>>: ये ऐसे `द्रोण' जिन्होंने घर-घर उपजाए `अर्जुन'

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ये चेहरे पर्दे के पीछे रहकर पूरा खेल खेलने वाले सच्चे हीरो हैं। इन्होंने ना सिर्फ अपना पूरा जीवन इन खिलाडि़यों को तराशने में लगा दिया बल्कि आज भी जब जरूरत पड़ती है तो वे खिलाडि़यों के हाथों को अपने एक मंत्र से ही मजबूत कर देते हैं। ऐसे द्रोणाचार्य, जिन्होंने अपने शिष्यों को पूरी दुनिया में जीत के लिए हाथों में तिरंगा सौंप भेज दिया। अब ये मैदान मारने वाले सूरमा ऐसे गुरुओं के चरणों से आशीष लेकर जीत का देश-विदेश में डंका बजा रहे हैं।

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हिम्मत सिंह सारंगदेवोत : एथलेटिक्स

वर्ष 1965 से 1994 तक एथलेटिक्स के कोच रहे। उन्होंने प्रशिक्षण देकर देश और दुनिया को हामिदा बानो जैसी अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी दी तो सहयोग से ओलम्पियन लिम्बाराम जैसा हीरा दे दिया। प्रशिक्षण में उन्हें महारत हासिल थी, उनका मूल मंत्र था नियमित प्रेक्टिस, खान-पान पर ध्यान और समय की पाबंदी किसी भी खिलाड़ी को पूरी दुनिया में सबसे ऊपर तक ले जा सकती है। उन्होंने 20 से ज्यादा राष्ट्रीय खिलाडि़यों को तैयार किया। बाद में खेल अधिकारी बनकर उदयपुर, जोधपुर, जयपुर, अजमेर और डूंगरपुर में सेवाएं दी।

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विक्रम सिंह चंदेल : तैराकी एक से एक बेहतरीन खिलाड़ी देने वाले चंदेल ने 1981 से 2000 तक खिलाडियों को प्रशिक्षण दिया। बकौल चंदेल जब उन्होंने इसकी शुरुआत की थी तो उदयपुर तैराकी में प्रदेश में सबसे आखिरी पायदान पर था, लेकिन उन्होंने जगह-जगह ना सिर्फ स्वीमिंग पूल शुरु करवाए बल्कि खिलाडि़यों को वहां तक पहुंचाने के लिए पूरे प्रयास भी किए। 75 से अधिक ऐसे तैराक तैयार किए, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर परचम फहराया। उन्होंने 1985 में राजस्थान को जनरल चैम्पियनशिप उदयपुर को दिलाकर यह साबित कर दिया कि हम किसी से कम नहीं है। उन्होंने बतौर खेल अधिकारी उदयपुर व अजमेर में सेवाएं दी।

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ललित सिंह झाला- कबड्डी

-झाला ने 1987 से 1990 तक बतौर प्रशिक्षक इसकी शुरुआत की थी। राष्ट्रीय स्तर पर सत्यनारायण सिंह, उदयलाल शर्मा, कपिल जैन, भुवनेश्वर सिंह, पन्नालाल सरीखे करीब दो दर्जन खिलाड़ी तैयार किए। मूलत: गांवों में खेले जाने वाले इस खेल में खिलाड़ी स्टेट तक जाते थे, लेकिन बाद में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के लिए खिलाड़ी तैयार किए। बकौल झाला प्रो कबड़्डी ने इसका चार्म लौटाया है। पहले तो मिट्टी में खेलने वाली कबड़्डी थी।

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धर्मदेव सिंह- हॉकी-धर्मदेव सिंह का प्रशिक्षण 1995 से लगातार जारी है। उनके शिष्यों में शामिल दिलीप मीणा ने अन्तरराष्ट्रीय कैंप अटैंड किया है। ये उदयपुर के लिए बड़ी उपलिब्ध थी। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर तक करीब 40 खिलाडि़यों को तैयार कर भेजा है। प्रशिक्षक सिंह ने बताया कि हॉकी के मैदान में उतरने से पहले समर्पण व अनुशासन सबसे जरूरी होता है। हॉकी में एस्ट्रोटर्फ आने से खिलाडि़यों को आगे जाने का बेहतरीन अवसर मिलेगा।

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अजीत कुमार जैन- वॉलीबॉल-

जैन का 1992 से अब तक लगातार प्रशिक्षण जारी है। मेवाड़ में उदयपुर और भीलवाड़ा सेवाएं देने वाले जैन ने भीलवाड़ा में यूनिवर्सिटी रेड जोन की सैकंड पोजिशन की टीम तैयार की, वहीं ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी दिए। उदयपुर से दिलीप खोईवाल व सुरेश खोइवाल दोनों अन्तरराष्ट्रीय खिलाडि़यों को तैयार किए तो राष्ट्रीय स्तर पर करीब 15 खिलाड़ी दिए, जो राष्ट्रीय स्तर पर मैदान मारने में कामयाब रहे। जैन ने बताया कि वालीबॉल में खिलाड़ी लम्बा है, तो वह चार साल में नेशनल तक जा सकता है, लेकिन उसके लिए उसे मेहनत व नियमित अभ्यास तो करना ही होगा। इसके अलावा यदि कम लम्बाई है तो लिब्रो की बनकर आगे आया जा सकता है।

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दिलीप भंडारी- क्रिकेट -1989 से अब तक राजस्थान क्रीडा परिषद में बतौर क्रिकेट प्रशिक्षक सेवाएं देने वाले भंडारी ने राष्ट्रीय स्तर पर जाने वाले पांच खिलाड़ी तैयार किए हैं। अभी वह प्रयास कर रहे हैं कि कोई खिलाड़ी किसी भी फोरमेट में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तक जरूर पहुंचे। क्रिकेट में आगे जाने व बने रहने के लिए सबसे जरूरी फिजिकल फिटनेस है। आईपीएल, वन डे व टेस्ट मैच हो सभी में खिलाड़ी का फिट रहना बेहद जरूरी है। स्टेट तक जाने वाले करीब 20 खिलाड़ी यहां से दिए हैं।

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ये भी तराश रहे खेलों के हीरेइसके अलावा हमारे उदयपुर में खेल प्रशिक्षकों के तौर पर बैडमिंटन में सुनीता भंडारी, तैराकी में महेश पालीवाल, हॉकी में शकील हुसैन, बॉक्सींग में नरपतसिंह, शूटिंग में महेन्द्र सिंह ने भी एक से एक बेहतरीन खिलाड़ी तैयार किए हैं।

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