बाड़मेर पत्रिका. दुबई कब?
बाड़मेर को दुबई बनाने का सपना दिखा रही कंपनियां अपने लिए काम कितनी फुर्ती से करती है और आम आदमी के लिए सीएसआर और अन्य खर्च में कितना समय लगता है इसके उदाहरण सामने है। पचपदरा रिफाइनरी के पास में कर्मचारियों के लिए करोड़ों की कॉलोनी बन गई है। बाड़मेर में तेल व कोयला से जुड़ी दोनों कंपनियों ने आलीशान कॉलोनियां बनाकर अपने लोगों को सुरक्षित कर दिया है लेकिन जिन लोगों की जमीन और खेत गए हैै वे सुविधाओं को तरस रहे है। कारण यह भी है कि कुछ लोगों की ठेकेदारी ने बहुुसंख्यकों के लिए होने वाले काम रोक दिए है।
बाड़मेर पत्रिका.
तेल,गैस और कोयला मिलने के बाद में बाड़मेर के विकास का मानचित्र तैयार करने के लिए सरकार ने यहां नुमांइदों पर ऐतबार किया। इन नुमाइंदों ने सार्वजनिक हित को छोड़कर अपने हित को आगे कर दिया। ठेकेदार बनकर कंपनियों में काम लेने की हौड़ ऐसी मची है कि कोई भी सार्वजनिक हित को बात कहने को तैयार नहीं है। जनप्रतिनिधियों व प्रशासन ने भी अब तक हुई बैठकों में सार्वजनिक विकास की तस्वीर आगे नहीं बढऩे पर कोई पहल नहीं की है।
पचपदरा
पचपदरा के पास रिफाइनरी बनने लगी तो इसके साथ ही चिंता हुई कि यहां कर्मचारी आएंगे वो कहां रहेंगे? रिफाइनरी के साथ ही तत्काल करीब 1300 लोगों के रहने की एक कॉलोनी विकसित होने लगी और रिफाइनरी निर्माण के साथ ही यह कॉलोनी भी बनकर तैयार हो जाएगी। करीब में ही पचपदरा और सांभरा दोनों कस्बे है जहां के लोगों के लिए रिफाइनरी का वेस्ट, प्रदूषण, कोलाहल और अन्य परेशानियां जुड़ गई है। इन दोनों कस्बों के पूरे विकास को लेकर कोई मैप तैयार नहीं हुआ है। सवाल यह है कि करोड़ों रुपए की लागत से 1300 लोगों के लिए कॉलोनी का बजट रखा तो पचपदरा-सांभरा के लिए बजट क्यों नहीं?
भादरेस
पॉवर प्लांट में कार्य करने वालों के लिए बाड़मेर में कॉलोनी बना दी गई हैै। करोड़ों की जमीन खरीदी गई और वहां आलीशान फ्लेट सहित तमाम सुविधाएं दी गई है। यह ठीक बात है लेकिन भादरेस गांव की सूरत बदलने का काम नहीं हुआ है। भादरेस में गरीब परिवारों की कॉलोनी भी नहीं बनी है। केरला के अर्नाकुलम के पास मेें काम करने वाले एक व्यवसायी ने अपने क्षेत्र के सभी गरीब परिवारों को कॉलोनी बनाकर दी है। वहां एक मॉल प्रारंभ किया है,जहां प्रभावित लोगों को रियायती दर पर किराणा सहित तमाम सामान मिलता है। बिजली सभी घरों को मुफ्त की है। महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए हर महिला को र ोजगार, बुजुर्गां को पेंशन और तमाम सुविधाएं की है। ऐसा भादरेस में क्यों नहीं हुआ?
नागाणा-छीतर का पार
14 साल में 15 खरब का राजस्व मिलने के बाद भी नागाणा और छीतर का पार इलाका विकास को तरस रहा है। ठेकेदारी का कार्य करने वालों की इमारतें बुलंद हो रही है लेकिन आम आदमी के झोंपों में आज भी रोशनी का इंतजार है। घर-घर नल की सरकारी योजना में भी यह कंपनियां साथ देती तो इस गांव में हर घर में नल का पानी पहुंच जाता। सड़क,बिजली और मूलभूत सुविधाएं नहीं के बराबर है। प्रश्न यह है कि एक गांव जो महज तीन चार किमी के दायरे में बसा है उसको विकसित करने और केवल 3000 की आबादी के इलाके को समृद्ध करने में बजट कितना खर्च हो जाता जो कंपनियां 14 साल में नहीं कर पाई?
नगर
गुजरात ग्रिड तक गैस पहुंच रही है लेकिन नगर गांव तक विकास नहीं पहुंचा। पशुपालन डेयरी विकसित कर इस गांव में बहुत बड़ी संभावनाएं तलाशी जा सकती है लेकिन कंपनियों को फुर्सत नहीं है। प्लांट के बाहर निकलते ही क्या हालात है इस पर भी ध्यान नहीं है। सुविधाओं से महरूम हो रहे नगर गांव की सुध नहीं ली गई है।