>>: प्रधानमंत्री की इच्छा शक्ति पर निर्भर हैं राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता

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जोधपुर। केंद्रीय साहित्य अकादमी की और से राजस्थानी काव्य-कृति 'पळकती प्रीत' के लिए सर्वोच्च पुरस्कार कवि-आलोचक एवं जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित को दिया जा रहा है। उन्होंने इस पुरस्कार को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बताया हैं। डॉ. राजपुरोहित ने अभी तक राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलने पर अपनी पीड़ा प्रकट करते हुए कहा कि प्रदेश के राजनेताओं की उदासीनता के कारण संवैधानिक मान्यता नहीं मिल सकी हैं। अब राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का मामला देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा शक्ति पर निर्भर हैं, वे चाहे तो लोक सभा चुनाव से पहले प्रदेश के बारह करोड़ लोगों के सपने को साकार कर सकते हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार और राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता को लेकर डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने अपने विचार प्रकट किए है।

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलेगी या नहीं
राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का आंदोलन देश की आजादी से पहले से चल रहा है। राजस्थानी एक समृद्ध व स्वतंत्र भाषा है जिसे अमेरिका और नेपाल जैसे देशों ने मान्यता दी है। इसका एक हजार वर्षो से ज्यादा प्रामाणिक इतिहास व विशाल साहित्य भंडार है। इस भाषा को स्कूल, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के साथ यूजीसी पीएचडी के लिए स्कॉलरशिप दे रही है। इस भाषा के साहित्यकारों को भारत सरकार पद्मश्री प्रदान करती है। लेकिन राजनेताओं की उदासीनता के कारण आजादी के 76 साल बाद भी मायड़ भाषा राजस्थानी संवैधानिक मान्यता को तरस रही है। अब यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा पर निर्भर है। वे जब चाहेंगे उसी दिन राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिल जायेगी।

पुरस्कृत कृति पळकती प्रीत का विषय क्या है
पळकती प्रीत राजस्थान के मध्यकालीन प्रेमाख्यानों को आधुनिक दृष्टि के काव्य के रूप में एक नव सृजन है। इसमें मूमल-महेंद्र, ढोला-मारू, जेठवा-ऊजळी, बाघों-भारमली जैसे जगजाहिर ग्यारह प्रेमाख्यानों को आधुनिक दृष्टि से कविता रूप में रचा गया हैं। साहित्य अकादमी के सर्वोच्च पुरस्कार के तहत ताम्र फलक, शाॅल, श्रीफल, स्मृति चिन्ह एवं एक लाख रुपए प्रदान किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि कोरोना काल के दौरान लिखी यह कृति और पुरस्कार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर डॉ. अर्जुनदेव चारण को समर्पित किया है। वे मेरे सृजन के आदर्श है और उनसे सदैव कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहा है।

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