>>: राजस्थान के मंत्री-सांसद-विधायक भी नहीं चाहते, 'गुलाबी नगरी' के हो दो टुकड़े

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जयपुर. सरकार भले ही जयपुर शहर को दो जिलों में बांटना चाह रही है, लेकिन ज्यादातर स्थानीय जनप्रतिनिधि ही इसके पक्ष में नहीं है। खुद सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक और मंत्री तक शहर की विरासत का बंटवारा नहीं चाहते। ज्यादातर जनप्रतिनिधि चाह रहे हैं कि जयपुर नगर निगम हैरिटेज और ग्रेटर के 250 वार्डों की सीमा में एक ही जिला हो, जिससे जयपुर शहर का सांस्कृतिक व हैरिटेज वैभव का बंटवारा रोका जा सके। दो जिले बनते हैं तो उसका फायदा कम, नुकसान ज्यादा है। राजस्थान पत्रिका ने शहर के सांसद और विधायकों की राय जानी तो अधिकतर जनता की मुहिम के साथ खड़े नजर आए।

जयपुर शहर को एक ही रखेंगे। मैं सरकार का प्रवक्ता हूं, इसलिए यह मेरा आधिकारिक बयान है। इस बारे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से भी बातचीत हुई है। मैंने नाराजगी जताई कि यह घोषणा किससे पूछकर की गई।
प्रताप सिंह खाचरियावास, विधायक (सिविल लाइंस) एवं कैबिनेट मंत्री

इस सृष्टि में बीज ही जन्म और मृत्यु का आधार है। इसके बिना संतोनोत्पत्ति संभव नहीं है। यह बात एकदम सटीक है। किसे कौन से योनि मिलेगी, यह जीव के कर्म पर निर्भर करता है। गीता में भगवान कृष्ण ने भी कर्म के बारे में अच्छे तरीके से वर्णन किया है।
राजकुमार दुबे, इटारसी (नर्मदापुरम)

आलेख में जीव की उत्पत्ति की शास्त्रोक्त और वैज्ञानिक व्याख्या है। इसमें वैराग्य तत्त्व की व्याख्या करते हुए ज्ञान, कर्म और भक्ति योग को बुद्धि, शरीर तथा मन के परिप्रेक्ष्य में बताया गया है। यह आलेख भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में भी तर्कपूर्ण जानकारी देता है। साथ ही वेदों, उपनिषदों और अन्य भारतीय धर्म ग्रंथों में निहित ज्ञान का सूक्ष्म वैज्ञानिक विश्लेषण भी करता है।
श्वेता नागर, रतलाम

चूंकि जीव अल्पज्ञ है, इसलिए उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों का भान नहीं रहता। इस प्रकार नाना प्रकार के जन्म-मरण में तब तक जीव पड़ा रहता है, जब तक कि उत्तम कर्मोपासना करके मुक्ति को नहीं पाता। जन्म-मरण से रहित होकर जीव का आनंद में स्थित होना ही ब्रह्म सम्बन्ध कहलाता है। भारतीय योगशास्त्र पातंजल सूत्र में भी यही बताया गया है कि जब चित्त एकाग्र और निरुद्ध होता है, तब जीवात्मा का उस विराट से एकाकार हो जाता है।
डॉ . श्रीकांत द्विवेदी, साहित्यकार, धार

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ब्रह्म तत्त्व को लेकर कई मनीषियों ने तर्क दिए हैं। गीता का सार भी यही है। आज के आलेख में भी जन्म से लेकर मृत्यु के तक सफर का मूल आधार ब्रह्मा को ही बताया गया है। ज्ञान, कर्म और भक्ति जैसी आवृत्त संस्थाओं से बाहर निकलकर कर्म करने की जरूरत के बारे में भी इसमें बताया गया है। संतानोप्तत्ति कोई साधारण नहीं, यह कैसे और किन परिस्थितियों में होती है, इसका ज्ञान भी लेख में निहित है।
पंडित आनंद स्वरूप मलतारे, खरगोन

शहर की विरासत, हैरिटेज, उसका वैभव ही हमारी शान है। इसे दो जिलों में कैसे बांटा जा सकता है। जनप्रतिनिधियों से राय नहीं ली और जन भावनाओं को समझे बिना ही आनन-फानन में घोषणा कर दी। इससे हर वर्ग उद्वेलित है। जिसने भी यह राय दी है, उसने शहर के लोगों की भावना को समझा ही नहीं।
रामचरण बोहरा, सांसद (जयपुर शहर)

मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई जवाब आया है। सीएम ने क्या सोचकर शहर को दो जिलों में बांटने की घोषणा की? राजनीतिक लाभ की दृष्टि से ऐसा किया है तो वह भी उन्हें नहीं मिलने वाला। जयपुर की स्थापना वास्तु से हुई है, इसका ध्यान रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।
नरपत सिंह राजवी, विधायक (विद्याधर नगर)

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दो जिले बन जाएंगे तो प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मिलने का समय मांगा है। पूरा शहर एक रहना चाहिए। इसी मांग पर जयपुर की जनता आंदोलन कर रही है। सरकार को समझना चाहिए कि इससे फायदा कुछ नहीं है, बल्कि नुकसान ही है।
कालीचरण सराफ, विधायक (मालवीय नगर)

 

जयपुर कैपिटल जिला एक ही होना चाहिए, लेकिन प्रशासनिक जिले दो ही हों। दिल्ली में 11 प्रशासनिक जिले हैं, उसी तरह जयपुर शहर के भी दो जिले सिर्फ प्रशासनिक दृष्टि से किए जाने चाहिए। अभी एसडीएम जयपुर के अंदर कई विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसी तरह एसडीएम आमेर का इलाका काफी बड़ा है।
रफीक खान, विधायक (आदर्श नगर)

गोविंददेवजी जी की नगरी, सांगाबाबा से शीला माता, मोती डूंगरी गणेशजी से चांदपोल हनुमानजी तक पूरे जयपुर की आत्मा एक है। जयपुर की आबादी इतनी ज्यादा नहीं है कि इसके टुकड़े करने की जरूरत पड़े। सरकार पूरी तरह फेल है।
अशोक लाहोटी, विधायक (सांगानेर)

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