>>: अंधविश्वास दंश: ढाई साल में ले ली छह मासूमों की जान, बीस को लगाया डाम

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भीलवाड़ा. ग्रामीण क्षेत्रों में अज्ञानता और अंधविश्वास मासूमों की किलकारी पर भारी पड़ रही है। यह इसी से साबित होता है कि भीलवाड़ा जिले और आसपास के इलाकों में ढाई साल में डाम लगाने से छह मासूमों की जान चली गई, वहीं बीस मासूमों ने डाम के कारण मौत से बड़ी मुश्किल से जंग जीती। सरकार के तमाम जागरूकता के बाद भी जिले में डाम की घटनाओं पर प्रभावी रूप से रोक नहीं लग पा रही है।

मुकदमे दर्ज हुए, गिरफ्तारी तक हुई, फिर नहीं बदले हालात
जिले में डाम की घटनाओं के बाद कई थाना पुलिस ने मामले दर्ज किए। रायपुर, काछोला, बिजौलिया, बनेड़ा थाने में दर्ज हुए मामले इसका प्रमुख उदाहरण है। जहां पर बच्चों पर हुए कुठाराघात के मुकदमे दर्ज हुए है। कथित भोपाओं और रिश्तेदारों की गिरफ्तारी तक हुई। जिनके मामले अभी अदालत विचाराधीन है। कानूनी कार्रवाई के बाद भी इसका असर नजर नहीं आ रहा।

बढ़ती घटनाएं चिंताजनक
किशोर न्याय बोर्ड सदस्य सुनीता सांखला ने बताया कि डाम लगाने की घटनाएं चिंताजनक है। कई मामलों में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। मौसमी बीमारियों के कारण बच्चों को पेट दर्द, उल्टी और निमोनिया हो सकता है। बच्चों को भोपे की जगह चिकित्सक को दिखाना चाहिए। डाम लगाना घृणित कृत्य है। इस प्रकार का कृत्य कानून में गम्भीर अपराध होकर सजा योग्य है।

बदलता मौसम, सेहत पर खतरा
चिकित्सकों के अनुसार मौसम में हर दिन बदलाव हो रहा है। कभी उमस तो कभी बारिश से मौसम में नमी आ जाती है। एेसे में बदलते मौसम बच्चों को बीमार कर रहा है। निमोनिया, पेट दर्द, खांसी-जुखाम होना आम बात है। शिकायत पर तत्काल चिकित्सक से सलाह लें। अंधविश्वास के चक्कर में मासूम की जान खतरे में नहीं डाले।

सरकारी दावें खोखले
जिले में सरकारी दावे किए जाते है कि विभिन्न संगठनों, विधिक एवं साक्षरता समिति, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। लोगों को बताया जाता है कि बीमारी का इलाज चिकित्सा विभाग के पास है, ना कि किसी कथित भोपा, तांत्रिक या बाबाओं के पास। लेकिन यह सरकारी समझाइश की पोल इस तरह की घटनाओं से खुलती है।

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