>>: परंपरा जीवंत रखने को 40 साल से पढ़ा रहे वेद

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भरतपुर. परंपराओं को जीवंत रखने के पुरजोर प्रयास होते आए हैं और हमेशा होते रहेेगे। सामूहिक प्रयासों से इनमें रंग भरता है। समय के अनुसार इनकी पात्रता बदलती रहती है, लेकिन इसके लिए सतत प्रयास जरूरी हैं। यह कहना है पिछले 40 साल से वेद पढ़ाने वाले धरणीधर शास्त्री की।
शहर की राज बहादुर गली में निवासी धरणीधर शास्त्री शहर में वर्ष 1968 से वेद पढ़ाने का काम कर रहे हैं। वर्तमान में उनके शिष्य नेपाल, उत्तरप्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में लोगों को वेद सिखाने का काम कर रहे हैं। उनके शिष्य मुख्य रूप से वेद की संगिता, क्रम पाठ, पद पाठ, कर्मकांड, रुद्रि, गृह शांति, प्रतिष्ठा महोदधि, यज्ञ एवं मद्य संग्रह आदि की शिक्षा दे रहे हैं। पंडित धरणीधर शास्त्री ने बुलंदशहर में गंगा किनारे स्थित महाविद्यालय से वेद की शिक्षा ग्रहण की। आज उनके शिष्य देश-विदेश में वेदों का स्वाध्याय करा रहे हैं। शर्मा कहते हैं कि भरतपुर से वेद पठन के बाद उनके विद्यार्थी इस परंपरा को फैला रहे हैं।

बदलती रहती है पात्रता

पंडित धरणीधर शास्त्री बताते हैं कि शास्त्रों का निर्माण भगवान व्यास ने दिया। गुरु-शिष्य के रिश्ते पर शर्मा कहते हैं कि देश काल और परिस्थिति इसे कहां पहुंचा देती है। इसका कोई भी स्वरूप निर्धारित नहीं है। समय के अनुसार इसके पात्र बदलते रहते हैं। साथ ही व्यक्तियों की परिस्थिति भी बदलती रहती है। इसके चलते इसका मूल्यांकन संभव नहीं है।

यहां डॉ. रमेशचंद्र मिश्र उठा रहे संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार का जिम्मा

कामवन शोध संस्थान भी प्राचीन गुरुकुल-परम्परा का निर्वहन कर रहा है। इस संस्थान की स्थापना सर्वश्री जगन्नाथदास जी एवं श्यामसुंदर दास जी की प्रेरणास्वरूप सन् 1973 में डॉ. रमेशचन्द्र मिश्र की ओर से की गई तथा संस्कृत- भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए इसे समर्पित किया गया। डॉ. रमेशचन्द्र मिश्र ने अथक परिश्रम एवं प्रयासों से इस संस्थान को सींचकर जीवन्तता प्रदान की जो उनकी ओर से आज भी अनवरत जारी है। इस आश्रम में प्रात:काल नित्यक्रिया से निवृत होकर प्रत्येक विद्यार्थी विधिअनुसार वैदिक संध्या वंदन करता है। साथ ही अन्य कर्मकांड आदि करते हैं। यहां प्रथमा से आचार्य तक संबंधित विषयों का अध्यापन कराया जाता है। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, उत्तरप्रदेश, हिमाचलप्रदेश आदि स्थानों से यहां विद्यार्थी ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड का ज्ञान प्राप्त करने आते हैं। यहां विद्यार्थियों पर किसी भी प्रकार के शुल्क का भार नहीं है। काम्यवन शोध संस्थान आज भी गुरुकुल-व्यवस्था को संजोए हुए है, जहां गुरु-शिष्य परम्परा का पूर्णत: निर्वहन होता है। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वर्तमान में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को बनाए रखने एवं उसके विकास में काम्यवन शोध-संस्थन की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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