>>: 'कालपुरुष' में दिखा सावरकर के सपनों का भारत

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जयपुर। महान क्रांतिकारी वीर सावरकर की 140वीं जयंती की पूर्व संध्या पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय से अनुदानित और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान की ओर से सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान, सनातन वैदिक संस्कार ट्रस्ट, अभिनय भारती नाट्य संस्था के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को बिड़ला सभागार में शाम पांच बजे से नाटक 'कालपुरुष: क्रांतिकारी वीर सावरकर' का मंचन किया गया। जयवर्धन के लिखे इस नाटक का मंचन जयपुर रंगमंच के सीनियर फैलो डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने निर्देशित किया था। यह नाटक का ऑफिशियल प्रीमियर भी था। नाटक में युवा विनायक दामोदर सावरकर के वीर सावरकर बनने की यात्रा को दिखाया गया। नाटक की विशेषता रंगमंच और मल्टीमीडिया के मिश्रण से प्री-रिकॉर्डेड संवाद और बैकग्राउंड म्यूजिक के बीच देशप्रेम में डूबे संवादों ने दर्शकों को तालियां बजाने पर विवश कर दिया। सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय सचिव रवीन्द्र साठे कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि थे।

'कालपुरुष' में दिखा सावरकर के सपनों का भारत

अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण से शुरूआत
नाटक की शुरुआत में मंच पर लगी स्क्रीन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के वीर सावरकर के व्यक्तित्व के
बारे दिए गए भाषण की पुरानी फुटेज के साथ होती है। युवा विनायक को भारत माता की सेवा करने का जज्बा उन्हें वकालत की पढ़ाई के लिए पहले लंदन ले जाता है, जिसके लिए वह बाल गंगाधर तिलक से खत लिखवाने हैं। लंदन में पढ़ाई के दौरान हाउस ऑफ इंडिया में भी वह स्वाधीनता के सपने देखना नहीं भूलते। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए उन्हें गिरफ्तार कर भारत लाया जाता है, जहां उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है और अंडमान निकोबार की सेल्युलर जेल भेज दिया जाता है। जेल में भी वह कैदियों के बीच वाचन संस्कृति, राजबंदियों के अधिकारों और हिंदू कैदियों पर होने वाले अत्याचारों का विरोध करते हैं।

'कालपुरुष' में दिखा सावरकर के सपनों का भारत

'गोडसे' के आते ही लगे भारत माता की जय के नारे
जैसे-जैसे नाटक आगे बढ़ता है, कहानी के अन्य ऐतिहासिक किरदार मंच पर एक के बाद आने लगते हैं। एक प्रंसग में सावरकर के सेल्युलर जेल से छूटकर अमरावती प्रवास के दौरान उनकी और गांधी जी की भेंट के दृश्य में वैचारिक द्वंद्व और राजनैतिक विचारधारा का टकराव भी दिखाया गया है। गांधी बने पात्र के मंच पर आने पर एक शालीन खामोशी बनी रहती है, लेकिन आजादी मिलने के बाद के एक दृश्य में जैसे ही मंच पर नाथुराम गोडसे का किरदार अपना परिचय देते हुए मंच पर कदम रखता है, तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारों से पूरा सभागार गूंज उठा। हालांकि, निर्देशक ने सावरकर के किरदार के जरिए यह स्पष्ट कर दिया कि सावरकर का गांधी जी से मतभेद जरूर था, लेकिन मनभेद नहीं था और गांधी जी की हत्या का उन्हें भी बहुत दुख था।

'कालपुरुष' में दिखा सावरकर के सपनों का भारत

संवाद और बैकग्राउंड वीडियो नैरेशन ने जगाई रुचि
'ज्ञान के लिए पढ़ो और देश के लिए जियो', 'मैं न रहूं तो तुम सती होने को बाध्य नहीं' और 'लोगों ने तोडऩा चाहा हम टूट नहीं, लोगों ने मिटाना चाहा, हम मिटे नहीं' जैसे संवादों ने जहां दर्शकों की प्रशंसा पाई वहीं मंच पर लगी स्क्रीन में सावरकर, सेल्युलर जेल, उनके दुर्लभ फोटो, जेल में बिताए वर्षों, दीवारों पर लिखते सावरकर के वीडियो फुटेज और उनके परिजनों की तस्वीरों ने दर्शकों को कहानी और उसके पात्रों के साथ जोडऩे का काम किया। प्री-रिकॉर्डेड डायलॉग्स और बैकग्राउंड म्यूजिक ने भी मंच पर कलाकारों की प्रस्तुति को संवारा। नाटक के लेखक जयवर्धन का कहना था, 'सावरकर के जीवन संघर्ष को एक नाटक में समेटना बड़ा दुरूह कार्य है। हर घटना अपने आप में पूर्ण है। मंच पर अल्पावधि में प्रस्तुत करने के लिए कई वर्षों की विभिन्न घटनाओं को एक साथ प्रस्तुत किया है। 'कालपुरुष' नाटक वीर सावरकर को श्रद्धांजलि है। नाटकीयता के लिए कल्पना का भी सहारा लिया है क्योंकि मैं इतिहास नहीं, नाटक लिख रहा हूं, जो साहित्य है।' वहीं, निर्देशक चंद्रदीप हाडा ने कहा, 'स्वतंत्रता संग्राम के महान सपूतों के योगदान को जन-जन तक ले जाने की शृंखला में नाटक 'कालपुरुष' प्रस्तुत करते हुए हमें गर्व की अनुभति हो रही है।

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