>>: अब खेती को संभालेगी नैनो तकनीक

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भरतपुर. खेती में भी नैनो तकनीक का उपयोग शुरू हो गया है। अब नैनो यूरिया के अलावा नैनो डीएपीए नैनो जिंक, नैनो गन्धक सहित अन्य पोषक तत्वों का पौधों में उपयोग शुरू हो गया है। इसके उपयोग के किसान को एक तो उत्पादन अच्छा मिलता है और ट्रांसपोर्ट एवं रखरखाव का खर्चा भी नहीं होता है। यूरिया का एक कट्टा जितना काम नहीं करता है, उतना काम आधा लीटर नैनो यूरिया कर देता है।
कृषि विभाग के अनुसार दूषित मृदा सुधार के लिए नाइट्रोजन उर्वरकों के निक्षालन से होने वाले नुकसान, पौधो में अमोनियम की विषाक्तता को कम करने तथा कृषि पैदावर बढ़ाने के लिए प्रभावी व धीमी गति में उर्वरक प्रवाहित करने के लिए नैनो सेल्युकोज द्रव्य की उपयोगिता सिद्ध हो रही है। इसमें उर्वरकों की खपत कम होगी तथा फसलों का उत्पादन बढ़ेगा। नैनो यूरिया का वर्तमान में फसलों में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए प्रयोग शुरू हो गया है। जिसके उपयोग से सरसों, गेहूं तथा अन्य फसलों में 8 से 10 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है। लागत में कमी आती है तथा परिवहन एवं भण्डारण में सुविधा रहती है। इसका प्रयोग नाइट्रोजन की आपूर्ति के लिए खड़ी फसल में छिडक़ाव करके किया जाता है।
यह है अंतर..
कृषि अतिरिक्त निदेशक देशराज सिंह के अनुसार यूरियो का उर्वरक उपयोग 60-65 प्रतिशत होता है, जबकि नैनो का उपयोग 100 प्रतिशत होता है। यूरिया का कट्टा 267 रुपए का सब्सिडी के साथ मिलता है, जबकि नैनो आधा लीटर 225 रुपए में मिलता है। इसी प्रकार डीएपी का कट्टा 1270 में जबकि नैनो डीएपी आधा लीटर 600 रुपए में मिलती है। इसका ट्रांसपोर्ट एवं रखरखाव का भी खर्चा होता है, जबकि नैनो का ना ट्रांसपोर्ट खर्चा होता है और ना ही रखरखाव का। इसे पानी में मिलाकर छिडक़ाव किया जाता है। पानी की सुविधा नहीं होने के बावजूद नैनो का उपयोग किया जा सकता है। जबकि यूरिया का नहीं। नैनो के उपयोग से उत्पादन भी 10 प्रतिशत बढ़ता है। आर्थिक रूप से भी बचत होती है।
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