>>: Chandrayaan-3 की चार थ्रस्टर से गति की गई नियंत्रित, अब अन्य ग्रहों पर पहुंचना होगा आसान

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Chandrayaan-3 ndia : मिशन मून के तहत भेजे गए चन्द्रयान-3 की गति को नियंत्रित करने के लिए इसरो ने इस बार उसमें उपयोग होने वाले थ्रस्टर की संख्या कम की थी। चन्द्रयान-2 में पांच थ्रस्टर थे, वहीं इस बार चार ही थे। इनका कार्य चन्द्रमा पर लैडिंग के समय यान की गति को नियंत्रित करना होता है, जिससे कि सॉफ्ट लैंडिंग करवाई जा सके। यह प्रयोग सफल रहा और भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर उतारने वाला पहला देश बन गया। यह बताया इसरो में छह वर्ष तक कार्य करने वाले पाली के भांवरी गांव निवासी दिनेश जांगिड़ ने, जो चन्द्रयान-3 से भी जुड़े रहे हैं और यूपीएसइ में चयन होने पर करीब 20 दिन पहले ही इसरो को छोड़ा है। उनका कहना था कि ऐसे मिशन से क्रिटिकल तकनीक को बढ़ावा मिलता है। जिसका लाभ कई क्षेत्रों में होता है।

दूसरे ग्रह पर जाने की बनी पहुंच
उन्होंने बताया कि इस यान को चन्द्रमा पर उतारने का बड़ा उद्देश्य यह था कि हम किसी अन्य ग्रह या उपग्रह पर पहुंच सकते हैं, जिसमें हम सफल रहे। यह ऐतिहासिक क्षण है। उन्होंने बताया कि पहला चन्द्रयान 2 के ऑरबिट को ही चन्द्रयान 3 में उपयोग किया गया था। इसके दो अन्य भाग विक्रम लैंडर व प्रज्ञान रोवर है।

यह कार्य करेगा प्रज्ञान रोवर
उन्होंने बताया कि प्रज्ञान रोवर चन्द्रमा पर 14 दिन सूर्य की रोशनी पहुंचने के कारण सूर्य से ऊर्जा लेगा और वहां से केमिकल व मिट्टी के साथ अन्य चीजों की जानकारी भेजेगा। इसका समय अभी 14 दिन का ही रखा गया है। इसके बाद इसरो चाहे और सभी उपकरण सही कार्य करें तो रोशनी मिलने पर फिर से इस प्रज्ञान रोवर से जानकारी ली जा सकती है।

सूर्य व पृथ्वी के बीच भेजेंगे मिशन
उन्होंने बताया कि इसके बाद इसरो की ओर से दो मिशन भेजने की तैयारी है। इनमें एक आदित्य एल-1 व दूसरा एरआइएसआर है। एनआइएसआर इसरो व नासा का संयुक्त मिशन है, जिसमें सेटेलाइट को श्रीहरिकोटा से लांच किया जाएगा। वहीं आदित्य एल-1 सूर्य से आने वाली किरणों और प्लाज्मा आदि के अध्ययन के लिए भेजा जाएगा, जो सूर्य व पृथ्वी के बीच एल-1 नाम दिए गए स्थल पर रहेगा।

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