगड़ रहे हालात
पार्क में छतरियों का निर्माण कार्य भी चल रहा है। इसमें प्रयुक्त होने वाली निर्माण सामग्री पार्क के तीसरे गेट के पास ट्रेक पर लगभग हर समय बिखरी रहती है। इसमें सीमेंट, बालू एवं पत्थरों के टुकड़े आदि भी रहते हैं। इस ओर गंदे पानी की वजह से न केवल फिसलन बनी रहती है, बल्कि यह ट्रेक भी फिसलन के कारण खतरनाक हो चुका है।
इनका कहना है...
बख्तासागर पार्क में गंदा पानी की आवक पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए थे। कुछ जगहों पर इसके लिए चेंबर आदि भी बने थे। इसके बाद भी पार्क में पानी आ रहा है तो इसे देखवाकर सही कराया जाएगा।
देवीलाल बोचल्लया, आयुक्त नगरपरिषद

-इस माह होने वाली पशु मेला की बैठक में पशु पालन विभाग जिला कलक्टर के साथ इस मुद्दे पर करेगा चर्चा
-ट्रेनों का संचालन शुरू नहीं होने पर रामदेव पशु मेला के राजस्व के साथ ही पालकों को भी प्रति पशु हो रहा हजारों का आर्थिक नुकसान, और गंतव्यों तक पहुंचने के दौरान सुरक्षा सरीखी तमाम दिक्कतों का करना पड़ता है सामना
-तकरीबन 20 साल पहले रामदेव पशु मेला से ही पशुओं के परिवहन के लिए रवाना होती थी ट्रेन, इससे पशु मेला का राजस्व भी बढ़ता रहता था
नागौर. बीस साल पहले रामदेव पशु मेला से पशुओं की खरीद-फरोख्त कर पशु को ले जाने के लिए पशु मेला प्रदर्शनी स्थल के पास ही ट्रेन का संचालन होता था। होने की वजह से रामदेव पशु मेला का व्यापार भी बेहतर होता था। अब ऐसा नहीं रहा। किन्हीं कारणों से बंद हुई ट्रेन की सुविधा पिछले पांच से छह सालों के दौरान फिर से बहाल कराने का प्रयास किया गया, लेकिन ऐन मौकों पर कोई न कोई अड़चन आने के कारण इसमें अब तक सफलता नहीं मिल पाई। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि उनकी ओर से इस बार भी इसके लिए प्रयास किया जाएगा। जिला कलक्टर के साथ इसी माह मेला के संदर्भ में होने वाली बैठक में भी ट्रेन संचालन से जुड़े विषयों पर चर्चा की जाएगी। प्रयास रहेगा कि ट्रेन का फिर से संचालन हो सके। संचालन शुरू हो गया तो फिर पशुओं को अन्यत्र दूरस्थ स्थानों व क्षेत्रों में ले जाने वाले पशु पालकों को आर्थिक लाभ के साथ ही रास्तों में आने वाली तमाम दिक्कतों से भी पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा।
पशु पालन विभाग के अधिकारियों के अनुसार ट्रेन का संचालन शुरू कराने के लिए रेलवे विभाग को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। रेलवे की पटरी तो बिछी हुई है। बस इसे व्यवस्थित कर पशुओं के अनुकूल आंशिक रूप से आवश्यक व्यवस्थाएं जरूर करनी होगी। पशु पालन विभाग के अधिकायिों का कहना है कि रेलवे सकारात्म रूख दिखाता है तो उसे राजस्व का फायदा मिलेगा। पिछली बार पशु पालन विभाग की ओर से नागौर के सांसद ने भी रेलवे विभाग से बातचीत कर लिखित रूप से देने के साथ ही रेल विभाग से एक ट्रेन उपलब्ध कराए जाने का आग्रह किया था। लगातार रेलवे के अधिकारियों से हुई बातचीत व पत्राचार से पशु पालन विभाग को उम्मीद बंधी थी कि ट्रेन मिल जाएगी, लेकिन ऐन मौके पर पता चला कि रेलवे ने ट्रेन संचालन की अनुमति नहीं दी है। इससे पशु पालकों को झटका लगा था। अब मेला आयोजन महज डेढ़ से देा माह का समय शेष रह गया है। ऐसे में पशुओं को बेहतर परिवहन सुविधा उपलब्ध कराए जाने की कवायद शुरू कर दी गई है। पशु पालन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 20 दिसंबर तक जिला कलक्टर के साथ रामदेव मेला से जुड़े विषयों पर पहली बैठक होगी। बैठक में मेला से जुड़े विषयों पर चर्चा करने के साथ ही ट्रेन संचालन शुरू कराने पर भी बातचीत की जाएगी।
ट्रेन का संचालन नहीं होने पर यह समस्याएं होती है
विश्व प्रसिद्ध रामदेव पशु मेला में देश के विभिन्न राज्यों से लोग अपने पशुओं को लेकर न केवल आते हैं, बल्कि यहां से पशु खरीदकर ले भी जाते हैं। विशेषकर नागौरी बैल की मांग देश भर में बनी हुई है। बाहर से आने वाले पशु पालक ट्रेन की सुविधा के अभाव में व्यक्तिगत स्तर पर गाडिय़ों की व्यवस्था कर जाते हैं। पशुपालकों को रास्ते में कई जगहों पर जांच के नाम पर अत्याधिक परेशान किया जाता है। इसमें सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों ही तरह के लोग होते हैं। कई बार तो पालकों के साथ मारपीट तक हो जाती है। ऐसे में डरे-सहमे पशु पालकों से जमकर वसूली की जाती है। इसको लेकर पालक पशु मेला के अधिकारियों से अपनी चिंता भी कई बार जता चुके हैं, लेकिन अधिकारी भी यह कहकर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं कि उनके अधिकार क्षेत्रों से बाहर का मामला है। ऐसे में पशु पालकों को अपने सुविधा शुल्क चुकाकर ही अपने गंतव्यों तक पहुंचना पड़ता है।
ट्रेन का संचालन शुरू हुआ तो यह सुविधा मिलेगी, मेला को भी गति मिलेगी
ट्रेन का संचालन शुरू होने की स्थिति में न केवल पशु मेला में राजस्व बढ़ेगा, बल्कि गाडिय़ों पर अत्याधिक व्यय भार से भी राहत मिल जाएगी। ट्रेन की अपेक्षा गाडिय़ों पर आठ से दस गुना ज्यादा मंहगा किराया व्यय करना पड़ता है। जबकि ट्रेन में बेहद रियायती दर पर आराम से और सुरक्षित स्थिति में पशुओं का परिवहन गंतव्यों तक होगा। ट्रेन परिवहन की सुविधा शुरू होने की जानकारी अन्य पालकों तक पहुंचेगी तो फिर मेला में आने व पशुओं को ले जाने में सहजता होने की सुविधा मिलने के बाद फिर पालकों की भी अपने पशुओं के साथ आवक भी बढ़ जाएगी। इसके पीछे आधार यही बताया जाता है कि पूर्व के समय में ट्रेन संचालन के दौरान पूरी पशुओं से भरी ट्रेन यहां से रवाना होती थी।
पशु पालकों की इच्छा है कि ट्रेन का संचालन पुन: हो
विश्वस्तरीय रामदेव पशु मेला में अपने पशुओं के साथ राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों के पालक पहुंचते हैं। अभी उनको पशुओं का परिवहन करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर बेहद खर्चीला मामला बन जाता है। इसके साथ ही गाडिय़ों में तमाम तरह की दिक्कतें भी आती है। ऐसे में ट्रेन से पशुओं के परिवहन की सुविधा शुरू होने पर निश्चित रूप से पशु मेला को फिर से उसकी पुरानी पहचान मिल सकती है।
रूसी जाट, पशुपालक
पहले ट्रेन से पशुओं का परिवहन आज से बीस साल पहले जब होता था तो रामदेव पशु मेला भी गुलजार नजर आता था। अब तो परिवहन सुविधा के अभाव में मेला पर भी इसका तेजी से असर पड़ा है। पशुओं को ले आने, और ले जाने में आने वाली दिक्कतों के चलते कई पशु पालक तो अब मेला में आने से हिचकने लगे हैं। जिला प्रशासन को प्रयास करना चाहिए कि रामदेव पशु मेला से पुन: ट्रेनों का संचालन शुरू हो सके। मेला का पुराना गौरव फिर से लौट सकता है। मेला और बेहतर हो सकता है, बशर्ते जिम्मेदार भी गंभीर हो जाएं इसके लिए।
भंवरू जाट, पशु पालक
रामदेव पशु मेला अब पहले जैसा नहीं रहा। इसका मुख्य कारण राज्य सरकार की उदासीनता है। प्रशासन भी पशु मेला में ट्रेनों का संचालन कराने के लिए ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता है। जबकि यह पशु मेला राजस्थान के सुप्रसिद्ध पशु मेलों में एक है। इसलिए यदि प्रशासन पूरी दिलचस्पी के साथ पशु मेला में से पशुओं के परिवहन के लिए ट्रेनों की सुविधा शुरू कराने के लिए प्रयास करे तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। ऐसा हुआ तो फिर मेला का राजस्व भी काफी बेहतर हो जाएगा। यह सभी जानते हैं, फिर भी लोगों के प्रयास जीरो रहते हैं।
शिव चौधरी, पशु पालक
प्रदेश के विकास में मुख्य भूमिका किसानों की होती है। ज्यादातर हर किसान पशु पालक भी होता है। नागौरी बैल की मांग पूरे देश में है। पशुओं के मामले में हम देश के कई राज्यों से आगे जरूर हैं, लेकिन पशुपालकों को सुविधा देने के मामले में काफी पीछे हैं। सरकार हो या प्रशासन, दोनों ही उदासीन रहते हैं। राजनीतिक दलों के नेता यूं तो जरा सी बात पर सडक़ों पर भीड़ इकट्टी कर लेते हैं, लेकिन इस मामले को लेकर कौन से नेता ने भीड़ इकट्टी की, और प्रदर्शन किया। कारण स्पष्ट है कि यह नेता भी केवल खानापूर्ति कर प्रदेश का ही नुकसान करते हैं।
धनराज, पशु पालक

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