>>: सेवानिवृत्त फौजी को 43 साल बाद भी नहीं मिली जमीन, भूतपूर्व सैनिक कोटे से सरकार ने की थी घोषणा

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कोटा। पाकिस्तान के खिलाफ दो जंग लड़े जांबाज फौजी को बतौर इनाम भूतपूर्व सैनिक कोटे से सरकार की ओर से मिलने वाली जमीन के लिए पिछले चार दशकों से अधिक समय से चक्कर काटने पड़ रहे हैं। लेकिन 43 वर्ष बीतने के बाद भी उसे उसके हक की जमीन नसीब नहीं हो सकी है। सेवानिवृत्त फौजी अर्जुन कागले ने बताया कि वह 20 जनवरी 1964 को सेना में भर्ती हुए। उन्हें आर्मी की सप्लाई कोर में पहली पोस्टिंग लेह लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियों में मिली। जहां उन्होंने सबसे पहले 1965 में पाकिस्तान की फौज का मुकाबला किया। इसके छह साल बाद वर्ष 1971 में एक बार फिर पाकिस्तान ने हमला कर दिया। तब उनकी पोस्टिंग खम्भू सेक्टर में थी। इस बार भी भारतीय सेना के वीर सैनिकों ने पाक के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया। दो लड़ाइयां लड़ चुके बहादुर सिपाही अर्जुन कागले ने 1972 में सेवानिवृत्ति ले ली।

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सेवानिवृत्ति के पांच साल बाद कागले को उनकी बहादुरी के लिए कोटा जिला कलक्टर ने तवज्जो दी और 4 फरवरी 1977 को सनीजा बावड़ी गांव में खसरा संख्या 229 की 15 बीघा जमीन आवंटित कर दी गई, लेकिन इससे पहले कि वह जमीन का कब्जा ले पाते जमीन का आवंटन निरस्त हो गया। आवंटन निरस्त के कारणों की जानकारी करने पर पता चला कि उन्हें जो जमीन आवंटित की गई थी, वह सीलिंग की थी। यह जमीन दावा निस्तारण होने पर उसके खाताधारक को वापस लौटा दी गई।

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इस पर कागले की जमीन पाने की जंग एक बार फिर शुरू हो गई। तत्कालीन जिला कलक्टर डॉ. रविकुमार सुरपुर को मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर फौजी को जमीन देने के निर्देश दिए। प्रशासन ने काफी खोजबीन के बाद सांगोद तहसील के गांव जोगड़ी में सिवायचक काबिल काश्त जमीन मिली।

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