>>: Digest for October 07, 2023

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सीकर. मानवता से भरा मन व मजबूत मंसूबे हो तो मजलूमों का भी मुकद्दर बदला जा सकता है। इसी सोच व शिद्दत के साथ एक शिक्षिका पिछले चार साल से सबलपुरा पावर हाउस के पास स्थित कच्ची बस्ती के बच्चों की तकदीर शिक्षा के जरिए संवारने में जुटी है। राउमावि सबलपुरा में बतौर एल-1 शिक्षक नियुक्त सुनीता रैवाड़ इसके लिए कच्ची बस्ती में घर-घर जाकर बच्चों को एकत्रित करती है और फिर रोजाना दो से तीन घंटे उन्हें पढ़ा समाज की मुख्यधारा से जोडऩे की कवायद कर रही है। गुड टच- बैड टच सहित व्यक्तित्व निर्माण का प्रशिक्षण भी इस शिक्षा का हिस्सा है। आलम ये है कि कभी कचरा बीनकर और मांगकर पेट भरने वाले बच्चे भी अब अंग्रेजी की की किताबें पढऩे लगे हैं। अभावों से उबारने के लिए सुनीता पति सुरेश के साथ उनके परिवार के दस्तावेज तैयार करवाकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में भी मददगार बन रही है।

27 बच्चे ले रहे कक्षाएं, सरकारी स्कूल में भी प्रवेश
गोपीनाथ की ढाणी के पास स्थित कच्ची बस्ती में सुनीता के पास अभी 27 बच्चे पढ़ रहे हैं। स्कूल से अपनी छुट्टी के बाद सुनीता इन्हें शाम को दो से तीन घंटे पढ़ाती है। खास बात ये भी है कि सुनीता ने इनमें से ज्यादातर बच्चों का प्रवेश आसपास की सरकारी स्कूलों में भी करवा रखा है। ताकि बच्चे दिन में भिक्षावृत्ति या अन्य कार्य से ना जुड़ जाए।

 

बच्चों के लिए बनवा चुकी है भवन
नवलगढ़ रोड स्थित चरण सिंह गेट निवासी सुनीता राउमावि सबलपुरा स्कूल में अपने स्तर पर भवन निर्माण के अलावा अन्य सुविधाएं भी जुटा चुकी है। 2015 में मर्ज हुई स्कूल के बच्चों के बैठने की जगह नहीं होने पर सुनीता ने अपने वेतन से चार लाख रुपए खर्च कर बच्चों के लिए भवन तैयार करवा दिया था। बिजली व पानी का कनेक्शन करवाकर बगीचा भी तैयार करवाया। इसके अलावा म्यूजिक सिस्टम सहित करीब दो लाख रुपए से अन्य विकास कार्य भी वह करवा चुकी है। यही नहीं भामाशाहों को प्रेरित कर वह स्कूल में 17 लाख रुपए का विकास कार्य भी करवा चुकी है।

पांच बच्चों को लिया गोद, पति भी कर रहे सहयोग
मानवता की मिसाल पेश कर रही सुनीता ने पांच गरीब बच्चों को गोद भी ले रखा है। जिनकी पूरी पढ़ाई का खर्च उन्होंने अपने स्तर पर उठाने का संकल्प लिया है। उनके नेक काम में उनके रोडवेज डिपो में सीबीएस प्रभारी सुरेश रैवाड़ भी पूरा सहयोग करते हैं। बकौल सुनीता समाज सेवा का भाव उन्हें पिता से विरासत में मिला है। जिसे पति का प्रोत्साहन आगे बढ़ा रहा है।

बिहारीलाल शर्मा/रींगस. दिल्ली से जोधपुर वाया रींगस, नीमकाथाना होते हुए एक बार फिर से ट्रेन की शुरुआत होने वाली है। इस बार ट्रेन की शुरुआत दिल्ली जोधपुर जैसलमेर के बीच होगी। करीब 72 साल पहले जोधुपर-दिल्ली के बीच स्टीम की ट्रेन चलती थी। इसी ट्रेन से लोग मारवाड़ का सफर करते थे। मारवाड़ की तरफ तोरण मारने जाने वाले लोग भी इसी ट्रेन से जाते थे। बारात में आठ-दस लोग ही शामिल होते थे। बाद में यह ट्रेन बंद हो गई। रूणिचा एक्स शुक्रवार को रींगस स्टेशन पर सुबह दस बजे आएगी। यहां से ये ट्रेन दिल्ली जाएगी।

जोधुपर की ट्रेन बंद हुई तो लोग रेवाडी -फुलेरा चलने वाले 9 अप-10 डाउन शटल का प्रयोग करते। ट्रेन में चढऩे की आपाधापी के बीच नव विवाहितों की दुल्हनें अदला बदली हो जाती थी। इससे बाराती जहां पर भी ट्रेन रुकती वहीं पर दुल्हनों की तलाश करते। घूंघट प्रथा होने तथा संचार के साधनों की कमी के कारण कई बार तो दुल्हनों को घर पर भी छोड़ कर जाते तथा अपनी दुल्हने साथ लेकर जाते। कुछ ऐसा ही वाक्या नीमकाथाना, खण्डेला, श्रीमाधोपुर जयपुर जिले के बधाल रेनवाल, किशनमानपुरा सहित स्थानों के अनेक दुल्हो तथा दुल्हनों के बीच भी हुआ था। जोधपुर के लिए जैसे ही ट्रेन की घोषणा हुई तो अपने साथ 70 साल पहले हुए घटना की जानकारी रींगस के पुलिस थाने के पास रहने वाले 90 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रामूसिंह शेखावत ने भी बताई।
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मारवाड़ के लिए ट्रेन से ही जाती थी बारात
90 वर्षीय रामू सिंह शेखावत ने बताया कि जब वे 16 साल के हुए तो उनकी शादी मारवाड़ में स्थित मेडता रोड के पास एक औलादन गांव में हुई। 1952 में आखातीज पर उनकी शादी तय हुई। उनकी पत्नी खमां कंवर की बड़ी बहन की शादी भी कालाडेरा के पास स्थित खरनीपुरा में तय हुई। दोनों की बारात ट्रेन से रवाना हुई। शादी से पहले जोधपुर की ट्रेन बंद हो गई। बारात 9 अप 10 डाउन रेवाडी-फुलेरा से फुलेरा पहुंची। यहां से कोटा जोधपुर ट्रेन से बारात मारवाड़ में मेडता रोड पहुंची।

वापसी में भी इसी ट्रेन का सहारा लिया गया। फुलेरा पहुंचते ही देखा कि वहां तो 100-150 विवाहित जोड़े पहले से ही खड़े थे। ये सभी जोड़े रींगस नीमकाथाना रूट सहित आस पास के गांवों व शहरों के थे। कुछ जोड़े जयपुर जिले के भी थे। रेवाड़ी फुलेरा ट्रेन में चढऩे में उनकी पत्नी खमां कंवर पीछे रह गई जबकि दूसरे की पत्नी उनके साथ हो गई। रेनवाल में दुल्हन की बड़ी बहन ने देखा की उसकी छोटी बहन खमां कंवर तो उसके साथ नहीं है। यह दुल्हन तो कोई दुसरी है। ऐसे में डिब्बे में अफरा तफरी मच गई। डिब्बे में ही दो अन्य दुल्हों की दुल्हनें भी गायब थी जबकि उनके साथ भी दूसरे दूल्हों की दुल्हनें हो गई। बधाल रेलवे स्टेशन पर दूसरे दूल्हों ने भी अपनी पत्नियों को खोजते हुए डिब्बे के पास पहुंच गए और मेरे साथ गए लोग भी आवाजे देने लगे की दुल्हन की अदला-बदली हो गई। रींगस से दस किमी आगे फुलेरा रेलमार्ग पर स्थित बधाल में उसे अपनी दुल्हनें मिल गई। कुछ की दुल्हनों को रींगस जंक्शन पर तलाश किया गया। शेखावत ने बताया कि कुछ लोगों की दुल्हनें फिर भी नहीं मिली। इस पर घर पर लोगों को पता चला तो दूसरों की दुल्हन को सम्मान के साथ घर तक छोडऩे गए और अपनी पत्नी लेकर आए। कई बार तो दोनों ही परिवार वाले नहीं मिले। ऐसे में दोनों ही परिवारों के परिजनों को मेहमानों को वहीं पर रुकने की हिदायत देकर जाते ताकि आते ही दुल्हनों को एक दूसरे के जान पहचान होने के बाद भेज देंगे।
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नहीं था संचार का साधन
उस जमाने में आज की तरह संचार का साधन नहीं थे। पत्नी की फोटो तो दूर नाम तक पता नहीं था। रिश्तेदार ही शादी तय कर देते थे। शादी के दस साल बाद तक पति-पत्नी में बात नहीं होती थी। सड़क परिवहन का साधन ना के बराबर था। जोधपुर की तरफ जाने के लिए तो वाहन की सोच भी नहीं सकते थे। लोगों में इतनी समझ भी नहीं थी। हम यह सोच भी नहीं सकते थे एक दिन हाथ में मोबाइल भी होगा। भारी भीड़ तथा एक ही ट्रेन होने से ऐसी होनी अनहोनी होती थी,लेकिन लोग इतने सजग रहते थे कि दुल्हनों की अदला बदली नहीं हो जाए, लेकिन फिर भी भीड़ की वजह से दुल्हनों की अदला बदली हो जाती थी। इस पर ससम्मान दुल्हनो को उनके घर पर छोड़ कर आते थे। लोग बहुत ही सज्जन थे। घर में जब तक दूसरों की दुल्हन रहती थी पुरुष घर में घुसता भी नही था।

कठोर थी पर्दा प्रथा
70 साल पहले पर्दा प्रथा काफी कठोर थी। छोटी उम्र में शादी हो जाती थी। घुंघट से भी महिलाएं आर पास नहीं देख पाती थी। बड़ी महिलाए ही घूंघट उठाकर पूछती थी। एक परिवार में दो-दो शादियां होती थी। दुल्हन के साथ अन्य बालिका एक बार साथ आती थी, वही बातचीत का जरिया होती थी। दुल्हनें सास, ननद आदि से बोल भी नहीं पाती थी, जिनके घर में छोटी लड़की नहीं होती थी।

सीकर/लक्ष्मणगढ़. सीएम अशोक गहलोत द्वारा प्रदेश में बढ़ी उपराष्ट्रपति की यात्राओं पर किए गए तंज पर उपराष्ट्रपति ने शुक्रवार को पलटवार किया है। मोदी विवि में छात्राओं से संवाद कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति धनकड़ ने कहा कि मुख्यमंत्री को संवेदनशील होना चाहिए। पॉलिटिकल परसेप्शन के लिए संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को राजनीति में नहीं घसीटना चाहिए। बोले, मैं बार-बार आता हूं, उसमें ही कुछ लोगों को समस्या होने लग गयी। अरे भाई, मुझे राजनीति में क्यों घसीट रहे हो। मैं किसान का बेटा हूं, मेरा काम संविधान सम्मत है। शायराना अंदाज में कहा कि जिंदगी से बड़ी सजा नहीं, जिंदगी क्या है पता ही नहीं, खता क्या की हमने उन्हें पता ही नहीं, आपत्ति क्यों है उन्हें मेरे अपने घर आने में....। नेताओं की बयानबाजी पर कहा कि मन दुखी होता है कि मेरे लिए किन-किन शब्दों का उपयोग कर लिया। यह देश हम सबका है, बेवजह संवैधानिक पद के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए। धनकड़ ने कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को राजनीति में घसीटा जाए यह गलत है।

तीन कार्यक्रमों में की शिरकत
उप राष्ट्रपति धनकड़ ने शुक्रवार सुबह सांगलिया धूणी के दर्शन कर पीठाधीश्वर ओमदास महाराज से लगभग 15 मिनट संवाद किया। इसके बाद धनकड़ ने मोदी विवि की छात्राओं से संवाद किया। यहां से उप राष्ट्रपति सीधे त्रिवेधी धाम पहुंचे। यहां दर्शन कर दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इस दौरान सांसद सुमेधानंद सरस्वती व राज्यवर्धन सिंह राठौड़ आदि मौजूद रहे।

छात्राओं को संदेश: रूको मत, आगे बढ़ते रहो
धनकड़ ने शिक्षा का महत्व बताने के साथ-साथ छात्राओं को कई सीख दी। उन्होंने कहा कि परिवार जब उन्नति करता है तो कई अपनों को भी जलन होती है लेकिन नकारात्मकता को कभी खुद हावी नहीं होने देना है। छात्राओं से कहा कि किसी भी परिस्थिति में रुको मत, आगे बढ़ते रहो। जो आपको अच्छा लगे, वो करें। चुनौतियां आती रहेगी, इनसे कोई बच नहीं सकता। इनका सामना करो।

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