>>: Digest for April 09, 2024

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कोटा. कोटा कचौरी खाने वाले थोड़ा सावधान हो जाइए। शहर की प्रमुख दुकानों पर काम में लिए पुराने तेल में कचौरियां तली जा रही थी। फूड पैकेट पर भी बेस्ट बिफॉर नहीं लिखा मिला। शुद्ध आहार मिलावट पर वार अभियान के तहत सोमवार को अतिरिक्त आयुक्त फूड सेफ्टी एंड ड्रग कंट्रोल राजस्थान पंकज ओझा ने कोटा में कचौरी एवं मिठाई निर्माताओं के यहां आकस्मिक निरीक्षण किया तो यह खुलासा हुआ। खाद्य सुरक्षा विभाग की टीम ने 16 नमूने एकत्रित किए।
ओझा ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से चलाए जा रहे शुद्ध आहार-मिलावट पर वार अभियान के तहत नयापुरा स्थित रतन कचौरी एंड स्वीट्स का निरीक्षण करने पर मिठाइयों पर बेस्ट बिफॉर अंकित नहीं था। यहां पुराने तेल में ही नया तेल मिलाकर काम में लिया जा रहा था। फूड हैंडलर्स का मेडिकल सर्टिफिकेट मौके पर नहीं पाया गया। कचौरी तलने के स्थान पर जाले लगे हुए थे। दीवारों पर गंदगी लगी हुई थी। आसपास भी अनहाइजीनिक स्थिति में कचौरी तलने का कार्य किया जा रहा था। विक्रेता को सुधार करने के निर्देश प्रदान करते हुए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के नियम 32 के तहत नोटिस जारी किया। जोधपुर स्वीट्स गुमानपुरा का भी निरीक्षण किया गया। यहां पर मिठाइयों पर बेस्ट बिफॉर अंकित नहीं था। महावीर नगर में जय अंबे कचौरी दुकान पर भी तीन बार में भी तेल नहीं बदला जा रहा था। पानी की जांच रिपोर्ट नहीं मिली। फूड हैंडलर्स का मेडिकल सर्टिफिकेट मौके पर नहीं पाया गया। ऐसे में दुकान संचालक को नोटिस जारी किया गया।

कोटा. लोकसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचना फैलाना भारी पड़ सकता है। जवाहर नगर पुलिस ने सोमवार को भाजपा नेता महेश विजय की शिकायत पर मामला दर्ज किया है। पुलिस अब भ्रामक सूचना पोस्ट करने वाले व्यक्ति की तलाश कर रही है।

पुलिस के अनुसार, महेश विजय ने थाने में शिकायत में दी कि अज्ञात व्यक्ति ने एक मोबाइल नम्बर से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली, इसमें लिखा कि 'ब्रेकिंग न्यूज... हीरालाल नागर, महेश विजय के साथ कैंप कार्यालय में छोटा भाई ने की बदसलूकी, मारपीट।' इस आपराधिक पोस्ट का उद्देश्य उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के साथ दो समाजों के बीच में दुर्भावना तथा समाज में भय उत्पन्न करना है।
विजय ने कहा कि यह पोस्ट जानबूझ कर चुनाव में एक प्रत्याशी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फैलाई गई। इसकी जानकारी समाज के लोगों को लगने से उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ है। यह एक आपराधिक कृत्य है। आरोपी को गिरफ्तार कर उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। पुलिस ने शिकायत पर अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ धारा 469, 471, 500,505 120बी आईपीसी आईटीएक्ट के रिपोर्ट दर्ज कर आरोपी की तलाश शुरू की है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। एफआईआर में मोबाइल नम्बर भी दिया गया है। आरोपी किसके इशारे पर यह भ्रामक सूचना फैला रहा था, इसकी जांच की जा रही है। पूर्व में भी विधायक संदीप शर्मा के बारे में गलत सूचना फैलाई गई थी।

अतुल कनक

हाल ही में हाड़ौती अंचल का चर्चित लोकपर्व न्हान सम्पन्न हुआ है। हालांकि मिर्जापुर जैसे कस्बों में भी न्हान के अवसर पर आयोजन होते हैं, लेकिन सांगोद का न्हान लंबे समय से न केवल चर्चित है, बल्कि हमारे अंचल की सांस्कृतिक समृद्धि का पारंपरिक वाहक भी है। न्हान के अवसर पर सांगोद के बाजारों में जादुई लागों का प्रदर्शन किया जाता है। जैसे कच्चे सूत से बैलगाड़ी का पहिया लटका देना या कटार की उलटी नोंक पर किसी कलश को ऐसे बांध देना कि बहुत कोशिशों के बावजूद सामान्य आदमी दोनों को अलग नहीं कर सके।

पहले हाड़ौती उत्सव के समय जब कोटा में सांगोद के कलाकारों ने इन हैरतअंगेज लागों का प्रदर्शन किया था तो हजारों की भीड़ इन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ी थी। वो अस्सी के दशक की बात है। उस समय दशहरे के अलावा किसी अन्य आयोजन में इतने लोग एकसाथ नहीं जुटते थे। अब तो कई कई दिन तक लोग इसी चर्चा में लगे रहते हैं कि किसकी रैली में ज्यादा लोग आए और क्यों आए? चुनाव के दिनों में अपने पक्ष में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाकर नेता अपने विरोधी का विश्वास डांवाडोल करना चाहते हैं या अपने आत्मविश्वास को नई ऊर्जा देना चाहते हैं, यह मनोवैज्ञानिकों के लिए विश्लेषण का विषय हो सकता है।

कहते हैं कि प्राचीनकाल में सांगोद की लागों का तिलिस्म बंगाल के कालूजादू से भी अधिक प्रसिद्ध था। दूर दूर से लोग यहां जादू सीखने आया करते थे। हाड़ौती अंचल प्राचीनकाल में जादू और तंत्र-मंत्र के लिए भी विख्यात रहा है। झालावाड़ जिले में छापी नदी के किनारे दलहनपुर नामक एक प्राचीन नगर के अवशेष हैं।

यहां मौजूद एक इमारत के बारे में पुराविदों का कहना है कि यह अपने समय में तंत्र विश्वविद्यालय रहा होगा। याने हमने तंत्र विश्वविद्यालय से कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालयों तक का सफर तय किया है। बचपन में हम सबने मदारी का खेल देखा है। अपने हाथ में वो कोई चीज़ पकड़ता था और जोर से कहता था 'चुर्रघुस्स'। हाथ से पकड़ी हुई चीज़ गायब हो जाती थी और फिर मदारी के थैले में निकलती थी।

राजनीति में भी यह 'चुर्रघुस्स' की गूंज इन दिनों हावी हो गई है। जिस तरह लागों का तिलिस्म आम लोगों को समझ नहीं आता था, उसी तरह राजनीति का चुर्रघुस्स भी आमआदमी की बुद्धि को चकराने लगा है। कल तक जो नेता किसी एक दल को पानी पी पीकर कोसता था, आज वो उसी दल के प्रेम में कच्चे सूत से लटका हुआ बैलगाड़ी का पहिया हो गया है।

पहले राजनीति मुद्दों की बात करती थी, अब राजनेता मौकों की बात करते हैं। पहले राजनीति में विचार हुआ करता था, अब विचारों पर विकार हावी होने लगा है। पहले समर्पित कार्यकर्ताओं की चवन्नी चला करती थी, अब चवन्नी खुद बंद हो गई है, बेचारे कार्यकर्ता क्या करें? उन्हें चुर्रघुस्स से उम्मीद है, लेकिन चुर्रघुस्स है कि कच्चे सूत को पकड़कर बैलगाड़ी के पहिये के साथ लटक गया है।

डा अतुल चतुर्वेदी

 

यह जो चुनाव है, इसे कुछ लोग धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध बता रहे हैं। कुछ ईमान और बेईमान का संघर्ष तो कुछ अहंकार और लोकतंत्र की लड़ाई। मुझे समझ में नहीं आता कि ऐसा कौन हरिश्चन्द्र बचा है आज राजनीति के मैदान में जो दूसरे को बेबाक़ी से ललकार सके। या लोकतंत्र की इस नाव में कौन ऐसा पुण्यात्मा बैठा है जो कहे वे ही बैठे रहें, जिसने कभी कोई पाप नहीं किए हों। वस्तुतः यह पूरी नाव ही हमारे राजनेताओं ने जर्जर की है। भाई भतीजा वाद , परिवारवाद , भ्रष्टाचार के चूहे इसे कुतर गये हैं, लेकिन दुष्यंत का शेर याद आता है - इस नदी की धार से एक हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।

 

मतलब की बात यह है कि उपलब्ध तमाम विकल्पों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है और यह अवसर है सभी मतदाताओं के लिए सही जन प्रतिनिधि के चुनाव का । अन्यथा का पछताने अवसर बीते ? बाद में बद्दुआ मत देना और कोसना भी मत फिर । धक्के भी मत खाना नगरी नगरी , द्वारे द्वारे । पांच साल बाद ही यही पंछी फिर दिखेगा इतना विनम्र और इतना कातर , सज्जनता की मूर्ति बन के । चुनाव नहीं है यह आपकी परिपक्वता के निर्णायक क्षण हैं।

 

रघुवीर सहाय की कविता की पंक्तियां रह रह कर कौंधती हैं -
निर्धन जनता का शोषण है, कह कर आप हंसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है, कह कर आप हंसे
सब के सब हैं भ्रष्टाचारी, कह कर आप हंसे
चारों ओर बड़ी लाचारी, कह कर आप हंसे
कितने आप सुरक्षित होंगे, मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर फिर से आप हंसे

 

हंसने की यह प्रक्रिया किस पर है यह शोध का विषय है । यह हंसी भोली भाली जनता पर है या अपनी चतुराई पर ? यह हंसी शक्ति और अहंकार की अट्टहासी हंसी है या तुम्हारी लाचारी पर ? बहरहाल जो भी हो तक कोशिश लगातार रहनी चाहिए कि जनता के चेहरे पर यह हंसी बचे पूरे पांच साल दिखती रहे , उसकी उम्मीदों का फूल खिलखिलाता रहे । उसके सामर्थ्य की सुगंध देश के गुलशन को महकाती रहे।

 

हर चुनाव निम्न से निम्नतम होता जाता है। समय बदल चुका है जनता को तड़का चाहिये, ग्लैमर चाहिये। पार्टियों को गुलदस्ते चाहिये, कठपुतलियां चाहिये जो उनके इशारे पर नाचें , उतना ही मुस्कुरायें जितना आलाकमान कहे। आंतरिक लोकतंत्र की हालत सभी पार्टियों में ख़स्ता है। आवाज़ उठाने वाले को कौन सुनना चाहता है? आप भी तुरंत उस कलपुर्ज़े और कुर्सी -पलंग को ठीक करवाते हैं जो चूं-चूं करता है। फिर जो चूं चपड़ भी करता हो उसे कौन बर्दाश्त करेगा भला ? मैं सोचता हूं ये उदाहरण पर्याप्त है आपको समझाने को कि लोकतंत्र में हमारा कितना सघन विश्वास बचा है। वस्तुतः हम आज भी राजे रजवाड़ों को देखकर मोहित होते हैं, चमत्कार देखकर सम्मोहित।

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