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कुकीज और कैंडी की मिठास फीकी कर रहा जलवायु परिवर्तन Monday 08 January 2024 05:56 AM UTC+00 | Tags: special वाशिंगटन। कॉफी उत्पादन के लिए मुसीबत बन रहे पर्यावरणीय प्रभावों ने अब अन्य फसलों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण चीनी के दाम बढ़ने की वजह से कुकीज और कैंडीज पर भी इसका असर नजर आने लगा है। 2011 के बाद से चीनी की वैश्विक लागत अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। भारत में कम उत्पादन दर और थाईलैंड में सूखा पड़ने की वजह से फसलों को खतरा बढ़ गया है। ये दोनों ही देश ब्राजील के बाद चीनी के सबसे बड़े निर्यातक हैं। कीमतों में उच्च स्तर पर वृद्धि की आशंका: बढ़ता वैश्विक तापमान सूखे और अन्य चरम मौसम में वृद्धि कर रहा है। चॉकलेट, मिठाइयों और अन्य मीठे उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी पहले ही शुरू हो चुकी है। अमरीकी कृषि विभाग के अनुसार स्थानीय उपभोक्ताओं ने 2023 में चीनी और मिठाइयों की कीमतों में 8.9 फीसदी की वृद्धि देखी। जबकि इस वर्ष इसमें 5.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है जो ऐतिहासिक औसत से काफी ऊपर है। कई चॉकलेट निर्माता कंपनियों ने चीनी और कोको की उच्च कीमतों के कारण पिछले साल नवंबर में चॉकलेट के महंगी होने के संकेत दिए थे। निर्यात सीमा के कारण बढ़ी समस्या: कोलंबिया विश्वविद्यालय के जलवायु अर्थशास्त्री गर्नोट वैगनर के अनुसार भले ही बड़ी कंपनियों के पास कीमतों में बढ़ोतरी के अलग-अलग कारण हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को खारिज नहीं किया जा सकता है। चरम मौसम ने पिछले साल एवोकाडो को प्रभावित किया इस बार चीनी की बारी है। अपने स्टॉक को बनाए रखने के लिए चीनी उत्पादक देशों की ओर से एक निर्यात सीमा तय करने और ब्राजील में बंदरगाह संबंधी बाधाओं के कारण उत्पादन में समस्याएं बढ़ी हैं, जिससे निर्यात पर असर पड़ा है। पोषण को प्रभावित करेंगी कीमतें: विकासशील देशों में खासतौर से वे लोग जो अपने दैनिक कैलोरी उपभोग को बढ़ाने के लिए चीनी पर निर्भर हैं, उन पर उच्च कीमतों के प्रभाव होंगे। उप-सहारा अफ्रीका जैसे गरीब देशों के लिए चीनी एक उपयोगी कैलोरी स्रोत है। उनकी खपत दर काफी कम है, लेकिन अधिक कीमतें इन देशों में पोषण पर असर डाल सकती हैं क्योंकि कई राष्ट्र भुखमरी और उच्च अल्पपोषण दर का सामना कर रहे हैं। Tags:
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