>>: ट्यूबवैल के भरोसे नहीं बुझ सकती प्यास, अब सिलीसेढ़ जल योजना से ही आस

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अलवर. करीब सवा चार लाख अलवर शहरवासी एवं एक लाख आसपास के ग्रामीणों की पानी की पूर्ति केवल ट्यूबवैलों के भरोसे संभव नहीं है, इस समस्या का निराकरण सिलीसेढ़ से पानी लाने की सतही जल परियोजना से हो सकता है। यह िस्थति तो तब है जब अलवर जिला राज्य सरकार की तिजोरी भरने में प्रदेश में दूसरे स्थान पर है और इस योजना पर मात्र 38 करोड़ रुपए का खर्च आना है।

अलवर शहर एवं आसपास के क्षेत्रों की वर्तमान में जलापूर्ति पूरी तरह ट्यूबवैल से पानी उत्पादन पर निर्भर है। शहर की जलापूर्ति के लिए अभी 307 ट्यूबवैल चालू हालत में हैं। इनमें बुर्जा,अम्बेडकर नगर, कालाकुआं आदि क्षेत्रों में लगे ट्यूबवैलों में पानी की मात्रा कम होने लगी है। शहर में ज्यादातर ट्यूबवैल ड्राई हो चुके हैं और कुछ में पानी उत्पादन की मात्रा काफी कम हो गई है। यही कारण है कि अलवर शहर में 56 हजार किलो लीटर प्रतिदिन पानी मांग की तुलना में लोगों को आधे से भी कम 26 हजार 400 किलो लीटर पानी ही प्रतिदिन मिल पा रहा है। यानी 29 हजार 600 किलो लीटर पानी की प्रतिदिन कमी पड़ रही है।

पांच महीने रहना पड़ता है टैंकरों पर आश्रित

जिले में कोई भी सतही जल परियोजना नहीं होने का नुकसान यह हुआ कि गर्मी शुरू होने से लेकर बारिश आने तक अप्रेल से अगस्त महीने तक शहरवासियों को पानी की पूर्ति के लिए टैंकरों पर आश्रित रहना पड़ता है। इससे सरकार को हर साल करीब एक करोड़ का राजस्व नुकसान होता है। गत वर्ष 2022 में प्रतिदिन 18 टैंकरों से 134 चक्कर लगवाकर पानी की पूर्ति करानी पड़ी। करीब 90.28 लाख रुपए सरकारी खजाने से पानी के लिए खर्च करने पड़े। इसी तरह शहर में पानी की पूर्ति के लिए वर्ष 2023 में प्रतिदिन 20 टैंकरों से 155 चक्कर लगवाने की जरूरत होगी। इससे सरकार पर एक करोड़ आठ लाख 33 हजार रुपए वित्तीय भार पड़ने की संभावना है।

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