भरतपुर. लंबे समय से कच्चा परकोटा में नियमन का इंतजार कर रहे लोगों की परेशानी अभी कम नहीं है। जहां नगर निगम ने फाइल जमा कर अब तक एक हजार आवेदकों की आपत्ति सूचना का प्रकाशन करा दिया तो वहीं दो महीने बाद भी अभी तक कार्रवाई आगे तक नहीं बढ़ पाई है। हकीकत यह है कि कच्चा परकोटा के निवासी पिछले 20 साल से नियमन की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। जनवरी माह में जयपुर में हुई बैठक में निर्धारित मापदंडों के तहत उन्हें पट्टे देने का निर्णय लिया गया था।
नगर निगम के अनुसार अभी तक कृषि क्षेत्र में पट्टों के लिए कुल 3707 आवेदन मिले हैं, जिनमें से 3247 आवेदनों का निस्तारण किया जा चुका है। बाकी पेंङ्क्षडग हैं। इसके अलावा, 69ए में नगर निगम में 1675 आवेदन आए, जिनमें से 1652 आवेदनों का निस्तारण हो चुका है। इसी प्रकार कच्ची बस्ती में 307, स्टेट ग्रांट में 2327 और समर्पण में 296 आवेदन आए, जिनमें सभी का निस्तारण हो चुका है। ये आंकड़े बुधवार तक के हैं। दूसरी ओर, कच्चा डंडा की बात करें तो यह अभी 8 फरवरी को शुरू हुआ है, जिनमें अभी तक 1556 आवेदन मिले हैं। इनकी जांच प्रक्रिया जारी है। इसके बाद पट्टे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आपत्ति सूचना प्रकाशित हुए दो महीने बीत चुके हैं। वो भी एक हजार आवेदकों की। 557 आवेदकों की आपत्ति सूचना प्रकाशित होना बाकी है। 137 आवेदकों की फाइल पटवारी के पास जांच को भेजी गई हैं।
2000 परिवार रहते हैं कच्चा परकोटा पर
कुछ माह पूर्व जनप्रतिनिधियों की ओर से कच्चा परकोटा पर रहने वाले लगभग 2000 परिवारों को धारा 69्र के तहत पट्टा देने के लिए स्वायत शासन, नगरीय विकास एवं आवासन मंत्री शांति धारीवाल को पत्र लिखा था।इसमें भरतपुर के कच्चा परकोटा पर काबिज आम जनता को राजस्थान नगरपालिका अधिनियम- 2009 की धारा 69्र के तहत पट्टा जारी करने की मांग की गई थी। जनवरी माह में जयपुर में हुई बैठक में निर्णय के बाद आवेदन भी लिए गए, लेकिन अभी तक कार्रवाई धीमी गति से चल रही है।
रियासतकाल में चारों ओर बना था कच्चा परकोटा
राजस्थान के भरतपुर शहर में चारों तरफ कच्चा परकोटा बना हुआ है. इसे यह रियासतकाल में भरतपुर की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. लेकिन, 1947 में देश के आजाद होने के साथ ही राजाओं के राज चले गए. इसके बाद लोगों ने धीरे-धीरे कच्चा परकोटा पर कब्जे करना शुरू कर दिया। अब वहां पर पक्के मकान भी बना लिए गए हैं। अब कच्चा परकोटा पर करीब दो हजार परिवार अपने मकान बनाकर रह रहे हैं। ऐसे लोग अब कब्जा की गई जमीन का मालिकाना हक देने की मांग कर रहे हैं।