रक्तिम तिवारी
बूंदी. शानदार हाईवे से जैसे ही बस हिचकोली खाते बस स्टैंड पहुंची तो बूंदी पहुंचाने का एहसास हुआ। इसे छोटी काशी या हाड़ी रानी की नगरी कहें अथवा धान का कटोरा....शब्दों में तो सब कुछ सटीक है, लेकिन पहचान जिला स्तर जैसी नहीं लगी। रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व और अरावली की हरियाली ने एक बार तो उदयपुर से भी खूबसूरत होने का एहसास कराया, लेकिन बाद में तस्वीर बिल्कुल उलट दिखाई दी।
उजाड़ चम्पाबाग
सूरज की तेज तपन के बीच पुराने चम्पाबाग पहुंचने पर पेड़ों की छांव ने कुछ सुकून दिया। यहां मिले पुजारी महावीर शर्मा बोले, यह छोटी काशी है, जहां आपको बावडिय़ां और पग-पग पर मंदिर मिलेंगे। अब सब उजड़ गया है।
...तो उदयपुर से आगे होते पर्यटन में
अरावली के पहाड़ों के बीच जैतसागर झील किनारे स्टॉल पर बैठे अशोक सोलंकी का कहना था कि 40 साल में हमने झील किनारे रोड नहीं देखा। रामगढ़ विषधारी रिजर्व तक इतने गड्ढे हैं, कि हड्डियां टूट जाएं। दुर्गाशंकर बोले, 35 साल से वाहन चला रहा हूं, रोड बरसों से गायब है। आरटीडीसी के होटल वृंदावती पहुंचा तो खिड़कियों के टूटे कांच, जाले और ताले मिले।
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न उद्योग-न कारखाने
पैदल घूमते नाहर का चौहट्टा पहुंचा तो 200 साल पुरानी दुकान के संचालक संदीप लाठी मिल गए। ज्यों ही बूंदी का जिक्र चला तो बोले, जिले का सिर्फ नाम है, स्तर तहसील से ज्यादा नहीं है। रेलवे की कुछ ट्रेनें चलती हैं। कोई बड़ा उद्योग, कारखाने नहीं हैं। पुराने बाजार में गोपाल सोनी सदियों पुरानी बूंदी मिनिएचर आर्ट बनाते दिखे। कला संरक्षण का जिक्र चला तो बोले, बस हम तीन-चार ही कलाकार हैं। नई पीढ़ी शौकियाना सीख रही है।
22 से ज्यादा चावल मिल, 3500 करोड़ का कारोबार
शाम होने से पहले रीको एरिया स्थित एक चावल मिल पहुंचा। अनिल मंडोवरा ने चावल दिखाकर कहा, पूरी दुनिया यहां के चावल खाती है। 22 से ज्यादा मिल हैं, 3500 करोड़ रुपए का धान (चावल) की खरीद-फरोख्त होती है। इसके बावजूद यहां समृद्धि नजर नही आती। मंडी बाहर बनाने से काम खराब हो गया। प्रदूषण मंडल और भू-जल विभाग की रिपोर्ट भरने में ही वक्त जाया हो रहा है। सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, फू ड-एग्रो संस्थान खोल जाने चाहिए।
खाद्यान्न-पेंशन योजना में नहीं जुड़ रहे नाम
तेज बरसात के बीच हिंडोली पहुंच गया। चाय की दुकान पर बैठे पूर्व सरपंच हनुमान व्यास बोले, हमें तो मेडिकल कॉलेज और सडक़ों का जाल पहचान दिलाएगा। ऑटोमोबाइल मैकेनिक महावीर प्रसाद का कहना था कि स्वास्थ्य सेवा का लाभ तो मिल रहा है, पर खाद्यान्न और पेंशन योजना में लोगों के नाम आसानी से नहीं जुड़ रहे हैं।
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एक किमी. दूर हाईवे पर उतारती बसें
पान की दुकान पर पहुंचते ही मनोहर सुवालका और जगदीश मिले। दोनों ने एकसाथ कहा 70 प्रतिशत रोडवेज बसें हिंडोली के स्टैंड पर नहीं आती। एक किलोमीटर दूर हाईवे पर सवारियां उतार देती हैं। रात को महिलाओं को भी पैदल आना पड़ता है। जहां बसें रुकती हैं वहां कोई टॉयलेट, वेटिंग रूम भी नहीं है।
दवाएं मिलती पूरी, काम-धंधा नहीं
कृषि महाविद्यालय रोड पर लालचंद और उसकी पत्नी विमला मिल गए। दोनों ने कहा दवाएं और इलाज का संकट नहीं है, दिक्कत तो काम धंधे की है। यहां से कोटा, जयपुर, बूंदी तक लोग चूना-पत्थर, मिल में मजदूरी का काम करने जाते हैं।
शायद ही देख सकेंगे कभी ट्रेन
बाजार में राजेंद्र रावत से मुलाकात हो गई। रेलवे का जिक्र करने पर बोले, छोडि़ए क्या टॉपिक छेड़ दिया। हम तो शायद ही ट्रेन देख पाएंगे। सहसपुरिया और तालाब गांव में रीको एरिया बना है। हिंडोली और देई नगर पालिका बनी है। कोई मॉल-पिक्चर हॉल नहीं, ब्रांडेड कपड़े या सामान खरीदना हो तो कोटा ही जाना पड़ता है।