>>: कैसे प्रणय निवेदन करते हम प्यासे पनघट पनिहारे, जिसके आगे फीके लगते सूरज चांद सितारे

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1.

कैसे प्रणय निवेदन करते हम प्यासे पनघट पनिहारे
जिसके आगे फीके लगते सूरज चांद सितारे

इतनी हिम्मत कहां से लाते शायद हम जल जाते
उसके अधरों पर रखे थे यार सुलगते अंगारे

उसकी आंखों में ज्वाला है केशों में बादल की छाया
गालों पर दिनकर लालिमा और तन चंदन की है काया

उसकी सुंदरता का चित्रण शब्दों में कैसे करते
जिसके आगे रति काम ने अपना शीश झुकाया .

मीठी झील को देख रहे हैं तट पर बैठे बेचारे
कैसे प्रणय निवेदन करते हम प्यासे पनघट पनिहारे

वो आए तो ऐसा लगता जैसे खुशबू का हो झोका
कदम वही रुक जाते हैं जैसे किसी ने रोका

उसकी खुशी के खातिर हम अपनी जान लुटा देंगे
केवल इसका हमको दे दे वो एक भी मौका

वो अपना कह दे तो हो जाए वारे न्यारे
कैसे प्रणय निवेदन करते हम प्यासे पनघट पनिहारे

2.

सभी को हंसाने की ख्वाहिश है मेरी
मैं किसी को रुलाना नहीं चाहता मेरी भी तमन्ना है कि ऊंचा उठुं पर किसी को गिराना नहीं चाहता जिसने पैदा किया दर्द पाकर मुझे और सोई जो हरदम सुलाकर मुझे रात दिन जिसने मेरी राहें तकी और खाया निवाला खिलाकर मुझे प्रभु रूठ जाए मना लूंगा फिर
मां का दिल दुखाना नहीं चाहता मेरी भी तमन्ना है ऊंचा उठुं
पर मैं किसी को गिराना नहीं चाहता
एक भी आंसू मां का गर निकल जाएगा
तेरा दुनिया में आना विफल जाएगा
इनका आशीष गर तेरे सर पर रहा वक्त बुरा तेरा मान टल जाएगा खुशियां लाना तो घर पर मकसद है मेरा
पर किसी को दर्द देकर लाना नहीं चाहता
सारे भगवान है जो मेरे साथ हैं क्योंकि सर पर मां का मेरे हाथ है वह भी पूजा करता है इसकी सदा जो सारी धरा का जगत नाथ है बुझते दीपक जलाना है मकसद मेरा
मैं दिल किसी का जलाना नहीं चाहता
मेरी भी तमन्ना है ऊंचा उठुं पर किसी को गिराना नहीं चाहता


3.
विध्वंसकारी शक्तियों का मत बना मालिक मुझे
अतिशय कारी शक्तियों का पर बना मालिक मुझे
संकट शमन कर सकूं नए युग का करूं प्रारंभ
जीवन के नए अध्याय का कर सकू आरंभ
तार तार हो रही है इज्जत समाज की
लांघती है बेटियां क्यों देहरी समाज की
क्या कमी रह गई पालने में तुम्हें धूल में मिला रही हो क्यों इज्जत समाज की
तू जमीन पर आई तो हर्ष आया परिवार में
सब ने कहा कि लक्ष्मी आ गई परिवार में
खून देकर अपना खुशियां तेरी पूरी करी
मजबूर कितना भी रहा पर ख्वाहिशें पूरी करी
बबूल कैसे उग गया आम मैंने बोया था
तुझ को विदा करने का सपना भी संजोया था
गर्व महसूस करते थे देखकर नृत्य तेरा
शर्मिंदा होना पड़ रहा है देख कर कृत्य तेरा
अहिंसा की बेटी कैसे अहिंसक हो गई
सरजन करना था जिसे वह कैसे विध्वंसक हो गई
आंसू आ रहे हैं रो रहा ईश्वर मेरा कैसे मेरी बेटियां आज निंदक हो गई
अब तेरे बाप की भ्रूकटी नहीं तन पाएगी
अब तेरी मां भी कभी मंदिर नहीं जा पाएगी
अब तेरे भाई की भी नजरें जरा झुक जाएगी
अब तेरी बहन की डोली नहीं हो पाएगी
समाज के उत्थान में कुछ नया कर सकूं
जो जहर घुल रहा है उसको अमृत कर सकूं
फिर नया निर्माण में समाज का कर सकूं
सरजनकारी शक्तियों का तू बना मालिक मुझे
सरजनकारी शक्तियों का तू बना मालिक मुझे
अवधेश कुमार जैन एडवोकेट

रचियता एडवोकेट कवि अवधेश कुमार जैन , टोंक

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