बाड़मेर पत्रिका. बाड़मेर के दुबई बनने की तीन बड़ी सौगातें रेलवे लाइन, सूखा बंदरगाह और हवाईसेवा है। बाड़मेर में सामान्य कामों से अलग ये योजनाएं मिलती तो विकास के पंख लगते। सूखा बंदरगाह 23 साल और जैसलमेर-बाड़मेर-भाभर रेलवे लाइन 27 साल से फाइलों में इधर-उधर हो रही है। हवाईसेवा भी 2018 से अटका मामला है। आर्थिक उन्नति से केन्द्र और र ाज्य का खजाना भर रहे बाड़मेर को एकतरफ दुबई बनाने की बातें कर रही दोनों ही सरकारें दूसरी तरफ इन योजनाओं को अनार्थिक बताकर बंद करने में तुली है। ऐसे में सवाल यह है कि कौनसा तराजू लेकर बाड़मेर को दुबई से तौला जा रहा है। जिसमें अपने पलड़े के खरबों रुपए खजाने में और बाड़मेर के हिस्से का पलड़ा खाली।
कांडला-बाड़मेर-जैसलमेर रेलवे लाइन
गुजरात में कांडला से भाभर तक 224 किमी रेलमार्ग बना हुुआ है। भाभर से जैसलमेर में 339 किमी जोडऩे से बाड़मेर, जैसलमेर, जालोर, भुज, पाटन, सहित गुजरात-राजस्थान के 41 रेलवे स्टेशन जुडऩे थे। 1996 में इसका प्रस्ताव लिया गया। यानि तब जब न तेल था न आर्थिक उन्नति। 2003 में बाड़मेर में तेल का खजाना मंगला मिला तो बाड़मेर को दुुबई बनने का पहला शब्द मुंह पर आया। 2009 में तेल का उत्पादन शुरू होते ही केन्द्र और राज्य दोनों के हिस्से करोड़ों रुपए आने लगे और इधर 2009 में ही कांडला-बाड़मेर-जैसलमेर भाभर रेलवे लाइन का सर्वे कर दिया गया। उम्मीद जगी थी कि बस अब सर्वे बाद रेल लाइन बिछेगी लेकिन वर्ष 2013 में इसको अनार्थिक बताकर नकार दिया गया। जिस इलाके को दुबई बनाने के सपने देखे जा रहे थे,वह क्षेत्र इस रेल लाइन के जरिए सीधा गुजरात,महाराष्ट्र सहित आठ से अधिक राज्यों से सीधा जुड़ रहा था, उसे ही बंद कर दुबई बनने के सपने पर तुषारापात कर दिया गया। केन्द्र में जैसलमेर से सीधा वास्ता रख रहे गजेन्द्रसिंह शेखावत केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री है और बाड़मेर के सांसद कैलाश चौधरी कृषि राज्यमंत्री। इसको लेकर बार-बार उठ रही मांग पर दोनों ने कभी भी जिद नहीं की। 2022 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसकी फिर पैरवी प्रधानमंत्री के सामने भी की लेकिन मामला अभी ठण्डे बस्ते में है। दुुबई बनने का रेलमार्ग पटरी नहीं चढ़ पा रहा है। लंबी दूरी की रेलों को लेकर भी बाड़मेर का सपना अपना नहीं हो पाया है। रिफाइनरी इलाका पचपदरा भी अभी रेल से सीधा नहीं जुड़ा है।
हवाई जहाज
तेल कंपनियां, खनिज और कोयला मिलने के बाद बाड़मेर में हवाईसेवा की मांग बलवती हुई। दुुबई ही बनाना है तो आसमान पर हवाईजहाज उड़ाने की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। 2018 में आई एक योजना में प्रदेश के अन्य छोटे जिलों के साथ बाड़मेर भी शामिल हुआ तो जोर-शोर से प्रचार-प्रसार हुआ बाड़मेर में हवाई जहाज आएंगे। पड़ौसी जैसलमेर जिले में सिविल एयरलाइंस से जुड़ गया लेकिन बाड़मेर में अभी भी यह सपना बना हुआ है। राज्य सरकार कहती है केन्द्र में मामला अटका हुआ है और केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री कहते है कि राज्य सरकार जमीन नहीं दे रही। अलबत्ता इसमें तो तेल कंपनी ने भी आगे आकर कहा कि हम 33 फीसदी यात्रीभार को वहन कर लेंगे। यानि यात्रीभार की समस्या भी नहीं लेकिन बाड़मेर से एक लाख करोड़ रुपए ले चुका केन्द्र और 50 हजार करोड़ ले चुका राज्य अपनी लड़ाई में यह भूल गया कि बाड़मेर को दुबई बनाना है।
सूखा बंदरगाह
> Ratan dave:
करीब 23 साल पहले यह योजना बनी। मूूंदड़ा गुजरात से बाखासर बाड़मेर तक 150 किमी कृत्रिम नहर बनाकर सूखा बंदरगाह बनाने की योजना। राज्य का पहला बंदरगाह मिलने की सौगात तय हुई। वर्ष 2003 में तेल का खजाना और पॉवर प्रोजेक्ट मिलते ही जोड़ दिया गया कि अब बाड़मेर दुबई बनेगा और बंदरगाह बनते ही यहां के विकास को पंख लग जाएंगे। 22 साल तक लगातार मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक पैरवी हुई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंंत्री वसुंधराराजे, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी सार्वजनिक मंच पर यह घोषणाएं की कि सूखा बंदरगाह से राजस्थान की तकदीर बदलेगी लेकिन अचानक बीते साल राज्यसभा में इसको अनार्थिक बताकर विराम लगा दिया गया। यहां तक कि केयर्न वेदांता कंपनी के चेयरपर्सन अनिल अग्रवाल ने इस योजना को राज्य के आर्थिक विकास का आधार बताते हुए इसमें सहयोग की भी बात की थी लेकिन इसको आगे ही नहीं बढ़ाया जा रहा है। दोनों केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत और कैलाश चौधरी इस बंदरगाह की ठोस पैैरवी नहीं कर पाए। बाड़मेर के दुबई बनने का इससे बड़ा आधार कुछ नहीं हो सकता था।