>>: कनाडा के बाद अब कजाकिस्तान के जंगलों से उठा धुएं का गुबार

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नई दिल्ली। कनाडा के बाद अब पूर्वोत्तर कजाकिस्तान के अबाई क्षेत्र के जंगलों में भी भयंकर आग लग गई है। इसमें 60 हजार हेक्टेयर में फैला क्षेत्र तबाह हो गया है और 14 लोग मारे गए हैं। इन बढ़ती विनाशकारी घटनाओं को विशेषज्ञ 'वेक-अप कॉल' मान रहे हैं। इन्हें कम करना जरूरी है क्योंकि जंगलों की आग से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को हर साल लगभग चार लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार यह विनाशकारी आग वायु प्रदूषण और खाद्य असुरक्षा को बढ़ाकर जैव विविधता को नुकसान, भूमि की उर्वरता और आजीवका में कमी जैसे प्रभावों से सतत विकास लक्ष्यों की गति को धीमा कर रही है। इसका सबसे ज्यादा असर दुनिया के विकासशील देशों पर हो रहा है।

दो दशकों में वन क्षेत्रों को नुकसान हुआ दोगुना:

पिछले दो दशकों में आग से वन क्षेत्रों को होने वाला नुकसान दोगुना हो गया है। यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस एटमोस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस के मुताबिक 2001 के बाद से विशेषतौर पर यूरोप और दक्षिण अमरीका के कुछ हिस्सों में जंगलों की आग से कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है। फ्रांस और स्पेन ऐसे यूरोपीय देश हैं, जो इन घटनाओं से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। 2021 में जंगल की आग ने वैश्विक स्तर पर 1.76 अरब टन कार्बन उत्सर्जित किया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक इसमें 30 प्रतिशत और सदी के अंत तक 50 फीसदी बढ़ोतरी हो सकती है। अगर उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर लिया जाए तो भी दुनिया में वनों की आग में वृद्धि जारी रहेगी।

जहां पहले नहीं था डर वहां भी लगने लगी आग:

हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया से लेकर आर्कटिक तक दुनियाभर में आग की रेकॉर्ड तोड़ घटनाएं देखी गई हैं। जंगल की आग अब आर्कटिक और मध्य यूरोप जैसे उन स्थानों को भी प्रभावित करने लगी है, जहां पहले ऐसा नहीं होता था। तापमान में वृद्धि से जंगलों की आग वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों को नुकसान पहुंचाकर पौधों और जानवरों की कई प्रजातियों की विलुप्ति का कारण भी बन रही है। जैसे तीन साल पहले ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग ने इतनी तबाही मचाई थी कि अरबों पालतू और जंगली जानवरों का सफाया हो गया था।

भारत में तापमान में वृद्धि बढ़ा सकती है ऐसी घटनाएं:

तेजी से गर्म हो रही दुनिया में भारत को जंगलों की आग को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद् के 2021 के विश्लेषण के अनुसार पिछले दो दशकों में देश में इन घटनाओं में 52 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस साल गोवा, ओडिशा और उत्तराखंड आदि के जंगलों में आग की घटनाएं दर्ज की गई हैं। सेटेलाइट डेटा में पाया गया कि भारत में पिछले साल के मुकाबले मार्च की शुरुआत में जंगल की आग की घटनाएं लगभग 115 प्रतिशत तक बढ़ गईं। आशंका है कि जून से सितंबर के बीच अल-नीनो प्रभाव के कारण तापमान में वृद्धि जंगलों की आग को बढ़ा सकती है। देश में जंगल की आग ज्यादातर इंसानों की वजह से शुरू होती है, लेकिन बेमौसम उच्च तापमान और कम वर्षा से वनस्पति में गंभीर सूखापन आग को बढ़ा सकता है।

भारत में जंगलों में आग की घटनाएं

  • 2013-2021 तक भारत के वन आवरण में 0.48 % की वृद्धि हुई है, लेकिन इसी दौरान जंगल की आग की घटनाएं 186% बढ़ गईं
  • 36% वन क्षेत्र में अक्सर आग लगने की आशंका रहती है देश में
  • 89% ऐसे क्षेत्र जहां वनों में आग लगने की आशंका है, वे सूखे के प्रति भी संवेदनशील हैं
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