>>: Digest for April 23, 2023

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Table of Contents

अलवर. राज्य में बाल विवाह की रोकथाम के लिए बाल विवाह पर पांबदी लगाने के लिए कानून तो बना दिए हैं लेकिन इन कानूनों की पालना होती नजर नहीं आ रही है और न ही संबंधित विभाग इन कानूनों की पालना करवाने पर ध्यान दे रहे हैं।

बाल विवाह रोकने के लिए राज्य सरकार ने शादी के सभी कार्ड पर लड़के व लड़कियों की आयु लिखवाने के लिए पाबंद किया हुआ है लेकिन इसके बावजूद जिले में शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिग प्रेस इस कानून को नहीं मान रहे हैं। इतना ही नहीं परिजन भी इसको लेकर जागरूक नहीं है। शहर व गांव कहीं पर भी इस कानून की पालना नहीं हो रही है।

आखातीज व पीपल पूर्णिमा पर रहती है संभावना : गौरतलब है कि अलवर जिले में शहर से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में आखातीज व पीपल पूर्णिमा के अबूझ सावे पर बाल विवाह होने की संभावना रहती हैं। कुछ विशेष जातियों में तो बाल विवाह का प्रचलन बहुत अधिक है।

बाल विवाह में शामिल होना भी कानूनी अपराध : इतना ही नहीं बाल विवाह में शामिल होने वाले,ब्यूटी पार्लर, पंडित, हलवाई, लाइट डेकोरेशन, बैंडबाजे, टैँटवाले सभी को कानूनी रूप से आरोपी माना जाता है। ऐसे में इनको भी बाल विवाह में शामिल नहीं होने के लिए पाबंद किया गया

अलवर शहर के काशी राम का चौराहा, स्वर्ग रोड, भटियारों वाली गली, काला कुआं, शिवाजी पार्क सहित अन्य जगहों पर प्रिंटिंग प्रेस में शादी के कार्ड छप रहे हैं, लेकिन इन पर शादी ब्याह करने वाले लड़के लड़कियों की आयु नही लिखी है। इसके साथ ही लाल दरवाजा गणेश मंदिर, त्रिपोलिया गणेश मंदिर, पुराना कटला गणेश मंदिर, घोडा फेर का चौराहा गणेश मंदिर में भी बड़ी संख्या में वर व वधु पक्ष के लोग भगवान को शादी का न्यौता देने आ रहे हैं। यहां आने वाले किसी भी कार्ड में शादी की उम्र नहीं लिखी है।
लड़के व लड़की की आयु लिखना जरूरी

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के तहत बाल विवाह अपराध है। शादी के कार्ड पर लड़के व लड़की की आयु लिखी जाए, जिला कलक्टर ने भी बैठक में इस संबंध में निर्देश दिए हैं। सभी को इसकी पालना करना जरूरी है। यदि पालना नहीं होती है तो कार्रवाई की जाएगी।

रमेश दहमीवाल, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग

अलवर. प्रदेश सरकार बजट घोषणा के बाद अब लोगों तक राशन किट पहुंचाने की तैयारी कर रही है। इसी को देखते हुए जिले में भी इसकी तैयारियां चल रही हैं। यहां भी करीब चार लाख लोगों को इसका लाभ दिए जाने की योजना है। हालांकि इससे पहले लाभार्थियों से रजिस्ट्रेशन करवाया जाएगा। जानकारों का कहना है कि यह किट पेट भरने के लिए पर्याप्त है। जिस तरह हर माह अनाज मिलता है उसी तरह से यह यह किट मिलेगी। गरीब परिवारों को इससे सर्वाधिक लाभ मिलेगा।


राशन किट में ये होगा
इस राशन किट में एक किलो रिफाइंड, एक किलो दाल, एक किलो चीनी, मिर्च, हल्दी व धनिया के 200-200 ग्राम के पैकेट शामिल होंगे। जानकारों का कहना है कि तमाम परिवार ऐसे हैं जिनको इन चीजों की आवश्यकता है। ऐसे में उन्हें राहत मिलेगी। आंकड़ों पर गौर करें तो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत जिले में करीब 5.70 लाख लोग पंजीकृत हैं। अंत्योदय कार्ड धारकों के अलावा एपीएल आदि श्रेणियां भी होती हैं। बताते हैं कि गरीबी रेखा से नीचे व सामान्य वर्ग में जीवनयापन करने वाले लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा। जिले के कोटेदारों से ही यह बटवाए जाएंगे। राशन कहां से आएगा, इसकी व्यवस्था सरकार अपने स्तर से कर रही है।

केंद्र सरकार के सहयोग से कई राज्यों में यह किट पहले से मिल रही
केंद्र सरकार ने गरीब परिवारों के लिए राशन किट की व्यवस्था की थी, जिसमें एक किलो चने, एक किलो नमक, एक किलो रिफाइंड आदि शामिल था। जानकार बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के रिपीट होने का ये बड़ा कारण रहा है। लोगों को राशन आदि मुफ्त में मिला था। माह में यह दो बार व्यवस्था की गई थी। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को अपना राशि अंश दिया था। उसी तर्ज पर अब यहां भी प्रदेश सरकार ने व्यवस्था की है। हालांकि यह प्रदेश की योजना है।

राशन किट के लिए रजिस्ट्रेशन आदि की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। यह किट कोटेदारों के माध्यम से पंजीकृत राशनकार्ड धारकों को मिलेगी। गरीब परिवारों को यह योजना काफी लाभ पहुंचाएगी।

उत्तम सिंह शेखावत, एडीएम प्रथम

अलवर. तापमान में वृद्धि के साथ ही आमजन ने भी गर्मी से राहत के लिए जतन करना शुरू कर दिया है। ऐसे में देशी फ्रिज यानी मिट्टे के घड़े व सुराही की बिक्री भी बढऩे लगी है। वैसे तो आज हर घर में फ्रिज, कूलर व एसी उपलब्ध है, लेकिन मटके के शीतल जल से शरीर में अलग ही तरावट महसूस होती है। जानकारों के अनुसार घड़े के जल में प्राकृतिक शीतलता होती है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद भी है। वहीं फ्रिज के ठंडे पानी से बीमारियां होने का भी खतरा रहता है। ऐसे में जिन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है, घड़े का शीतल जल उनके लिए वरदान है।

खासियत के हिसाब से दाम निर्धारित : गर्मी की शुरूआत के साथ ही कुम्भकारों ने मटके, घड़े व मिट्टी की सुराही बनाने का काम शुरू कर दिया था। वहीं अब तापमान में तेजी के साथ ही इनकी खरीदारी भी शुरू हो गई है। शहर के कई प्रमुख चौराहों के आसपास सडक़ किनारे लगी अस्थायी दुकानों पर छोटे घड़े व मटके 50 से लेकर 70 रुपए तथा नल वाले मटके 120 से 150 रुपए प्रति नग के हिसाब से बिक्री के लिए उपलब्ध है।

सेहत के लिए वरदान : मिट्टी से बने मटके में बहुत सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिनसेहल्का-हल्का पानी रिसता रहता है और घड़े को बाहर से गीला रखता है। इससे हवा के संपर्क में आने से घड़े का पानी शीतल रहता है। वहीं मिट्टी में पाए जाने वाले मिनरल्स शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही मिट्टी के बर्तन में पानी रखने से पानी में मौजूद प्राकृतिक विटामिन व मिनरल्स शरीर के ग्लूकोज लेवल को बनाए रखते हैं। इससे शरीर को ठंडक मिलती है। जिन लोगों को पित्त की समस्या रहती है, उनके लिए भी मटके का पानी वरदान है। यह पित्त को संतुलित करता है तथा पेट की समस्याओं को भी दूर करता है। यही नहीं वाटर प्यूरीफायर की तरह से कार्य करने से पानी की गंदगी व टॉक्सिन्स भी निकल जाते हैं। चिकित्सकों के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति अम्लीय है, जबकि मिट्टी की प्रकृति क्षारीय है। इसलिए क्षारीय बर्तनों का पानी शरीर की अम्लीय प्रकृति के साथ प्रक्रिया कर उचित पीएच संतुलन बनाए रखता है।

इससे अम्लीयपित्त एवं पेट की समस्यों को दूर करने में भी मदद मिलती है।

शरीर के लिए अनुकूल

शरीर के अनुकूल होने के कारण मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का सेवन गले की खराश सहित तापमान में बदलाव से संबंधित बीमारियों से बचाव करता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। मिट्टे के बर्तन में रखा शीतल जल स्वास्थ्य के हिसाब से सर्वथा उपयुक्त है।

-डॉ. महिपाल सिंह चौहान, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, सामान्य चिकित्साल।

अलवर. कर्मचारियों के बाद अब जिला सरपंच संघ भी अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतरे हैं। शुक्रवार को संघ के पदाधिकारियों ने सीएम अशोक गहलोत व ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री रमेश चंद मीणा को संबोधित ज्ञापन एडीएम सिटी व जिला परिषद सीईओ को दिया। कहा कि 24 अप्रेल से पहले मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह प्रशासन गांवों के संग अभियान का बहिष्कार करेंगे।

जिलाध्यक्ष अशोक यादव के नेतृत्व में सरपंच जिला परिषद कार्यालय एकत्रित हुए। उन्होंने कहा कि सरपंच लंबे समय से अपनी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन सिवाय अनुशासन के कुछ नहीं मिला। जिलाध्यक्ष ने कहा, छठे वित्त आयोग की बकाया राशि तीन किस्तों में ग्राम पंचायतों को दी जाए। 73वें संविधान संशोधन को पूर्ण रूप से लागू किया जाए। ई-टेंडरिंग की प्रथा को खत्म करके तीन कोटेशन की व्यवस्था की जाए। हरियाणा सरकार की तरह सरपंचों को भी पेंशन आदि दी जाए। कई अन्य मांगें भी उठाईं। उसके बाद सरपंचों ने जिला परिषद सीईओ को ज्ञापन देने के बाद कलक्ट्रेट पहुंचकर अधिकारियों को ज्ञापन दिया। इस मौके पर नीमराना ब्लॉक अध्यक्ष अजीत यादव, रामगढ़ ब्लॉक अध्यक्ष वीर सिंह बाम्बोली, गोविंदगढ़ ब्लॉक अध्यक्ष, जगदीश शर्मा, कठूमर ब्लॉक अध्यक्ष जार्मल जाटव, तिजारा ब्लॉक अध्यक्ष दिनेश खांब्रा, बहरोड ब्लॉक अध्यक्ष जगदीश रावत, प्रदेश महासचिव वीरेंद्र शर्मा, जिला मंत्री भविंद्र गुर्जर, जिला उपाध्यक्ष बब्बन यादव, दीपाली यादव, उषा यादव, प्रियंका नरूका आदि सरपंच रहे।

अलवर. नगर विकास न्यास (यूआईटी) की ओर से कंपनी बाग में पार्किंग बनाने का काम एक सप्ताह बाद शुरू हो जाएगा। इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी हो गई है। इसका प्रस्ताव अब प्रदेश सरकार के पास भेजा गया है। बताते हैं कि अगली दिवाली तक यह पार्किंग बनकर तैयार हो जाएगी।

मुख्य बाजार में जाम का सबसे बड़ा कारण वाहनों को बेतरतीव ढंग से खड़ा होना और पार्किंग का अभाव होना है। त्योहारों में सर्वाधिक जाम बाजारों में लगता है। लोग घंटों परेशान होते हैं। इसी को देखते हुए यूआईटी की ओर से डबल बेसमेंट पार्किंग का प्रस्ताव तीन माह पहले तैयार किया गया। इसकी डीपीआर बनी और टेंडर प्रक्रिया शुरू की। अब टेंडर खोल दिए गए हैं। एक औपचारिकता के रूप में टेंडर की मंजूरी सरकार की ओर से करवानी पड़ती है। ऐसे में प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है।

टेंडर प्रक्रिया शुरू हुई

कंपनी बाग की डबल बेसमेंट पार्किंग के लिए टेंडर की प्रक्रिया हो गई है। सरकार को मंजूरी के लिए प्रस्ताव भेजा है। जल्द ही इस पार्किंग का निर्माण शुरू होगा।

- प्रदीप जैन, मुख्य अभियंता, यूआईटी
यूआईटी की ओर से शहर में अन्य जगहों पर भी पार्किंग बनाने की योजनाएं चल रही हैं। अग्रसेन पुल के पास वाहनों का भार है। लोगों को गाड़ियां खड़ी करने के लिए जगह नहीं मिल पाती। ऐसे में यहां भी पार्किंग बनाई जा सकती है। इसके अलावा तिजारा पुल के पास भी पार्किंग बनाने की योजना है। नगर परिषद अपनी भी पार्किंग को बेहतर बनाने की योजना बना रही है ताकि शहर के भीड़भाड़ वाले स्थानों पर वाहन न ले जाने पड़ें। यह वाहन पार्किंग में खड़े हो सकें।

लू-तापघात के मरीजों के लिए इंतजाम अभी अधूरे
गर्मी कर रही बेहाल, डायरिया के मरीज आने शुरू

अलवर. जिले का तापमान अब लोगों को बेहाल करने लगा है। इससे जिला अस्पताल में गर्मी जनित बीमारियों के मरीज आने शुरू हो गए हैं। इसमें जुकाम-खांसी, वायरल बुखार व उल्टी-दस्त के मरीज शामिल हैं। वहीं आगे वाले दिनों में भीषण गर्मी की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में गर्मीजनित बीमारियों के रोगी बढऩे की संभावना है।

चिकित्सकों के अनुसार तापमान के 40 डिग्री पर पहुंचने के साथ अस्पताल में मरीजों की संख्या प्रभावित होती है। इसके साथ ही तापमान के 45 डिग्री पर पहुंचने के साथ ही लू-तापघात का खतरा भी बढ़ जाएगा। ऐसे में रोगियों के लिए अस्पताल में अलग से वार्ड बनाकर विशेष इंतजाम किए जाते हैं।

अस्पताल प्रशासन कर रहा गर्मी बढऩे का इंतजार : समान्य अस्पताल में गर्मी के दिनों में अलग से लू-तापघात वार्ड बनाया जाता है। ताकि विशेष परिस्थिति में मरीज को तुरंत राहत पहुंचाई जा सके है। इसके लिए हर बार सामान्य अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में अलग से लू-तापघात वार्ड बनाया जाता है। फिलहाल अस्पताल प्रशासन की ओर से अभी तक लू-तापघात वार्ड शुरू नहीं किया गया है। हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि लू-तापघात के रोगियों के लिए अस्पताल में इंतजाम पूरे हैं, जैसे ही रोगियों का आना शुरू होगा। वैसे ही अलग से वार्ड की व्यवस्था कर दी जाएगी।

करीब पांच हजार से ज्यादा लोगाें ने ईद की नमाज की। इस मौके पर सभी ने देश में अमन व चैन की दुआं मांगी। इस मौके पर, सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता विभाग के मंत्री टीकाराम जूली सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं ने ईदगाह पहुंचकर सभी को ईद की शुभकामनाएं दी। छोटे बच्चों ने भी गले मिलकर ईद की बधाई दी। ईद पर सदका ए फितर के तहत जरूरतमंदों को दान किया गया ताकि वह भी ईद की खुशियां मना सकें। घरों में पकवान बनाए गए और छोटे बच्चों को ईदी दी गई। जिसे पाकर बच्चे बहुत खुश हुए। सोशल मीडिया पर भी सुबह से ही ईद की शुभकामनाओं का दौर चलता रहा जो रात तक जारी रहा। एक दुसरे के घर जाकर और फोन पर बधाई दी गई। ईदगाह के बाहर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। इसी के साथ ही रमजान माह का समापन भी हो गया और रोजेदारों के रोजे भी खत्म हो गए।

इधर, चांदोली में ईद बड़े उल्लास के साथ मनाईं गई। इस मौके पर देश में आपसी सदभाव व भाईचारा बना रहे व अमन चैन के लिए दुआ की । इस मौके पर पूर्व ज़िला महासचिव कांग्रेस चौधरी इम्तियाज़ हुसैन, पूर्व जिला परिषद सदस्य चौधरी मुबारिक हुसैन, पूर्व सरपंच हाजी इसराइल,एडवोकेट रिज़वान खान, डाक्टर हैदर अली,मास्टर सद्दाम,महमूद,आरिस,रफ़ीक,आबिद,अख़्तर,हसन,फ़ारुख पहलवान सहित सैंकडो लोग उपस्थित रहे।

अलवर. शहर के समीपवर्ती डढ़ीकर के जंगल में शनिवार सुबह पैथर का शव मिला। पैंथर के अंग सलामत मिले, लेकिन गले पर दांत या नाखून के निशान मिले हैं। आशंका है कि बाघ एसटी-18 के हमले या पैंथरों के संघर्ष में घायल होने के बाद मौत हुई है। शव 5 से 7 दिन पुराना है और कीड़े लगे मिले। पशु चिकित्सकों के बोर्ड ने पैंथर के शव का पोस्टमार्टम करा शेड्यूल प्रथम के प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया।

वन मंडल अलवर के डीएफओ अपूर्व कृष्ण श्रीवास्तव ने बताया कि सुबह डढ़ीकर के जंगल में पैंथर का शव पड़ा होने की सूचना मिली। इस पर विभाग की टीम ने मौके पर पहुंच कर शव को कब्जे में लिया और विभाग के रेंज कार्यालय में लेकर आए। यहां तीन पशु चिकित्सकों के बोर्ड ने पैथर के शव का पोस्टमार्टम किया। उन्होंने बताया कि पैंथर के दांत, नाखून, बाल एवं अन्य बॉडी पार्ट सलामत मिले हैं, लेकिन गले में दांत या नाखून के निशान मिले हैं। इस कारण पैंथर की मौत का कारण प्रथम दृष्टया बाघ का हमला या पैंथरों के बीच संघर्ष लगता है। उधर, पशु चिकित्सकों ने भी प्रथम दृष्टया पैंथर की मौत का कारण बाघ या पैंथरों के बीच संघर्ष बताया है। मृत पैंथर की उम्र करीब 4 साल है और यह नर पैंथर है। पैंथर शेड्यूल फर्स्ट का वन्यजीव है, इस कारण पोस्टमार्टम के बाद पैंथर के शव का शेड्यूल फर्स्ट के प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार कराया गया।

शव पुराना, कीड़े लगे मिले

पैंथर का शव 5 से 7 दिन पुराना बताया गया है। शव पर कीड़े लगे मिले और दुर्गन्ध आ रही थी। यानी पैंथर की मौत पहले ही हो चुकी थी। शव से दुर्गन्ध आने के बाद लोगों को इसकी जानकारी हुई तो वन विभाग को सूचना दी गई।

बाघ एसटी-18 का मूवमेंट है डढ़ीकर जंगल में

बाघ- 18 का मूवमेंट डढ़ीकर जंगल में रहा है। यह बाघ यहां अपनी टैरिटरी तलाश रहा है, ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि संभवत: बाघ ने पैंथर को टैरिटरी से खदेड़ने के लिए हमला किया, जिसमें उसकी मौत हो गई। पैंथर के गले पर दांत या नाखून का बड़ा निशान मिला है। पैंथर बाघ का प्रिय भोजन है। बाघ हमले के दौरान सबसे पहले पैंथर की गर्दन पर वार करता है, इसमें कई बार मुंह और कभी पंजे से वार कर पैंथर को गिरा देता है। संभावना है कि पैंथर की गर्दन पर भी बाघ एसटी-18 ने मुंह या पंजे से वार घायल किया हो। उधर, पैंथर के सभी कोई भी अंग खंडित नहीं मिला है, इस कारण शिकार की आशंका कम जताई गई है। डढ़ीकर के जंगल में अनेक पैंथरों का विचरण है। इस कारण पैंथरों के बीच भी संघर्ष की आशंका है।

मेडिकल बोर्ड ने किया पोस्टमार्टम

पशु चिकित्सालय के उप निदेशक डॉ. राजेश गुप्ता के अनुसार पैंथर के शव का डॉ. मोहित गुप्ता, डॉ. गजेन्द्र यादव एवं डॉ अनुज के बोर्ड ने पोस्टमार्टम किया।

अलवर. सवा चार लाख शहरवासियों को अब गर्मी में पानी की प्यास बुझाने की आस अब केवल राज्य सरकार से है। स्थानीय स्तर पर पानी प्रबंधन फेल होने के बाद सिलीसेढ़ से पानी लाकर ही शहरवासियों की पेयजल जरूरत को पूरा करना संभव रह गया है। इस योजना को जल्द मंजूरी नहीं मिली तो अबकी बार गर्मी के सीजन में पुलिस प्रशासन के समक्ष कानून व्यवस्था बनाए रखने का बड़ा सवाल खड़ा हो सकता है।अलवर शहर की आबादी वर्ष 2011 की तुलना में एक लाख से ज्यादा बढ़ गई, लेकिन पानी संग्रहण के स्रोत नहीं बढ़ सके। अलवर शहर की वर्तमान जनसंख्या 4 लाख 15 हजार 579 की प्रतिदिन पानी की मांग 56 हजार किलो लीटर है। जबकि जलदाय विभाग शहर में 26 हजार 400 किलो लीटर पानी का प्रतिदिन उत्पादन कर पा रहा है। यानी 29 हजार 600 किलो लीटर पानी की प्रतिदिन शहरवासियों को तंगी झेलनी पड़ रही है। वर्तमान में अलवर शहरवासियों को औसतन प्रति व्यक्ति प्रति दिन 64 लीटर पानी ही मिल पा रहा है।

इसलिए सिलीसेढ़ से पानी लाने की जरूरत

अलवर शहर में जलदाय विभाग वर्तमान में 26 हजार 400 किलोलीटर पानी का उत्पादन प्रतिदिन कर पा रहा है। जबकि इससे ज्यादा 29 हजार 600 किलो लीटर पानी की कमी अभी चल रही है। यानी जितना शहरवासियों को जितना पानी मिल रहा है, उससे ज्यादा की हर दिन जलदाय विभाग को जरूरत है। लेकिन उसके पास इतनी बड़ी मात्रा में पानी उत्पादन का कोई भी स्रोत नहीं है। नतीजतन राज्य सरकार ने जल्द ही अलवर शहरवासियों की पानी की समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो खुद सरकार के समक्ष ही विकट परििस्थति पैदा हो सकती है।

दस किमी की दूरी, योजना पर लागत भी ज्यादा नहीं

शहरवासियों की पेयजल समस्या का निराकरण अभी सिलीसेढ़ बांध से पानी लाकर ही किया जा सकता है। कारण है कि सिलीसेढ़ से अलवर की दूरी मात्र 10 किमी है और इस योजना की लागत भी करीब 38 करोड़ है। अलवर शहर के लिए सिंचाई विभाग की ओर से 100 एमसीएफटी पानी पहले ही आरक्षित किया जा चुका है। मुख्य अभियंता सहित अन्य उच्च अधिकारी स्तर पर इस योजना को मूर्तरूप देने की पहले ही सहमति बन चुकी है। योजना की पत्रावली भी सरकार स्तर पर विचाराधीन है, केवल राज्य सरकार इस योजना को मंजूर मिलना शेष है।

देश की सुरक्षा के लिए बना बड़ा खतरा , जिम्मेदार बैठे मौन
सतपाल यादव

बहरोड़. कस्बे सहित आसपास क्षेत्र में झुग्गियों में एक हजार से अधिक संदिग्ध लोग रहे है। जिनकी पुलिस प्रशासन ने कभी जांच करने की जहमत नहीं उठाई। जबकी गत दिनों यहां से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी पकड़े गए थे। जिन्होंने आधार कार्ड तक फर्जी बनवा लिए थे। पत्रिका की खबर के बाद उनको उनके देश वापिस भेजा गया था। अब कुछ दिनों बाद फिर से वहीं हाल हो गया है। यह लोग देश की सुरक्षा के लिए कभी भी खतरा बन सकते है पर जिम्मेदार इनको लेकर मौन है।
कस्बे में सामुदायिक भवन के साथ ही नेशनल हाइवे पर आरटीओ कार्यालय, उद्योग क्षेत्र सहित अनेक जगहों पर बड़ी संख्या में झुग्गी झोपड़ी में बाहरी लोग रह रहे है। जिनका सत्यापन पुलिस ने भी कभी नहीं किया है। यहां रहने वाले लोग आम लोगों से भी बेहतर जीवन जी रहे है। वह भी चोरी की बिजली से। यहां पर हो रही बिजली चोरी को लेकर निगम के आला अधिकारी भी सब कुछ जानते हुए अनजान बनकर बैठे है। इन झुग्गी झोपड़ी में एसी, एलईडी टीवी, फ्रीज की सुविधा तक उपलब्ध है।यह लोग आसानी से बिजली चोरी कर रहे है, लेकिन उसके बाद भी निगम की टीम इन्हें नहीं पकड़ पाती है।
आमजन के घरों तक सीधी पहुंच : झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले इन लोगों की आमजन के घरों तक सीधी पहुंच है। क्योंकि ये लोग कबाड़ खरीद करने, कचरा बीनने का कार्य करते है।
पूर्व में हो चुकी है कार्रवाई : क्षेत्र के कांकरदोपा गांव में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ पूर्व में कार्रवाई हो चुकी है।यहां पर सीआईडी सीबी की टीम ने पत्रिका में प्रमुखता से खबर प्रकाशित होंने के बाद कार्रवाई करते हुए एक सौ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ कर उन्हें बांग्लादेश भेजा था लेकिन अब दोबारा से यह लोग आ गए है।

बिजली निरोधक थाने के पास बिजली चोरी
बिजली कनेक्शन के लिए पहचान और निवास दस्तावेजों की जरूरत होती है। जो इनके पास नहीं है तो यह लोग बिजली चोरी कर रह रहे है। हाल यह है की कस्बे के सामुदायिक भवन के पास बिजली निरोधक थाना व विजिलेंस कार्यालय स्थित है। जहां पर निगम के बिजली चोरी के खिलाफ कार्रवाई करने वाले जिम्मेदार अधिकारी बैठते है। लेकिन उसके बाद भी यहां पर धड़ल्ले से बिजली चोरी की जा रही है। जबकि यहां पर कोई बिजली का कनेक्शन तक नहीं है। लेकिन उसके बाद भी यहां धड़ल्ले से बिजली लाइनो को कट कर बिजली चोरी कर झुग्गी झोपड़ी रोशन की जा रही है।

खरीद करते हंै चोरी का सामान
झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले इन लोगों का भले ही मुख्य कारोबार कबाड़ खरीद करना व कचरा बीनना हो लेकिन इसकी आड़ में यह चोरी का भी सामान खरीद करते है लेकिन उसके बाद भी पुलिस इनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर पा रही है।

हाइवे किनारे बांग्लादेशी घुसपैठिये

कस्बे में नेशनल हाइवे पर बनी हुई झुग्गी झोपड़ी में अवैध रूप से बांग्लादेश से आए घुसपैठिये रहते है।जोकि दिनभर कस्बे की सड़कों पर घूमकर कचरा बीनते है लेकिन यह लोग यहां पर रहकर ओर क्या काम करते है इसका किसी को नहीं पता है।


अलवर. माउण्ट आबू वन्यजीव अभयारण्य से ट्रांसलोकेट कर सरिस्का लाए गए एक नर एवं एक मादा भालू को रविवार शाम तक विशेषज्ञों की निगरानी में ङ्क्षपजरे में ही रखा जाएगा। सरिस्का के डीएफओ डीपी जागावत ने बताया कि
दोनो भालूओ को वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ अरविन्द माथुर व डॉ डी.डी. मीना तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के प्रतिनिधि विशेषज्ञ डॉ अनूप प्रधान की निगरानी में रखा गया है। शनिवार को सुबह प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजस्थान अरिन्दम तोमर की ओर से स्थानीय अधिकारियों एवं विशेषज्ञों की उपस्थिति में दोनों भालूओं का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक आरएन मीना, उप वन संरक्षक अरुण कुमार डी. सहायक वन संरक्षक पंकज मीना, क्षेत्रीय वन अधिकारी दिलीप कुमार, बायोलोजिस्ट गोकुल कनन, लोकल फोर्स के राजेश मीना, वनकर्मी भरत कटारिया, नवीन, मोहन बरगड आदि उपस्थित थे। इस दौरान तोमर ने भालूओं के स्वास्थ्य की जानकारी ली एवं अग्रिम कार्रवाई पर चर्चा की। विचार विमर्श के बाद तकनीकी विशेषज्ञों ने भालूओ को रविवार शाम तक ङ्क्षपजरो / एनक्लोजर में ही रखे जाने की राय दी।

पहली बार हो रहा ट्रांसलोकेशन
माउण्ट आबू वन्यजीव अभयारण्य से भालुओं का ट्रांसलोकेट देश में पहली बार हो रहा है। इस कारण ट्रांसलोकेशन प्रक्रिया में पूर्ण सावधानी एवं सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए। भालू ट्रांसलोकेशन में सहयोगी रहे अधिकारियों व कर्मचारियों का उत्साहवर्धन किया गया।

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