>>: बोल उठेंगे बेजुबान पर्वत- सूजेश्वर की गोद में बने चण्डीगढ जैसा रॉक पार्क

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बाड़मेर पत्रिका.
कैसे बनेगा बाड़मेर में यह रॉक पार्क
कारेली :कारेली नाडी में पानी का पुनर्भरण कर केयर्न एनर्जी ने 2006 में इसके उद्धार का जो प्लान दिया था,उसे कागजों से बाहर निकालकर लागूू करे।
वैणासर:झील बने
चण्डीगढ़ के रॉक पार्क में जगह-जगह पानी की झीलें बनाई गई है। इन झीलों के इर्दगिर्द वेस्ट से तैयार कलाकृतियां, मूर्तियां और पत्थर रखे गए है । वैणासर के छोटे तालाब को ऐसा आकर्षक बनाएं। पहाडिय़ों से वैणासर में बारिश में गिरने वाले पानी का प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाया जाए।
फूड जॉन एरिया बने
वैणासर से मंंदिरों की श्रृंखला के बीच में एक बहुत बड़ा भूभाग है जो चौड़ा और अलग तरह का है। रॉक पार्क चण्डीगढ़ में भी ऐसे कई स्थान है। सूूरत की तरह घर से आकर लोग दरी-फरासी पर सकून से परिवार सहित खाना खाते नजर आए।
बाड़मेरी पार्क
खेजड़ी, रोहिड़ा, कैर, बैर, बबूूल, आक, फोग, जाळ, सरेस, नीम, पीपल, बड़ सहित ऐसे तमाम पेड़ जो रेगिस्तान की खासियत से जुड़े रहे है उनको पहाडिय़ों के बीच में एक पूरे इलाके में उगाकर बड़ा किया जाए।
पशुधन की मूर्तियां
महावीर पार्क बाड़मेर में हाल ही में पशुओं की प्रतिमाएं लगी है। ऐसे ही रॉक पार्क में ऊंट, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, लोमड़ी, गोडावण, घोड़े सहित तमाम बाड़मेर के पशुधन को दर्शाता एक कोना हो सकता है।
मिनी बाड़मेर म्युजियम
पत्थरों पर ही एक खुला म्युजियम हों। इसमें संपूर्ण बाड़मेर जिले की एक तस्वीर उकेरी जाए। जिसमें बाखासर का रण, रोहिड़ी के धोरे, किराडू, रेडाणा का रण, तिलवाड़ा मेला, लूणी नदी, बाटाडू का कुआं, शिव के सूर्य मंदिर, खेड़, न ाकोड़ा, आसोतरा, विरात्रा सहित तमाम स्थलों की छोटी प्रतिकृतियां एक जगह नजर आए।
पहाड़ी-पहाड़ी बोलते पत्थर
पहाडिय़ों की एक पूरी श्रृंखला इस क्षेत्र में है। हर पहाड़ी का अपना अलग रंग और रूप है। बस यहां के पत्थरों का व्यवस्थित करने के साथ हर पहाड़ी पर अलग-अलग पत्थरों को सजाया जाए, वेस्ट से बनी मूर्तियां व्यवस्थित रख दी जाए। पूरी बाड़मेरी कला-संस्कृति का उकेरा जाए तो पहाड़ी-पहाड़ी बोलती नजर आएगी।
कपूरड़ी का लिग्राइट जॉन
बाड़मेर के कपूरड़ी, जालिपा और सोनड़ी का लिग्नाइट कोयला प्रसिद्ध है। इस कोयले के लिए पहाड़ी का एक कोना है। लोग यहां बड़े-बड़े कोयले को देखे, उसको समझें और इसी कोयले से कलाकृतियां तैयार कर ऐसे सजाए कि कोयले में कला नजर आए।
कपूरड़ी की मुल्तानी मिट्टी
कपूरड़ी की मुल्तानी मिट्टी देशभर में पहुंच रही है। यह भी रॉक पार्क का बड़ा हिस्सा बन सकती है। इस रॉक पार्क में मुल्तानी मिट्टी की बड़ी-छोटी शिलाएं यहां रखकर इसकी जानकारी दी जाए।
बिशाला की मृणकला- पहाड़ी के किसी एक कोने में लुप्त होती बिशाला की मृणकला यानि मिट्टी के बर्तन, उत्पादन खिलौने और गहनों का कोना हों। इसमें पोकरण की जीआइ टैग प्राप्त मिट्टी की कलाकारी भी हों। यह बेचने नहीं केवल देखने के लिए मिट्टी का पार्क होगा।
पचपदरा की मटकियां- पचपदरा की प्रसिद्ध मटकियां है। इन मटकियों, पुराने जमाने के बड़े-बड़े मटके, माटे, पुराने जमाने में काम में आने वाले तमाम मिट्टी के बर्तन एक कोने में सजाकर रखे जाए, जिन्हें देखकर पूरा पुराना जमाना याद आए।
पचपदरा के नमक स्तूप- पचपदरा की झील से नमक निकलता है और नमक के स्तूप अलग ही नजर आते है। इन स्तूप की कलाकृतियों को यहां दिखाना अलग ही दृश्य होगा।

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