>>: आचार्य महाश्रमण का नवम्बर माह में भीलवाड़ा से होगा विहार, कार्यक्रम जारी

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भीलवाड़ा।
आचार्य महाश्रमण ने अपनी अहिंसा यात्रा को लेकर संभावित कार्यकम घोषित कर दिया है। आचार्य का भीलवाड़ा से नवम्बर माह से विहार होगा। इसकी घोषणा 75 वें स्वतंत्रता दिवस पर रविवार को आयोजित कार्यक्रम में की है। अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्य महाश्रमण ने भीलवाड़ा चातुर्मास के बाद आगामी यात्रा 2021-2022 की घोषणा की। यात्रा में निर्धारित मंजिलों के अनुसार 1 दिसंबर 2021 से कोटा, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्रों में विहार कर गुरूदेव 1 जनवरी 2022 का जयपुर पहुंचेंगे। उसके बाद लाडनूं, फरवरी माह में बीदासर में मर्यादा महोत्सव कर आचार्य फतेहपुर, चुरू होते हुए आचार्य महाप्रज्ञ की जन्मस्थली टमकोर जाएंगे। वहां से विहार कर देश की राजधानी दिल्ली में शांतिदूत का 20 से 28 मार्च तक का प्रवास होगा। इस दौरान अहिंसा यात्रा के समापन की घोषणा की जाएगी। उसके बाद हरियाणा के हांसी, हिसार आदि क्षेत्रों से राजगढ़, सादुलपुर होकर आचार्य 25 अप्रेल से 16 मई तक का प्रवास सरदारशहर में होगा। आचार्य महाश्रमण की जन्मभूमि सरदारशहर में इस दौरान षष्टीपूर्ति समारोह, पट्टोत्सव समेत विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे। जून माह में गंगाशहर, बीकानेर, देशनोक, नोखा मंडी आदि कई क्षेत्रों की यात्रा कर 2022 के चातुर्मास के लिए आचार्य छापर में 8 जुलाई को चातुर्मासिक प्रवेश करेंगे। हालांकि इस यात्रा कार्यक्रम में बदलाव भी हो सकता है।
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महाश्रमण सभागार के प्रांगण में राष्ट्रभक्ति से लबरेज गीतों के साथ ध्वजारोहण हुआ। इसमें जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा अध्यक्ष सुरेश गोयल, आचार्य महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया शामिल थे।
आचार्य महाश्रमण ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कहा कि आज का दिन भारत का गौरवपूर्ण दिन है। भारत एक समृद्ध, अध्यात्म युक्त राष्ट्र है। ये भूमि ज्ञानी, तपस्वी-मुनियों एवं संतो की उच्चतम साधना की भूमि है। एक ओर जहां भारत के पास ज्ञान का अखूट खजाना और प्राचीन साहित्य का समृद्ध भंडार है वहीं देश के नागरिकों को सदा ही संत, ग्रंथ और पंथ संपदा से सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
आचार्य ने जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ के जीवन की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान पाश्र्वनाथ में शरीर की सुंदरता, सक्षमता, पुरुषादानीय एवं वीतरागता प्रमुख रूप से थी। शरीर के संहनन, संस्थान की मजबूती अच्छी साधना के लिए जरूरी है। साथ ही शरीर की सक्षमता भी जरूरी है। व्यक्ति के भीतर परोपकार की भावना रहे, स्वयं की साधना के साथ ही दूसरों के लिए भी कुछ करने की भावना सामुदायिक चेतना रहनी चाहिए।
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने कहा की विश्व में संपूर्ण देशों में भारत का नाम गौरव से लिया जाता है। साध्वी संबुद्धयशा व मुनि प्रसन्न कुमार ने भी विचार व्यक्त किए।

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