भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में रविवार को ज्ञानशाला दिवस मनाया गया। जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के निर्देशन में देशभर में तेरापंथ सभा संस्था से संचालित बाल पीढ़ी को संस्कारित करने का महत्वपूर्ण, सतत प्रवाही उपक्रम है ज्ञानशाला। शुभारंभ अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी ने सन 1991 में हुआ। अभी आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा से बालपीढ़ी को संस्कारवान बनाने का उपक्रम जारी है। 2019 के आंकड़ों के अनुसार 19 हजार ज्ञानार्थी, 521 ज्ञानशालाएं देशभर में संचालित हैं। 3600 प्रशिक्षक हैं। वर्तमान में ऑनलाइन ज्ञानशाला चल रही है।
आचार्य ने कहा कि ज्ञानशाला नींव मजबूत करने वाली गतिविधि है। बच्चें देश का भविष्य होते हैं। बच्चें मानों घट के समान होते है, ज्ञान और संस्कार की बूंदों से उन्हें संपोषित किया जाता है तो वे आगे जाकर स्वस्थ समाज की संरचना कर सकते है। प्रशिक्षण एवं व्यवस्था का संयोग अच्छा हो तो प्रशिक्षण प्रणाली ठीक हो सकती है। प्रशिक्षक पहले खुद को प्रशिक्षित करेंगे तो वो बच्चों को सही ज्ञान दे सकते हैं। ज्ञानशाला नई पौध को सिंचने करने का प्रयास है। बाहरी स्कूली शिक्षा के साथ संस्कार व धार्मिक ज्ञान भी दिया जाए तो समाज के लिए अच्छा उपक्रम साबित हो सकता है।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि क्रोध, मान, माया, लोभ पर नियंत्रण करके व्यक्ति धर्म के प्रासाद में प्रवेश कर सकता है। ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदित कुमार ने वक्तव्य दिया। ज्ञानार्थियों एवं प्रशिक्षक बहनों ने आचार्य के समक्ष अपनी प्रस्तुति दी।