>>: बड़ा सवाल? 100 किमी तक प्राकृतिक आवास नहीं, आखिर कहां से आया लेपर्ड

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Leopard in Jodhpur : शहरी क्षेत्र में लेपर्ड की दस्तक ने जहां वन विभाग की धड़कनें बढ़ा दीं, तो वहीं सूरसागर, बालसमंद क्षेत्र के लोग दिनभर दहशत में रहे। वन विभाग की टीमें लेपर्ड के पगमार्क को देखते हुए बालसमंद झील के बेक वाटर क्षेत्र में उसकी तलाश कर रही है, लेकिन बड़ा सवाल अब भी लेपर्ड के शहरी क्षेत्र में आने को लेकर है, क्योंकि यहां से करीब 100 किमी की रेंज में इनका प्राकृतिक आवास नहीं है। घनी आबादी व शोरगुल के कारण आमतौर पर यहां लेपर्ड नहीं आते हैं। हालांकि कायलाना-तख्तसागर की पहाड़ियों में काफी साल पहले लेपर्ड पाए जाते थे। करीब 13 साल पहले शहर के बासनी क्षेत्र में पाली से आए एक लेपर्ड को रेस्क्यू किया गया था।

कुछ दिन पहले बालेसर से जिस लेपर्ड को रेस्क्यू किया गया था, उसने बंद पड़ी खदानों में अपना आसरा बना रखा था। ऐसे में यहां भी सूरसागर के काली बेरी-भूरी बेरी व बालसमंद क्षेत्र की खदानों में ही लेपर्ड के आसरा लेने की आशंका जताई जा रही है इससे पहले 28 नवंबर 2010 को शहरी क्षेत्र के बासनी में एक फैक्ट्री में लेपर्ड मिला था। तब वन विभाग के श्रवणसिंह राठौड़ व उनकी टीम ने रेस्क्यू किया था। कुछ साल पहले पंचकुड़ा में भी इस प्रकार से लेपर्ड मूवमेंट व पगमार्ग मिले थे, टीम ने सर्च किया, लेकिन तब कोई सुराग नहीं मिले थे।

पालतू जानवरों पर करते हैं हमला
लेपर्ड सामान्य तौर पर तो इंसानों पर हमला नहीं करते, लेकिन जब उनको खतरा महसूस होता है तो वे इंसानों पर भी हमला कर सकते हैं। इसके अलावा पालतू जानवरों बकरी, कुत्तों का शिकार करते हैं। संभवत शहरी क्षेत्र में इसका यह मूवमेंट इसी शिकार की तलाश में हो।

हर परिस्थिति के साथ तालमेल बैठा लेता है लेपर्ड
लेपर्ड प्रजाति की आदत है कि वह किसी भी परिस्थिति के साथ तालमेल बैठा लेता है। इसीलिए वह पहाड़ों के साथ मैदान व खदानों में भी कई दिनों तक आवास बना लेता है। लेपर्ड की सूंघने की क्षमता ज्यादा होती है। ऐसे में कॉरिडोर ढूंढते हुए भी वह यहां आता है। 100 किमी का भी सफर तय कर लेता है। उसे अपने शिकार की गंध आती है। इसीलिए वह शहरी क्षेत्र में भी भोजन की तलाश में आता है। पहले कायलाना-तख्तसागर क्षेत्र में लेपर्ड रहे हैं। पाली व कुछ एरिया में इनकी संख्या बढ़ रही है। इसीलिए वहां से माइग्रेट होकर अपनी नई टेरेटरी के लिए लेपर्ड घूम रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी इसी कारण लेपर्ड स्पॉट किए जा रहे हैं।
- महेन्द्र सिंह राठौड़, सेवानिवृत्त डीसीएफ

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