सविता की अरुणिम किरणों से,
दैदीप्यमान हो जग सारा
नवज्योति प्रस्फुटित हो मन में,
मिट जाए कलुषित अँधियारा।
करते हैं कलरव गान विहग,
चम-चम चमके जल की धारा
मन विस्मय से अनुनाद करे,
जब देखे स्वर्णिम उजियारा।
जब रश्मिपुंज उस सविता के,
इक जल प्रपात पर हों अवनति
प्रतिबिंबित हो जल दर्पण से,
छवि को प्रणाम करते सुरपति ।
ओ थके हुए हारे प्राणी,
मुख अपना नहीं छुपाओ तुम
दर्शन करके उज्ज्वल प्रभात,
मन का संकल्प बढ़ाओ तुम।
तज दो नित अश्रु बहाना तुम,
रोको निज मन का सन्निपात
आत्मसात कर धवल बिम्ब,
निज कर्मों में तुम हो निष्णात्।
तुम कभी नहीं मुड़कर देखो,
अवसाद घुली स्मृतियों में
हे कुलगौरव ! हे सर्वश्रेष्ठ !
तुम लौटो सुरभित ऋतुओं में।
रण समर युद्ध करके प्रचंड,
निज भुजबल से जीतो यह जग
जयकार तुम्हारी निश्चित है,
मृगतृष्णा का जीतो यह मृग।
हे शूरवीर! मत हो अधीर,
यदि जग तेरा उपहास करे
तू दे प्रमाण निज शक्ति का,
जग वंदन उसके बाद करे।
कर ध्यान विधाता ने तुझको,
किस हेतु धरा पर है भेजा
होकर उऋण भू के ऋण से,
तू स्वर्ग लोक तक बढ़ता जा।
अब सोच नहीं क्षण भर भी तू,
गांडीव भुजाओं में भर ले,
बजती रणभेरी-शंखनाद,
तू चरण चिह्न अंकित कर ले !!
-डॉ. रजनीश कुमार वर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी