>>: माफ करना 'सरकार'...और फिर हुई मेहरबानी

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जिला परिषद ने सात मृतक आश्रितों को एलडीसी की बजाय बना दिया शिक्षक
- वर्ष 2013-14 में अनुकंपा के आधार पर दी गई नियुक्तियां, दो साल बाद परिषद ने मांगा था सरकार से मार्गदर्शन तो सरकार ने जताई थी आपत्ति, एलडीसी बनाने के दिए थे निर्देश

- हैरत ये, सरकार के आदेश जारी होने के बाद भी नियुक्ति आदेश जारी हुए, परिषद दो साल तक इस प्रकरण में नहीं ले पाई निर्णय तो मामला पहुंच गया हाईकोर्ट, ये रहेंगे शिक्षक ही

अलवर. जिला परिषद में एक और भर्ती गड़बड़ी का मामला सामने आया है। प्रदेश सरकार के आदेशों को हवा में उड़ाते हुए सात मृतक आश्रितों को एलडीसी की बजाय शिक्षक बना दिया गया। परिषद के अफसरों ने तर्क दिया कि सरकार के आदेश लेट मिले। यह एक परिस्थितिजनक त्रुटि है। इस प्रकरण के अलावा अन्य शिक्षक भर्ती से लेकर एलडीसी की दूसरी भर्तियों में भी परिषद के अफसरों ने अपना बचाव करते हुए सरकार को जवाब दिए थे। जानकारों का कहना है कि परिषद के इस खेल से शिक्षकों के सात पद खराब हो गए। क्योंकि मृतक आश्रितों को तो एलडीसी की नौकरी मिलती ही। हालांकि इस मामले में अभ्यर्थियों की कोई गलती नहीं थी। उन्होंने अपना हक मांगने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उनको राहत भी मिली पर परिषद की व्यवस्था पर यह प्रकरण सवाल खड़े कर रहा है।


इस तरह दी गई नियुक्ति
वर्ष 2013-14 में जिला परिषद की ओर से तीन आदेशों में सात मृतक आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर शिक्षक की नौकरी दी, जबकि राज्य सरकार के निर्देशानुसार मृत राज कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकम्पात्मक नियुक्ति नियम अनुसार ग्रेड पे संख्या 10 में 2800 रुपए तक ही उल्लेखित पदों पर दिए जाने का प्रावधान था। राज्य सरकार ने 1 जुलाई 2013 से अनुकंपा पर शिक्षक पद पर नियुक्ति दिए जाने के प्रावधान को समाप्त कर दिया था, क्योंकि यह पद ग्रेड पे 3600 का था। इसी बीच मामला उठा तो परिषद ने सरकार से मार्गदर्शन मांग लिया। सरकार ने साफ शब्दों में कह दिया कि इन सभी शिक्षकों को एलडीसी बनाएं लेकिन परिषद ने वर्ष 2014 से लेकर 2016 तक कोई निर्णय नहीं लिया। इसके बाद तैनात किए गए शिक्षकों ने नियमित वेतनमान की मांग की तो वह जारी नहीं की गई। इसको लेकर शिक्षक हाईकोर्ट पहुंचे। करीब दस साल बाद कोर्ट ने इनके हक में फैसला लिया। इस प्रकरण को लेकर परिषद के अफसरों से संपर्क साधा गया लेकिन नहीं हो पाया।

ये खड़े हुए सवाल

अब सवाल खड़ा होता है कि एक ओर जिला परिषद ने प्रकरण में यह बताया कि यह एक परिस्थितिजनक त्रुटि है और शिक्षक पद पर नियुक्त नहीं किए जाने के आदेश लेट मिले, लेकिन दूसरी ओर लगभग 10 सालों तक इन लोगों को केवल फिक्स वेतन पर ही नियुक्त रखा गया। परिषद अपने नियुक्ति आदेश को सही मानती थी तो इतने सालों तक इन 7 शिक्षकों को केवल फिक्स वेतन पर ही कार्यरत क्यों रखा गया ? इतना ही नहीं यदि वर्ष 2014 में सरकार ने इन्हें लिपिक पद पर नियुक्त करने के आदेश जारी किए थे तो जिला परिषद ने 2 साल बाद तक इन लोगों के कोर्ट में जाने का इंतजार क्यों किया?



इन प्रकरणों में भी अफसरों ने दी सफाई

पिछले महीने गलत तरीके से शिक्षक पद पर पात्र अभ्यर्थी योगेन्द्री यादव के स्थान पर एक अपात्र को शिक्षक पद पर नियुक्ति देने, इसके अलावा तीन संतानों वाली महिला अभ्यर्थी सुमन कौर को संतानों की सही सूचना देने के बाद भी शिक्षक पद पर नियुक्ति दिए जाने और एक अपात्र अभ्यर्थी कमल सिंह को आवेदन के 2 साल बाद की डिग्री लगाने पर भी शिक्षक के पद पर नौकरी दिए जाने के मामले सामने आ चुके हैं। इसी प्रकार 6 महीने पहले हुई लिपिक भर्ती में भी कई अपात्रों को लिपिक पद पर भी नियुक्ति दिए जाने के प्रकरण आए। परिषद ने अपना बचाव करते हुए यह कह दिया कि अभिलेखों की जांच करने वाले दल की भूल रही है। यानी हर मामले में अफसर अपने को बचाते रहे।

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