>>: प्रदेश ने भी बनाया ये रेकॉर्ड, खिलाड़ियों पर करोड़ों की धनवर्षा

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— ये सिर्फ जीत नहीं, हौसलों की उड़ान है

— राजस्थान संभवतया देश का पहला प्रदेश जहां के खिलाड़ियों ने पैरालंपिक में एक ही दिन में जीते तीन पदक


जयपुर। वो लड़खड़ाए, लेकिन हिम्मत नहीं हारे, फिर से खड़े हुए और भागे। उनके रास्ते में कई मुश्किलें आईं, लेकिन वो डरे नहीं, उनको पार करने की ठानी। हादसों ने उनकी जिंदगियों पर ग्रहण लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने भाग्य को चुनौती दी और इस ग्रहण को पीछे छोड़ जीवन का लक्ष्य तय किया। चुनौतियां अपार थी, लेकिन उन्होंने इनके पार पदकों की चमक पर ध्यान लगाया। टोक्यो पैरालंपिक में प्रदेश के तीन युवाओं ने आज जो इतिहास लिखा, वो बेहद अहम है। इन तीनों खिलाडि़यों ने ये साबित कर दिखाया है कि हौसलों की उड़ान भरने में सिर्फ शरीरिक ही नहीं मानसिक शक्ति भी बेहद अहम है। अवनि लखेरा, देवेंद्र झाझडि़या और सुंदर सिंह गुर्जर ने आज अपनी किस्मत खुद लिख डाली। आपको बता दें टोक्यो का समय भारत से करीब साढ़े घंटे आगे है। और सुबह की किरण आज यह बड़ी खुशखबरी लेकर आई। इन्हीं खिलाड़ियों की मेहनत और लगन है कि राजस्थान संभवतया देश का पहला ऐसा प्रदेश बन गया है जहां के खिलाड़ियों ने पैरालंपिक में एक ही दिन में तीन पदक जीते हैं। मुख्यमंत्री अशोक घोषणा की कि अवनि लेखरा को स्वर्ण जीतने पर 3 करोड़, देवेंद्र झाझड़िया को रजत जीतने पर 2 करोड़ तथा सुन्दर सिंह गुर्जर को कांस्य पदक जीतने पर 1 करोड़ रूपये की राशि इनाम स्वरूप प्रदान की जाएगी। आपको बता दें कि तीनों खिलाड़ियों को पहले से ही राज्य सरकार के वन विभाग में एसीएफ के पद पर नियुक्ति दी हुई है। सीएम गहलोत ने कहा हैं कि प्रदेश के खिलाड़ियों ने पदक जीतकर देश-प्रदेश का नाम रोशन किया है, हमें उन पर बेहद गर्व है।


मेहनत का फल जरूर मिलता है

कहते हैं न मेहनत का फल जरूर मिलता है और यही हुआ प्रदेश के इन खिलाडि़यों के साथ। सच तो यह है कि सिर्फ ये तीन खिलाड़ी ही नहीं बल्कि पैरालंपिक में पदक जीतने वाला और हिस्सा लेने वाला हर एक खिलाड़ी हादसों, दर्द और उपेक्षाओं के कई दरिया पार कर इस पायदान पर पहुंचा है। इन्हें ये मुकाम हासिल करने के लिए कहीं ज्यादा परेशानियों से पार पानी पड़ी है। लेकिन ये आदर्श है, इस बात का कि जहां चाह है, वहां राह है। आपको बता दें कि अविन जब 11 साल की थीं, तब एक कार एक्सीडेंट में उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई थी। इसके बाद वो व्हीलचेयर पर आ गईं। हालांकि उन्होंने अपनी इस कमजोरी को कभी आड़े नहीं आने दिया और अपनी पढ़ाई और खेलों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। वहीं देवेंद्र झाझड़िया को आठ साल की उम्र में पेड़ से फल तोड़ने के दौरान करंट लग गया था। जिसके बाद उनका बायां हाथ कलाई से काटना पड़ा। वहीं सुंदर ने साल 2016 में एक हादसे में अपना हाथ गंवा दिया था। जयपुर में वह अपने दोस्त के घर पर लोहे की शीट उतारते वक्त हादसे का शिकार हो गए थे, जिसकी वजह से उन्हें एक हाथ खोना पड़ा।

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