>>: BigIssue: पता ​था मिट्टी खराब, फिर भी करा दिया निर्माण, अब खौफ

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सोमेसर-नाडोल मार्ग पर ढारिया बांध के निर्माण में 19 साल पुरानी खामी रह-रह कर सामने आ ही जाती है। जब भी बारिश होती है, ग्रामीणों की नींद उड़ जाती है। 17 बांध पहले बांध ढह गया था। तबाही का मंजर अब भी बारिश के दिनों में ग्रामीणों के दिलो-दिमाग में उभर आता है। बिपरजॉय की बारिश से लबालब होते ही बांध की दीवार में दरार आ गई। हालांकि, जल संसाधन विभाग का दावा है कि समय रहते दरार को दुरुस्त कर दिया गया, लेकिन अनहोनी की आशंका बांध के निर्माण और गुणवत्ता पर हमेशा सवाल खड़े करती है।

ढारिया बांध का निर्माण पहली बार वर्ष 2003-2004 में किया गया था। उस समय बांध बनाते समय वहां की मिट्टी को जांचे बिना ही बांध की पाळ बना दी गई। इसके बाद बरसात नहीं हुई और बांध सूखा रह गया। वर्ष 2006 में बांध में पानी की आवक हुई और बिना मिट्टी जांच के पानी रोकने के लिए बनाई दीवार ढह गई। पानी गांव में भर गया। इसके बाद बांध के लिए फिर तखमीना तैयार कर वर्ष 2019 में तैयार किया गया।

इसके बाद पहली बार बांध पूरा भरा है और उसमें लीकेज हो गया। बांध के नीचे के भाग में रहने वाले ग्रामीणों में 17 साल पहले आई तबाही जैसी दहशत फैल गई। गनीमत रही बांध में पानी के रिसाव की जगह मिल गई और उसे बंद कर दिया गया।

कंकरीट की दीवार बनाकर रोकी मिट्टी

ढारिया बांध बनाते समय जल संसाधन विभाग के तत्कालीन इंजीनियर्स की ओर से मिट्टी की जांच नहीं करवाई गई। जब बांध वर्ष 2006 में ढहा तो उसके बाद जांच कराने पर पता लगा कि बांध की पाळ जिस मिट्टी से बनाई गई है, उसमें बंध नहीं बनता। यानी मिट्टी पानी लगते ही बिखरने लगती है। इस पर दूसरी बार 34 करोड़ रुपए का तखमीना बनाने पर मिट्टी रोकने के लिए कंकरीट की दीवार बनाई गई। यही दीवार इस बार बांध में पम्पिंग होने पर पानी को रोक सकी, अन्यथा दो दिन पहले बांध में पानी की आवक तेजी से होने पर तबाही मच जाती।

बांध पूरी तरह सुरक्षित

ढारिया बांध में पाइपिंग हुई थी। उसका पता लगते ही ठीक कर दिया गया। अब बांध में लीकेज नहीं है। बांध पूरी तरह सुरक्षित है।

अमरसिंह, चीफ इंजीनियर, सिंचाई विभाग, जोधपुर

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