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काश! कह पाते तो जी ली होती जिंदगी Wednesday 04 August 2021 09:03 AM UTC+00 भरतपुर . लबों पर लंबे समय से खामोशी शायद उनकी तकदीर बन गई थी। खाना मिलता तो प्लेट लेकर खड़े हो जाते। दवा देते तो हाथ आगे बढ़ा देते। कोई झिड़क देता तो ठिठक जाते और दुलारता तो चेहरे की मुस्कान इसे बयां कर देती। दर्द होता तो वह सह लेते। वजह, दर्द की दवा मांगने को उनके पास जुबां तो थी, लेकिन समझाने को शब्द नहीं थे। यह दास्तां है तमिलनाडू से भरतपुर के अपना घर आश्रम में पहुंचे प्रभुजन की। करीब 37 साल से नहीं बोली हिन्दी अपना घर आश्रम के मुताबिक चेन्नई के इंस्टीट्यूट में मिले कागजातों के अनुसार ऐसे प्रभुजन वहां वर्ष 1984 में भर्ती हुए। शुरुआती दौर में यह हिन्दी में ही अपनी बात कह पा रहे थे, लेकिन वहां अन्य कोई हिन्दी भाषी नहीं मिला। इसकी खास वजह यह थी कि अपना घर में चार संस्थाओं से प्रभुजन पहुंचे हैं, जो वहां अलग-अलग रह रहे थे। कई मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती थे, जो वार्डों में अलग-अलग थे। ऐसे में यह आपस में भी हिन्दी में बात नहीं कर सके। इसका नतीजा यह हुआ कि ऐसे प्रभुजनों ने धीरे-धीरे हिन्दी बोलना भी बंद कर दिया। खास बात यह है कि इतने दिन वहां रहने के बाद भी यह तमिल भाषा को नहीं समझ पाए। ऐसे में केवल सांकेतिक भाषा से ही पेट पालने का काम किया। तमिलनाडू के मेंटल हॉस्पिटल से अपना घर पहुंचे करीब 65 वर्षीय वृद्ध पहले हिन्दी भाषी थे, जो अब सही तरह से हिन्दी नहीं बोल पा रहे। इन्होंने करीब 37 साल से हिन्दी नहीं बोली। हो गए शुगर के मरीज अपना घर आश्रम से जुड़े कार्मिकों ने बताया कि इनमें से ज्यादातर प्रभुजन शुगर के मरीज हो गए हैं। वजह लंबे समय तक यह लोग तनाव के दौर से गुजरे। ऐसे में दवाओं के सहारे ही जिंदगी चली। इससे इतर यह अपने मन की बात भी किसी से नहीं कह पाए और एकाकी जीवन इनकी जिंदगी का हिस्सा बनता चला गया। इसका नतीजा यह रहा कि तमाम बीमारियों ने इनके शरीर को खोखला कर दिया। इनमें से ज्यादातर लोग शुगर की दवाओं पर निर्भर हैं। |
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