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त्रिपुरा सुंदरी मंदिर : आखिर क्यों बार-बार धोक लगाने आते हैं गहलोत-वसुंधरा? जानें 10 खासियतें-मान्यताएं Monday 12 June 2023 08:23 AM UTC+00 जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को बांसवाड़ा स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में पूजन कार्यक्रम में भाग लिया। सीएम गहलोत ने माता की पूजा-अर्चना कर प्रदेश की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। इस अवसर पर जनजाति क्षेत्रीय विकास राज्यमंत्री अर्जुन सिंह बामनिया, समाजसेवी दिनेश खोड़निया सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि मौजूद थे।
गौरतलब है कि त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के साथ कई पौराणिक मान्यताएं और आस्था जुड़ी हुई है। सीएम गहलोत ही नहीं बल्कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के अलावा भी कई राजनेता बांसवाड़ा आने पर मां त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन ज़रूर करते हैं। आइए जानते हैं त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की 10 खासियतें, विशेषताएं, मान्यताएं।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर - 10 खासियतें/मान्यताएं
6. त्रिपुर सुंदरी देवी मंदिर के गर्भगृह में देवी की विविध आयुध से युक्त अठारह भुजाओं वाली श्यामवर्णी भव्य तेजयुक्त आकर्षक मूर्ति है। इसके प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी मूर्तियां है जिन्हें दस महाविद्या अथवा नव दुर्गा कहा जाता है। मूर्ति के नीचे के भाग के संगमरमर के काले और चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र उत्कीर्ण है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व हैं। जबकि मंदिर के पृष्ठ भाग में त्रिवेद, दक्षिण में काली तथा उत्तर में अष्ट भुजा सरस्वती मंदिर था, जिसके अवशेष आज भी विद्यमान है। यहां देवी के अनेक सिद्ध उपासकों व चमत्कारों की कथाएं सुनने को मिलती हैं।
7. मंदिर शताब्दियों से विशिष्ट शक्ति साधकों का प्रसिद्ध उपासना केन्द्र रहा है। इस शक्तिपीठ पर दूर-दूर से लोग आकर शीश झुकाते है। नवरात्रि पर्व पर मंदिर प्रांगण में प्रतिदिन विशेष कार्यक्रम होते है, जिन्हें विशेष समारोह के रूप में मनाया जाता है। नौ दिन तक प्रतिदिन त्रिपुरा सुंदरी की नित-नूतन श्रृंगार की मनोहारी झांकी बरबस मन मोह लेती है। चेत्र व वासन्ती नवरात्रि में भव्य मूर्ति के दर्शन प्राप्त करने दूरदराज से लोग आते हैं।
8. नवरात्रि की अष्टमी और नवमीं को यहां हवन होता है। नवमीं या दशहरे पर जवारों को माताजी पर चढ़ाते हैं। इसके बाद पूजा अर्चना करके इस कलश को जवारों सहित माही नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। विसर्जन स्थल पर पुनः एक मेला सा जुटता है, जहां त्रिपुरे माता की जय से समस्त वातावरण गूंज उठता है। अष्टमी पर यहां दर्शनार्थ पहुंचने वालों में राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और महाराष्ट्र के भी लाखों श्रद्धालु शामिल होते है।
9. वाग्वरांचल में शक्ति उपासना की चिर परम्परा रही है। साढ़े ग्यारह स्वयं भू-शिवलिंगों के कारण लघु काशी कहलाने वाला यह वाग्वर प्रदेश शक्ति आराधना के कारण ब्राहाी, वैष्णवी और वाग्देवी नगरी के रूप में लब्ध प्रतिष्ठित है।
10. जगत जननी त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ के कारण यहां की लोक सत्ता प्राणवंत, ऊर्जावान और शक्ति सम्पन्न है। |
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