>>: ...तो सचिन पायलट का यह दांव पड़ सकता है सीएम गहलोत पर भारी!

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जयपुर। दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। कुछ ऐसा ही आजकल राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस नेता सचिन पायलट कर रहे हैं। अपने पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि के मौके पर दौसा में आयोजित कार्यक्रम में अलग पार्टी बनाने की तमाम अटकलों पर सचिन पायलट ने ना सिर्फ विराम लगाया, बल्कि गहलोत सरकार के खिलाफ अपने रुख में किसी भी तरह की नरमी बरतने के मूड में नहीं दिखे। उधर, सार्वजनिक मंच से सचिन पायलट के लगातार हमलों के बावजूद गहलोत सरकार के रुख में भी किसी तरह का बदलाव नहीं दिख रहा।

ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि गहलोत सरकार पर लगातार हमले से सचिन पायलट को क्या फायदा होने वाला है? इसकों लेकर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस कर्नाटक के ही फॉर्मूले को राजस्थान में आजमाएगी। यानि टिकट राज्य स्तर के बजाय केंद्रीय स्तर पर तय किया जाएगा। अटकलें यह भी है कि इसको लेकर सीएम गहलोत और प्रभारी सुखजिंदर रंधावा से भी चर्चा हो चुकी है। सचिन पायलट इसे बखूबी समझते हैं। इसलिए गहलोत सरकार पर लगातार हमले कर केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाए रखना चाहते है, ताकि उनके समर्थित विधायकों को टिकट मिल सके।

कुछ राजनीतिक विश्लेषक प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर रंधावा के हालिया बयान, ''बड़ी उम्र वालों को खुद सत्ता का मोह त्याग देना चाहिए। इसमें कहने की जरूरत नहीं होती है।'' से भी निष्कर्ष निकाल रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व सचिन पायलट को ही पार्टी का भविष्य का चेहरा मान रही है। तभी अनशन, पदयात्रा जैसे घटनाक्रम के बावजूद पार्टी सचिन पायलट के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले रही। इतना ही नहीं कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने हर बार भविष्य के मद्देनजर सचिन पायलट को तरजीह दी और उनके धैर्य की तारीफ भी की।

वहीं कुछ राजनीतिक पंडित मानते हैं कि सचिन पायलट चाहते है कि चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे। हो सकता है कि दबाव की रणनीति के तहत सचिन पायलट केंद्रीय नेतृत्व से अपनी बात मनवाने में कामयाब रहें। इससे पार्टी में सचिन पायलट का कद ऊंचा होगा, साथ ही उनके समर्थकों की संख्या में भी इजाफा होगा। इतना ही नहीं यदि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रिपीट होती है तो मुख्यमंत्री की भी दौड़ में बने रहेंगे।

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