>>: पापकर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए

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भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में तेरापंथ नगर में धर्म, अध्यात्म की निर्मल धारा निरंतर प्रवाहित हो रही है। ठाणं सूत्र पर धर्मसंघ को ज्ञान की दिशा में आगे बढऩे का तत्व बोध करया जा रहा है। आचार्य महाश्रमण ने आठ प्रकार की पृथ्वी भूमि का उल्लेख किया। रत्न, शर्करा, बालुका, पंक, धूम, तम, महातम और ईशव प्रभा। पहली सात पृथ्वियां अधोलोक में होती है। ईशव प्रभा ऊध्र्व लोक में है। पहली सात पृथ्वियां नरक की श्रेणियां है। इस सृष्टि में जीव शुभ और अशुभ कर्मों का अर्जन करके अगली गति को प्राप्त होता है, जैसे कर्म वैसी गति। संसारी जीवों की चार जन्म स्थितियां है नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति। मनुष्य मरकर अपने कर्म अनुसार चारों गति में जा सकता है। मनुष्य गति में जाकर मनुष्य मोक्ष को भी प्राप्त हो सकता है। सिद्धान्त के अनुसार वर्तमान नारकीय जीव पुन: नरक में नही जा सकते है, देव गति के जीव भी देव आयुष्य बंध के कारण नरक में नही जा सकते है। तिर्यंच गति के जीव नरक में जा सकते है, मनुष्य गति वाले भी नरक में जा सकते है पर जो साधनाशील संयमी साधु है वो नरक में नही जाता। नरक बंध के चार कारण है। महाआरंभ, महापरिग्रह, पंचेंद्रिय वध एवं मांसाहार। कभी-कभी नारकीय जीवों को भी तीर्थंकर उपदेश से सुखानुभूति प्राप्त हो सकती है। व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर कभी जान-अनजान में वकोई पापकर्म हो जाए तो उसका प्रायश्चित करके हल्का बन ले। जहा तक हो सके हिंसक प्रवृतियों से बचने का प्रयास होना चाहिए ताकि नरक के बंधनों से बच सके। इस दौरान मुनि प्रसन्न कुमार, मुनि अतुल कुमार, तेरापंथ सभा मंत्री शुभ करण मारू, आचार्य भिक्षु सेवा संस्थान आरके-आरसी अध्यक्ष दिनेश कांठेड़, आचार्य तुलसी सेवा संस्थान शास्त्रीनगर अध्यक्ष गणपत पितलिया, तेरापंथ महिला मंडल पूर्व अध्यक्षा विमला रांका, उपासिका पारस मेहता ने विचार व्यक्त किए।

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